शिशु की बेहतर देखभाल के लिए जान लें ये खास टिप्स
बच्चों की परवरिश में खानपान के साथ हर तरह से उसकी देखभाल जरूरी है। वहीं कम उम्र में ही इनमें पेटदर्द की शिकायत भी होती है जिसे नजरअंदाज न करें। ऐसा पेट में कीड़े होने के कारण हो सकता है। शिशु को गुनगुने साफ पानी व मुलायम तौलिए से साफ करके, साफ-सूती कपड़े में लपेटकर नरम बिछौने पर सुलाएं।
त्वचा की देखभाल –
शिशु को मुलायम कपड़े व साफ रूई की तह में लपेटकर रखें। उसकी त्वचा खुश्क हो तो शरीर पर जैतून या सरसों के तेल की हल्के हाथों से मालिश करें।
स्वस्थ आंखें-
आंखों को गुनगुने पानी में भीगे रूई के फाहे से साफ करें।
टीका लगवाएं
बच्चों को टीके लगाने में लापरवाही न बरतें। जन्म के बाद से समय-समय पर टीके लगवाते रहें।
पेट के कीड़ोंं से नुकसान –
पेट या आंत में कीड़े होने पर बच्चे में खून की कमी, शारीरिक कमजोरी व मानसिक एकाग्रता में कमी आती है। इससे उसकी पढ़ाई-लिखाई पर असर पड़ता है।
आलू का दलिया, गेहूं की खीर, गाजर का हलवा और ज्वार का मीठा दलिया बच्चे को खिलाने से फायदा होता है। उबले आलू को भूनकर इसमें गुड़ या केला मिलाकर खिलाएं। सूजी-मूंग की दाल को अलग-अलग या फिर साथ मिलाकर पकाएं। जब वह आधी पक जाएं तो उसमें गुड़ मिलाकर हिलाएं। थोड़ा ठंडा होने पर खिलाएं।
नाभि की देखभाल : प्रारंभ में कुछ-कुछ घंटे पर नवजात की नाल जांचें। यदि उसमें से रक्त निकले तो उसे दोबारा डोरी से बांधें। फिर भी रक्त बहना जारी रहे तो शिशु रोग विशेषज्ञ को दिखाएं। सामान्यत: रूई के फाहे पर कीटाणुनाशक या स्प्रिट दवा (एंटीसेप्टिक लिक्विड) लगाकर नाल साफ करें। ‘सेओरलिन डस्टिंग पाउडर’ या साधारण कैलेण्डुला व गनपाउडर लगाकर साफ कपड़े की पट्टी बांधें। इससे 5-10 दिनों में नाल सूखकर झड़ जाती है।
इलाज: पेट में कीड़े हों तो चिकित्सक 1-2 साल के बच्चों को एल्बेंडाजोल 400 मिग्रा. की आधी टेबलेट पानी में घोलकर शिशु को पिलाने की सलाह देते हैं। 2 साल से ज्यादा उम्र के बच्चों को यही दवा पूरी टेबलेट चूसकर या चबाकर खाने को देते हैं। बच्चे के दांत निकलेें तो बायोकेमिक दवा देते हैं।
Source: Health