fbpx

सुख- दुख का चुनाव नहीं, स्वीकार करें: ज्ञानमुनि

बेंगलूरु. विजयनगर में चातुर्मासिक प्रवास कर रहे ज्ञानमुनि ने कहा कि मानव जीवन अमूल्य है। इसका मूल्य रुपयों में नहीं आंका जा सकता। यह मनुष्य की अपनी जीवन प्रणाली और व्यवहार पर आधारित है कि वह जीवन को बहुमूल्य बनाता है या अवमूल्यन करता है।

यह जिंदगी समय की पटरी पर चलने वाली एक ऐसी गाड़ी है जिसमें मंजिल तक पहुंचने का आनंद भी है तो कहीं गति और अवरोधकों का चांस भी है। यहां सभी व्यक्ति अपने अपने अतीत के सांसों में घिरे वर्तमान को मांनसिक द्वंद्वओं से घसीटते हुए वक्त गुजारते हैं। ऐसे में लोग जिंदगी को जीते कम, ढोते ज्यादा हैं। इस संसार में बहुत कुछ अनदेखा अनचाहा अनहोना है। जिसे चाहे-अनचाहे, गाहे-बगाहे मन से या मजबूरी से झेलना ही पड़ता है।

मुनि ने कहा कि प्रिय व्यक्ति के द्वारा घटित अपमान पीड़ा दे जाता है। ऐसी स्थिति में स्वीकार भाव से जीना जिंदादिली है। उन्होंने एक शायर के शेर का भी जिक्र किया जिसमें शायर ने कहा है जिंदगी जिंदादिली का नाम है। मुर्दा दिल क्या खाक जिया करते हैं मुर्दा बनी हुई जिंदगी में जिंदादिल को पैदा करना ही जीवन की सार्थकता है।

जिंदादिली को जीने का राज यही है जीवन में जो भी मिला है उसे पूरी तरह से जियो। जो कुछ भी अच्छा बुरा शुभ और अशुभ अनुकूल प्रतिकूल मिला है उसे समग्रता से स्वीकार कर लो। वैसे भी जीवन में दुखों को स्वीकार करने से सजगता बढ़ती है, समाधि भी मिलती है सामान्य रूप से देखा जाए तो दुख व्यक्ति को कमजोर बनाता है, सुख बंधन में डाल देता है। अत: जीवन में सुख और दुख का चुनाव नहीं, स्वीकार करना होगा।



Source: Science and Technology News

You may have missed