देवी महालक्ष्मी जी की इस स्वरूप से धन लाभ के साथ ही घर आती है सुख-समृद्धि
धार्मिक कार्यों में शंख का उपयोग किया जाता है। पूजा-आराधना, अनुष्ठान-साधना, आरती, महायज्ञ एवं तांत्रिक क्रियाओं के साथ शंख का वैज्ञानिक एवं आयुर्वेदिक महत्त्व भी है। हिन्दू मान्यता के अनुसार कोई भी पूजा, हवन, यज्ञ आदि शंख के उपयोग के बिना पूर्ण नहीं माना जाता है।
सनातन धर्म की कई ऐसी बातें हैं, जो न केवल आध्यात्मिक रूप से, बल्कि कई दूसरे तरह से भी फायदेमंद हैं। शंख रखने, बजाने व इसके जल का उचित इस्तेमाल करने से कई तरह के लाभ होते हैं।
इसी कारण किसी भी धार्मिक आयोजन, कथा, पूजा-पाठ, भजन-कीर्तन आदि के समय शंख बजाने को अत्यंत शुभ माना जाता है। शंख से निकलने वाली ध्वनि से वातावरण में मौजूद नकारात्मक ऊर्जा और हानिकारक जीवाणु एवं विषाणुओं का नाश हो जाता है, जिससे स्वास्थ्य लाभ भी मिलता है।
दरअसल भारतीय संस्कृति में शंख (Conch) को महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार, शंख चंद्रमा और सूर्य के समान ही देवस्वरूप है। इसके मध्य में वरुण, पृष्ठ भाग में ब्रह्मा और अग्र भाग में गंगा और सरस्वती का निवास है।
शंख से शिवलिंग, कृष्ण या लक्ष्मी विग्रह पर जल या पंचामृत अभिषेक करने पर देवता प्रसन्न होते हैं। कल्याणकारी शंख दैनिक जीवन में दिनचर्या को कुछ समय के लिए विराम देकर मौन रूप से देव अर्चना के लिए प्रेरित करता है। यह भारतीय संस्कृति की धरोहर है।
प्रभावशाली रत्न है शंख
माना जाता है कि समुद्र मंथन के समय निकलने वाले चौदह रत्नों में से एक रत्न शंख भी था। धार्मिक तथा स्वास्थ्य की दृष्टि से शंख बहु उपयोगी है। शंख बजाने से कुंभक, रेचक तथा प्राणायाम क्रियाएं एक साथ होती हैं, इसलिए स्वास्थ्य भी सही बना रहता है।
वहीं कैल्सियम कार्बोनेट से निर्मित होने के कारण यदि शंख में रात भर गंगा जल भरकर प्रातः सेवन किया जाए तो शरीर में कैल्सियम तत्व की कमी नहीं होने पाती है और छोटी-मोटी बीमारियों से बचाव।
आयुर्वेद के मतानुसार शंख की भस्म के औषधीय प्रयोग से हार्ट अटैक, ब्लड प्रेशर, अस्थमा, मंदाग्नि, मस्तिष्क और स्नायु तंत्र से जुड़े रोगों में आशातीत लाभ मिलता है। लयबद्ध ढंग से शंख बजाने से फेफड़ों को मजबूती मिलती है तथा शरीर में शुद्ध आक्सीजन का प्रवाह होने से रक्त भी शुद्ध होता है।
हिन्दू धर्म में पूजा स्थल पर शंख रखने की परंपरा है क्योंकि शंख को सनातन धर्म का प्रतीक माना जाता है। शंख निधि का प्रतीक है। ऐसा माना जाता है कि इस मंगलचिह्न को घर के पूजास्थल में रखने से अरिष्टों एवं अनिष्टों का नाश होता है और सौभाग्य की वृद्धि होती है। स्वर्गलोक में अष्टसिद्धियों एवं नवनिधियों में शंख का महत्त्वपूर्ण स्थान है। हिन्दू धर्म में शंख का महत्त्व अनादि काल से चला आ रहा है।
सुख-समृद्धि के लिए शंख-
कहा जाता है कि दक्षिणवर्ती शंख धन की देवी महालक्ष्मी जी का स्वरुप है। इसलिए धन लाभ और सुख-समृद्धि के लिए घर में उत्तर-पूर्व दिशा में अथवा घर के पूजा घर में रखना चाहिए और प्रति दिन उस शंख की धूप दीप दिखाकर पूजा करनी चाहिए।
पितृ दोष के असर से बचने के लिए दक्षिणवर्ती शंख में पानी भरकर अमावस्या और शनिवार के दिन दक्षिण दिशा में मुख करते हुए तर्पण करने से पितृ प्रसन्न होकर शुभ आशीर्वाद देते हैं जिससे गृह कलह, कार्यों में बाधा, संतान हीनता और धन की कमी जैसी समस्याओं में कमी आने लगती है।
मान्यता के अनुसार शंख साधक को उसकी इच्छित मनोकामना पूर्ण करने में सहायक होते हैं तथा जीवन को सुखमय बनाते हैं। शंख को विजय, समृद्धि, सुख, यश, कीर्ति तथा लक्ष्मी का प्रतीक माना गया है। वैदिक अनुष्ठानों एवं तांत्रिक क्रियाओं में भी विभिन्न प्रकार के शंखों का प्रयोग किया जाता है।
शंख हर युग में लोगों को आकर्षित करते रहे है। देव स्थान से लेकर युद्ध भूमि तक, सतयुग से लेकर आज तक शंखों का अपना एक अलग महत्त्व है। पूजा में इसकी ध्वनि जहां श्रद्धा वा आस्था का भाव जगाती है वहीं युद्ध भूमि में जोश पैदा करती है। रण भूमि में शंखों का पहली बार उपयोग देव-असुर संग्राम में हुआ था।
देव दानवों के इस युद्ध में सभी देव-दानव अपने अपने शंखों के साथ युद्ध भूमि में आए थे। शंखों कि ध्वनि के साथ युद्ध शुरू होता और उसी के साथ ख़त्म होता था। तभी से यह माना जाता है कि हर देवी-देवता का अपना एक अलग शंख होता है।
ग्रहदोष शांति में उपयोगी
नवग्रहों की शांति एवं प्रसन्नता के लिए भी शंख उपयोगी रत्न माना गया है। सूर्य ग्रह की प्रसन्नता के लिए सूर्योदय के समय शंख से सूर्यदेव पर जल अर्पित करना चाहिए। चंद्र ग्रह के अशुभ प्रभाव को दूर करने लिए शंख में गाय का कच्चा दूध भरकर सोमवार को भगवान शिव पर चढ़ाना चाहिए।
मंगल ग्रह को अपने अनुकूल बनाने के लिए मंगलवार के दिन सुंदरकांड का पाठ करते हुए शंख बजाना आसान और श्रेष्ठ उपाय है। बुध ग्रह की प्रसन्नता के लिए शंख में जल और तुलसी दल लेकर शालिग्राम पर अर्पित करना चाहिए, वहीं गुरु गृह को प्रसन्न करने के लिए गुरूवार को दक्षिणवर्ती शंख पर केसर का तिलक लगाकर पूजा करने से भगवान् विष्णु की कृपा मिलती है।
शुक्र ग्रह के अशुभ प्रभाव को दूर करने के लिए शंख को श्वेत वस्त्र में लपेट कर पूजा घर में रखना चाहिए। धन -धान्य एवं आर्थिक समृद्धि पाने के लिए शंख में चावल भरकर लाल रंग के वस्त्र में लपेट कर उत्तर दिशा की ओर खुलने वाली तिजोरी अथवा धन रखने वाली आलमारी में रखना चाहिए।
शंख का वास्तु महत्व –
शंख का सिर्फ़ धार्मिक वा देव लोक तक ही महत्त्व नहीं है। इसका वास्तु के रूप में महत्त्व भी माना जाता है। वर्तमान समय में वास्तु-दोष के निवारण के लिए जिन चीज़ों का प्रयोग किया जाता है, उनमें से यदि शंख आदि का उपयोग किया जाए तो कई प्रकार के लाभ हो सकते हैं।
यह न केवल वास्तु-दोषों को दूर करता है, बल्कि आरोग्य वृद्धि, आयुष्य प्राप्ति, लक्ष्मी प्राप्ति, पुत्र प्राप्ति, पितृ-दोष शांति, विवाह में विलंब जैसे अनेक दोषों का निराकरण एवं निवारण भी करता है। इसे पापनाशक बताया जाता है। अत शंख का विभिन्न प्रकार की कामनाओं के लिए प्रयोग किया जा सकता है। कहते है कि जिस घर में नियमित शंख ध्वनि होती है वहां कई तरह के रोगों से मुक्ति मिलती है। इनके पूजन से श्री समृद्धि आती है।
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Source: Religion and Spirituality