शीतलाष्टमी/ चैत्र कृष्ण अष्टमी: इस पूजा से बच्चों को चेचक नहीं निकलती! जानें पूजन विधि
शीतलाष्टमी (बासोड़ा) का व्रत केवल चैत्र अष्टमी को होता है। होली के 7-8 दिन बाद अर्थात चैत्र कृष्ण पक्ष में शीतला माता की पूजा की जाती है। माना जाता है कि यह पूजा करने से बच्चों को चेचक नहीं निकलती। ऐसे में इस बार शीतला अष्टमी का पर्व 04 अप्रैल को मनाया जाएगा।
कुछ परिवारों में तो यह पूजा होली के 8 दिन बाद अष्टमी को की जाती है, तो कुछ परिवार होली के 3-4 दिन बाद पड़ने वाले सोमवार, बुधवार या शुक्रवार को यह पूजा करते है। धार्मिक पर्व होते हुए भी इस पूजा में ज्यादा अंधन नहीं हैं।
बासोडा के एक दिन पहले गुढ, चीनी का मीठा भात आदि बनाना चाहिए। मोठ, बाजरा भिगोकर और रसोई की दीवार धोकर हाथ सहित पांचों उंगलियां घी में डुबोकर एक छापा लगाना चाहिए और रोली चावल चढ़ाकर शीतला माता के गीत गाने चाहिए।
शीतला अष्टमी 2021 शुभ मुहूर्त-
शीतला अष्टमी पूजा मुहूर्त – 06:08 AM से 06:41 PM
अवधि – 12 घण्टे 33 मिनट।
अष्टमी तिथि प्रारम्भ – अप्रैल 04, 2021 को 04:12 AM बजे
अष्टमी तिथि समाप्त – अप्रैल 05, 2021 को 02:59 AM बजे ।
व्रती को इस दिन स्नान और नित्यकर्मों से निवृत्त होने के बाद एक थाली में एक दिन पहले बनाए गए भात, रोटी , दही चीनी, रोली , चावल, मूंगदाल (भीगी हुई), हल्दी,धूपबत्ती , एक गूलरी की माता, मोठ, बाजरा आदि सब सामान रखकर एक लोटे में जल भर लेना चाहिए। इस सामान को घर के सभी प्राणियों को छुआ लेना चाहिए।
यदि किसी के यहां कुंडारा भरता हो तो एक बड़ा कुंडारा और 10 छोटे कंडारे मंगा लें। फिर एक कुंडारा में रबड़ी, एक में भात, एक में रसगुल्ला, एक में बाजरा, एक में हल्दी पीसकर रख दें और एक में इच्छानुसार पैसे रख लें। फिर ये कुंडारे, बड़े कुडारे में रख ले व हल्दी से उनकी पूजा कर लें।
इसके बाद सब सकुंडारे और समस्त पूजा सामग्री शीतला माता पर चढ़ा कर पूजन करना चाहिए। कुडारा का पूजन करने के बाद कथा सुनें। यदि किसी के लड़का हुआ हो या लड़के का विवाह हुआ हो तो वह पूजा समाप्ति का उत्सव करे। पूजा समाप्ति के उत्सव में जितने कुंडारे हमेशा पूजे हों उतने ही और कुडारे पूज लें।
शीतला माता का व्रत करने से व्रती के कुल में दाह ज्वर, पीत ज्वर,दुर्गंध युक्त फोड़े, नेत्र रोग,चेचक के निशान और शीतला जनित सब रोग दूर होते हैं और शीतला माता सदैव संतुष्ट रहती हैं।
शीतला के रोगी की देह में दाहयुक्त फोड़े हो जाते हैं, जिसके कारण उसे नग्न रहना पड़ता है। गधे की लीद की गंध से फोड़े की पीड़ा में आराम मिलता है। इस रोग का प्रकोप जिस घर में हेाता है वहां अन्नादि की सफाई व झाडू लगान वर्जित है। अत: इन कामों को बंद रखने के लिए झाडू वसूप रोगी के सिरहाने रखते हैं। नीम के पत्ते रखने से रोगी के फोड़े में सड़न पैदा नहीं होती।
कथा 01:
किसी समय एक गांव में एक बुढ़िया रहती थी। वह बासोडे के दिन शीतला माता की पूजा करती और बासी खाना खाती थी। उसके गांव में बौर कोई शीतला माता को नहीं पूजता था।
एक दिन उस गांव में आग लग गई, जिसमें केवल बुढ़िया की झोपड़ी को छोउ़कर सबके घर जल गए। इससे सभी गांव वालों को आश्चर्य हुआ। तब वे सब लोग बुढ़िया के पास आए और इसका कारण पूछने लगे।
इस पर बुढ़िया ने बताया कि मैं तो बासोड़े के दिन ठंडा खाना खाती थी और शीतला माता की पूजा करती थी, परंतु तुल लोग यह सब नहीं करते थे। इसलिए तुम्हारे घर तो जल गए और मेरी झोपड़ी बच गई।
तभी से पूरे गांव मे बासोड़े के दिन शीतला माता की पूजा होने लगी और सब लोग उस दिन ठंड़ा खाना खाने लगे। हे शीतला माता!जैंसे आपने उस बुढ़िया की रक्षा की, वैसे सब की रक्षा करना।
कथा 02 :
प्रचीन समय में एक बार एक राजा के इकलौते बेटे को चेचक निकल आई। उसी राज्य में एक काछी के पुत्र को भी चेचक (शीतला) निकली हुई थी।
वह काछी परिवार काफी निर्धन था, परंतु मां भगवती का उपासक थ। वह धार्मिक दृष्टि से जरूरी समझे जाने वाले सभी नियमों को बीमारी के दौरान भली-भांति निभता रहा। घर की साफ-सफाई का विशेष ख्याल रखा जाता था। नियम से भगवती की पूजा होती थी। घर में नमक खाने पर पाबंदी थी। यहां तक कि सब्जी में न तो छौंक लगता था और न कोई वस्तु भूनी-तली जाती थी। गरम वस्तु न वह स्वयं खाता न शीतला निकले पुत्र को खिलाता। यह सब करने से उसका पुत्र जल्दी अच्छा हो गया।
उधर राजा के लड़के को शीतला का प्रकोप हुआ, तब से उसने भगवती के मंदिर में शतचण्डी कापाठ शुरु करवा रखा था। उस मंदिर में रेज हवन और बलिदान होते थे। राजपुरोहित भी सदा भगवती की पूजा में मग्न रहते। राजमहल में हर रोज कड़ाही चढत्रती और विविध प्रकार के गर्म स्वादिष्ट भोजन बनते। साथ ही कइर् प्रकार के मांस पकते थे।
इसके चलते उन स्वदिष्ट भोजनों की गंध से राजकुमार का मन मचल डठता और वह भी उस भोजन को खाने की जिद करता। एक तो राजकुमार उस पर भी इकलौता, इसलिए उसकी सभी मांगें पूरी कर दी जाती।
इस पर राजकुमार पर शीतला का कोप घटने की बजाय बढ़ने लगा। शीतला के साथ उसके शरीर में बड़े बड़े फोड़े किलने लगे, जिसमें खुजली व जलन अधिक होती थी। शीतला की शांति के लिए राजा जितने उपाय करता, प्रकोप उतना बढ़ जाता। इसका कारण यह था कि अज्ञानता वश राजा के यहां सभी कार्य उल्टे हो रहे थे।
इससे राजा ओर अधिक परेशान हो गया। उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि इतना सब करने के बाद भी शीतला का प्रकोप शांत क्यों नहीं हो रहा।
एक दिन राजा के गुप्तचरों ने उसे बताया कि काछी पुत्र को भी शीतला निकली थी, परंतु अब वह बिल्कुल ठीक हो गया है। यह सुनकर राजा सोच में पड़ गया कि मैं शीतला की इतनी सेवा कर रहा हूं, पूजा व अनुष्ठाान में कोई कमी नहीं, फिर भी मेरा पुत्र अधिक रोगी होता जा रहा है, जबकि काछी पुत्र बिना सेवा-पूजा के ही ठीक हो गया।
इसी सोच में उसे नींद आ गई। रात में स्वप्न में श्वेत वस्त्र धारिणी भगवती ने दर्शन देकर कहा— ‘ हे राजन! मैं तुम्हारी सेवा—पूजा से प्रसन्न हूं। इसलिए आज भी तुम्हारा पुत्र जीवित है। इकसे ठीक न होने का कारण यह है कि तुमने शीतला के समय पालन करने योग्य नियमों का उल्लंघन किया। तुम्हें ऐसी हालत में नमक का प्रयोग बंद करना चाहिए।
नमक से रोगी के फोड़ों में खुजली होती है। घर में सब्जियों में छौंक नहीं लगाना चाहिए, क्योंकि उसकी गंध से रोगी का मन उन वस्तुओं को खाने के लिए ललचाता है। रोगी के पास किसी का आना जाना भी मना है क्योंकि यह रोग औरों को भीलगने का भय रहता है। अत: इन नियमों का पालन कर, तेरा पुत्र अवश्य ही ठीक हो जाएगा।
यह सब समझाकर देवी अंतर्धान हो गईं। सुबह होते ही राजा ने देवी की आज्ञानुसार सभी कार्योंं की व्यवस्था कर दी। इससे राजकुमार की सेहत में सुधार दिखने लगा और वह जल्द ही ठीक हो गया।। राजा ने आदेश निकलवा दिया और घरों में शीतला माता का पूजन विधिपूर्वक किया जाने लगा।
Source: Dharma & Karma