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श्री गणेश को तुरंत प्रसन्न करने के लिए ऐसे चढ़ाएं दूर्वा

22 जुलाई 2020, शनिवार के दिन गणेश चतुर्थी का पर्व है। हिंदू धर्म को मानने वाले इस दिन भगवान गणेश की मूर्ति को घर लाकर उनकी पूजा करते है, यह पर्व 10 दिनों तक मनाया जाता है। पंडित सुनील शर्मा के अनुसार गणेशजी की साधना में उनकी प्रिय दूर्वा अवश्य चढ़ानी चाहिए, माना जाता है कि ऐसा करने से पूजा शीघ्र फलदायी होती है। 

श्री गणेश : दूर्वा चढ़ाने के मंत्र

इसके तहत इक्कीस दूर्वा लेकर इन नाम मंत्र द्वारा गणेशजी को गंध, अक्षत, पुष्प, धूप, दीप व नैवेद्य अर्पण करके एक-एक नाम पर दो-दो दूर्वा चढ़ाना चाहिए। यह क्रम प्रतिदिन जारी रखने एवं नियमित समय पर करने से जो आप चाहते हैं उसकी प्रार्थना गणेशजी से करते रहने पर वह शीघ्र पूर्ण हो जाती है। इस दौरान विघ्ननायक पर अटूट श्रद्धा व विश्वास रखना चाहिए।
ॐ गणाधिपाय नमः।।
ॐ उमापुत्राय नमः।।
ॐ विघ्ननाशनाय नमः।।
ॐ विनायकाय नमः।।
ॐ ईशपुत्राय नमः।।
ॐ सर्वसिद्धिप्रदाय नमः।।

ॐ एकदन्ताय नमः।।
ॐ इभवक्त्राय नमः।।
ॐ मूषकवाहनाय नमः।।
ॐ कुमारगुरवे नमः।।

दूर्वा चढ़ाने के पवित्र नियम
ध्यान रहे गणेशजी को तुलसी छोड़कर सभी पत्र-पुष्प प्रिय हैं! गणपतिजी को दूर्वा अधिक प्रिय है। अतः सफेद या हरी दूर्वा चढ़ानी चाहिए। दूः+अवम्‌, इन शब्दों से दूर्वा शब्द बना है। ‘दूः’ यानी दूरस्थ व ‘अवम्‌’ यानी वह जो पास लाता है। दूर्वा वह है, जो गणेश के दूरस्थ पवित्रकों को पास लाती है।

गणपति को अर्पित की जाने वाली दूर्वा कोमल होनी चाहिए। ऐसी दूर्वा को बालतृणम्‌ कहते हैं। सूख जाने पर यह आम घास जैसी हो जाती है। दूर्वा की पत्तियां विषम संख्या में (जैसे 3, 5, 7) अर्पित करनी चाहिए। पूर्वकाल में गणपति की मूर्ति की ऊंचाई लगभग एक मीटर होती थी, इसलिए समिधा की लंबाई जितनी लंबी दूर्वा अर्पण करते थे। मूर्ति यदि समिधा जितनी लंबी हो, तो लघु आकार की दूर्वा अर्पण करें, परंतु मूर्ति बहुत बड़ी हो, तो समिधा के आकार की ही दूर्वा चढ़ाएं।

जैसे समिधा एकत्र बांधते हैं, उसी प्रकार दूर्वा को भी बांधते हैं। ऐसे बांधने से उनकी सुगंध अधिक समय टिकी रहती है। उसे अधिक समय ताजा रखने के लिए पानी में भिगोकर चढ़ाते हैं। इन दोनों कारणों से गणपति के पवित्रक बहुत समय तक मूर्ति में रहते हैं।

गणेशजी पर तुलसी कभी भी नहीं चढ़ाई जाती। कार्तिक माहात्म्य में भी कहा गया है कि ‘गणेश तुलसी पत्र दुर्गा नैव तु दूर्वाया’ अर्थात गणेशजी की तुलसी पत्र और दुर्गाजी की दूर्वा से पूजा नहीं करनी चाहिए। भगवान गणेश को गुड़हल का लाल फूल विशेष रूप से प्रिय है। इसके अलावा चांदनी, चमेली या पारिजात के फूलों की माला बनाकर पहनाने से भी गणेश जी प्रसन्न होते हैं। गणपति का वर्ण लाल है, उनकी पूजा में लाल वस्त्र, लाल फूल व रक्तचंदन का प्रयोग किया जाता है।



Source: Religion and Spirituality

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