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नींद पूरी न होने पर हमारे शरीर पर क्या प्रभाव पड़ता है

आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में अच्छी नींद बहुत मुश्किल हो गई है। सोशल मीडिया और वीडियो गेम्स ने बची-खुची नींद भी उड़ा दी है। ऐसे में नींद पूरी न हो पाने पर हम अक्सर जंक फूड खाना ज्यादा पसंद करते हैं। कभी आपने सोचा है कि नींद पूरी न होने के कारण होने वाली थकावट और जंक फूड का आपस में क्या संबंध है? इस सवाल का जवाब हमारे अतीत में छिपा है जब हम खाने और शारीरिक ऊर्जा के लिए पूरी तरह से कंद-मूल, मछलियों और शिकार पर आश्रित थे। सरल शब्दों में कहें तो शरीर में नींद पूरी न हो पाने से होने वाली एन्जाएंटी हमारे अंदर उस प्रवृत्ति को बढा़ती है जो समृद्ध, मिठाई, वसायुक्त लजीज खाने की ओर आकर्षित होती है। हमारी इस प्रवृत्ति पर शोध करने वाले सहायक शोधकर्ता प्रोफेसर हैनलोन का कहना है कि विकास की दृष्टि से उच्च कार्बोहाइड्रेट्स और उच्च वसा वाले भोजन का सेवन करना आदिम युग में एक बड़ी बात थी। क्योंकि रोज शिकार मिलना मुश्किल था, कबीले बड़े थे और शिकार करने में शारीरिक ऊर्जा बहुत खर्च होती थी। ऐसे में सभी के हिस्से में बहुत कम कार्बोहाइड्रेट्स और उच्च वसा वाला भोजन आ पाता था। जब कभी हम किसी दावत के बारे में सोचें या भूख की स्थिति में हों तो हमारा दिमाग हमसे यही कहेगा कि हम ऐसा ही काब्र्स और वसा से भरा भोजन ही तो खाना चाहते हैं। ऐसा इसलिए कि मानव विकास के क्रम में हमारा शरीर और हमारे आसपास जितनी तेजी से भोजन के विकल्प विकसित हुए उतनी ही तेजी से हमारा दिमाग विकसित नहीं हुआ।

नींद पूरी न होने पर लगती भूख –
हमारे शरीर में दो हार्माेन लेप्टिन और घ्रेलिन हमारी खान-पान की आदतों को नियंत्रित करते हैं। वजन घटाना हो या फिर बढ़ाना इन दोनों हार्माेन के सही से काम करने पर ही संभव होगा। लेप्टिन हमारी भूख को दबाता है और इसलिए यह हमें वजन घटाने में मदद करता है जबकि घ्रेलिन तेजी से हमारी भूख को बढ़ाता है। प्रोफेसर हैनलोन का कहना है कि जब हम किन्हीं कारणों से पूरी नींद नहीं ले पाते तो घ्रेलिन का स्तर बढ़ जाता है और परिणाम भूख में वृद्धि। लेकिन हम जंक फूड क्यों खाते हैं?

शरीर का यह सिस्टम है जिम्मेदार –
इसका जवाब हमेंं शरीर की एक और प्रक्रिया- द एन्डोकैनाबिनॉएड सिस्टम से मिलता है। इसका काम हमारे शरीर को संतुलन में रखना है और यह नींद, दर्द, सूजन से लेकर भूख लगने तक सब कुछ नियंत्रित करता है। वैज्ञानिकों ने 1988 में पहली बार चूहे के दिमाग में पहला एन्डोकैनाबिनॉएड रिसेप्टर खोजा था। कुछ वर्षों बाद उन्होंने सीबी1 और सीबी2 नाम के दो और रिसेप्टर पाए। यह दोनों रिसेप्टर सभी जीवों में होते हैं।

यह एक प्राचीन प्रणाली है जो युगों पहले विकसित हुई थी। एन्डोकैनाबिनॉएड रिसेप्टर्स के लिए ज्ञात सबसे प्राचीन जीव समुद्री स्क्वर्ट है जो 60 करोड़ साल पहले धरती पर रहा करते थे। लेकिन खाने के साथ एन्डोकैनाबिनॉएड सिस्टम का क्या संबंध है। दरअसल इसमें भी वही रिसेप्टर्स होते हैं जो मारिजुआना में एक सक्रिय घटक के रूप में काम करते हैं और हमें इसका नशा करने के लिए बाध्य करता है। शोधकर्ताओं का मानना है कि एन्डोकैनाबिनॉएड ही वह सिस्टम है जो हमें फैटी, स्टार्च और शक्करयुक्त खाना खाने के लिए वंशानुगत तरीके से हमें बाध्य करता है। जबकि लेप्टिन और घ्रेलिन के कारण नींद की कमी इसे और बदतर बना रही है। प्रोफेसर हैनलोन ने अपने शोध में पाया कि एन्डोकैनाबिनॉएड का स्तर उन लोगों में सबसे ज्यादा मिला जो लोग चार रातों से केवल 4.5 घंटे की ही नींद लेते रहे जबकि 8 घंटे की नींद लेने वालों में इसकी मात्रा कम थी। यह शोध अभी अपने शुरुआती चरण में है और शोधकर्ता अभी इस निष्कर्ष पर नहीं पहुंचे हें कि ऐसा किस वजह से होता है। लेकिन इतना तो तय है कि इसकी वजह से हमें जंक फूड खाने की जबरदस्त इच्छा होती है। इससे बचने के लिए आपको 8 घंटे की अच्छी नींद लें।



Source: Health