ऑब्सट्रक्टिव स्लीप एपनिया : अगर सोते समय में कई बार रुके 60 सेकंड तक सांस, हो सकती हैं गंभीर बीमारियां
नई दिल्ली। सभी वैज्ञानिक बड़े पैमाने पर इस बात से सहमत हैं कि वयस्क मनुष्य के लिए हर रात लगभग 7 से 9 घंटे की गहरी नींद सोना बेहद जरूरी है। नींद में कमी, आधी रात में जागने की प्रवृत्ति, और इसी तरह के अन्य कारकों की वजह से मध्यम आयु वर्ग के पुरुषों और महिलाओं, दोनों को कई तरह की मानसिक एवं शारीरिक बीमारियों से जूझना पड़ता है। अच्छी और गहरी नींद सोने वाले व्यक्ति के शरीर की सभी तंत्रिकाएं तनाव मुक्त हो जाती हैं, क्योंकि सोते समय शरीर को ऊर्जा की काफी कम आवश्यकता होती है तथा जागने के समय की तुलना में नींद के दौरान दिल की धड़कन, ब्लड प्रेशर, साँस लेने की प्रक्रिया इत्यादि, काफी हद तक नियंत्रित हो जाती है। परंतु अगर व्यक्ति को रात में सोते समय कई बार नींद से जागना पड़े, तो शरीर को हर बार काम करने के लिए तैयार होना पड़ता है। इसके साथ-साथ ब्लड प्रेशर, टाइप- II डायबिटीज जैसी बीमारियां उच्च स्तर पर बरकरार रहती हैं, जिनसे कुछ वर्षों बाद गंभीर शारीरिक परेशानियां उत्पन्न होती हैं।
दुनिया में 100 करोड़ ओएसए के शिकार
अजमेर स्थित अजमेर मित्तल अस्पताल (चेस्ट सोसाइटी) के कंसलटेंट पुलमोनोलॉजिस्ट एंड स्लीप स्पेशलिस्ट डॉ. प्रमोद दाधीच ने बताया कि लोगों का ध्यान इस समस्या की ओर आकृष्ट करने तथा दुनिया भर के लोगों को इसमें सुधार लाने हेतु प्रोत्साहित करने के लिए, पिछले 14 वर्षों से हर साल ‘वर्ल्ड स्लीप डे’ का आयोजन किया जाता है। ‘रेग्यूलर स्लीप, हेल्दी फ्यूचर’, इस साल के कार्यक्रम की मुख्य विषय-वस्तु है। ऑब्सट्रक्टिव स्लीप एपनिया नींद से जुड़ी परेशानियों का सबसे सामान्य कारण है, जो हमारी सोच से भी ज्यादा बड़े पैमाने पर लोगों को अपनी चपेट में ले रहा है। पिछले साल रेस्पिरोलॉजी पत्रिका में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार, दुनिया भर में एक बिलियन लोग ऑब्सट्रक्टिव स्लीप एपनिया से पीडि़त हैं। भारत में, तकरीबन 10 फीसदी वयस्क पुरुष ऑब्सट्रक्टिव स्लीप एपनिया की समस्या से जूझ रहे हैं, जबकि कुछ पश्चिमी देशों में यह संख्या 34 फीसदी तक हो सकती है। नींद में होने वाले अन्य बाधाओं की तरह ऑब्सट्रक्टिव स्लीप एपनिया भी समान रूप से शरीर के विभिन्न अंगों को नुकसान पहुंचाता है।
एक मिनट तक रुक सकती है सांस
डॉ. प्रमोद दाधीच के अनुसार सोते समय सांस लेने में रुकावट उत्पन्न होना, ऑब्सट्रक्टिव स्लीप एपनिया का सबसे बड़ा लक्षण है। खर्राटे लेना ऑब्सट्रक्टिव स्लीप एपनिया का सबसे हल्का रूप है जो अपेक्षाकृत कम हानिकारक है, लेकिन गंभीर होने पर नतीजे काफी खतरनाक हो सकते हैं। वास्तव में, ऑब्सट्रक्टिव स्लीप एपनिया से गंभीर रूप से पीडि़त लोग सोते समय एक बार में 60 सेकंड तक साँस रुकने जैसी स्थिति का अनुभव कर सकते हैं, और कभी-कभी तो एक घंटे में 30 बार ऐसा हो सकता है।
यह है ओएसए के लक्षण
डॉ. प्रमोद दाधीच लक्षण बताते हुए कहते हैं कि अत्यधिक खर्राटे आना, सोते समय सांस का रुकना, नींद में अत्यधिक प्यास लगना या गला सूख जाना, अत्यधिक पेशाब लगना, नींद में बेचैनी का अनुभव करना व सुबह उठने के बाद अत्यधिक थकान होना एवं सोने की तलब होना। जिन लोगों की बीएमआई 28 से ज्यादा एवं गर्दन मोटी होती है, उनमें इस बीमारी की संभावना अधिक होती है। यदि किसी व्यक्ति को कम उम्र में अनियंत्रित ब्लड प्रेशर एवं डायबिटीज है, तो इसका कारण ओएसए हो सकता है।
इस तरह से करा जा सकते हैं जांच
डॉ. प्रमोद दाधीच बताते हैं कि ओएसए को मुख्य रूप से सांस से जुड़ी बीमारी से तौर पर देखा जाता है, इसलिए पहली बार फेफड़े के विशेषज्ञ या पल्मोनोलॉजिस्ट से सलाह ली जानी चाहिए। इसके अलावा, संभवत: आज भारत में नींद की दवाइयों का सेवन करने वाले ज्यादातर मरीजों ने पहले पल्मोनोलॉजिस्ट से ही सलाह ली होगी। लक्षणों और चिकित्सीय जांच के आधार पर ओएसए का सही तरीके से पता लगाया जा सकता है, परंतु ऐसा करने के साथ-साथ स्लीप स्टडी के माध्यम से नींद में किसी भी तरह की परेशानी की जांच की जानी चाहिए। स्लीप लैबोरेट्री के अलावा मरीज की सुविधा के अनुसार उसके घर पर भी यह जांच की जा सकती है। आजकल तो स्लीप पैटर्न पर नजर रखने के लिए पहनने योग्य डिवाइस भी बड़ी आसानी से उपलब्ध हैं।
इस तकनीक से हो सकता है इलाज
डॉ. प्रमोद दाधीच की मानें तो निश्चित तौर पर सबसे बड़ी खुशी की बात यह है कि, सही मशीनों के इस्तेमाल से ऑब्सट्रक्टिव स्लीप एपनिया को ठीक किया जा सकता है। आमतौर पर ऑब्सट्रक्टिव स्लीप एपनिया के उपचार के लिए नॉन-इनवेसिव वेंटिलेशन विधि का उपयोग किया जाता है, और इसके लिए सीपीएपी डिवाइस की जरूरत होती है। बीते वर्षो की तुलना में, हाल के दिनों में इस तरह की मशीनें और अत्याधुनिक हो गई हैं।
क्लाउड आधारित तकनीक के जरिए
डॉ. प्रमोद दाधीच कहते हैं कि आज के नवीनतम उपकरण, स्लीप डॉक्टर को क्लाउड-आधारित मैकेनिज्म के जरिए अपने मरीजों की ऑनलाइन निगरानी करने की सुविधा प्रदान करते हैं। इस प्रणाली की मदद से मरीज का उपचार करने वाले डॉक्टर, मरीज से जुड़ी चिकित्सकीय जानकारी को बड़ी आसानी से अपने पेशेवर सहयोगियों के साथ साझा कर सकते हैं। इसी तरह, नए मॉडल को काफी छोटे और मजबूत बॉक्स में पैक किया जा सकता है, जिसे घर से ऑफिस लाना और ले जाना काफी सुविधाजनक होता है। सीपीएपी के अलावा बीमारी के आधार पर और मशीनें भी उपलब्ध हैं, जो मरीज के इलाज को अत्यधिक प्रभावी एवं आरामदायक बना देती हैं।
Source: disease-and-conditions