दीदी से मुकाबले की मोदी की स्पेशल स्क्रिप्टः चुनावी मैदान से रिपोर्ट
उलुबेरिया। “देखे छी समस्त काज शेष हये गेछे…” यानी देख लिया समझो सब हो गया… ललाट पर बड़ा सा तिलक और सिर पर भाजपा का केसरिया पटका बांधे 29 साल के पास के ही गांव के मोहन पाल कहते हैं। थोड़ी देर पहले तक जोश में ‘जय श्री राम’ का नारा लगाते आ रहे उनकी ही तरह के सैकड़ों दूसरे समर्थक भी लौट रहे हैं। जबकी पीएम नरेंद्र मोदी ने अभी रैली में बोलना शुरू ही किया है।
दरअसल, पश्चिम बंगाल के विधानसभा चुनाव में भी पीएम मोदी ही भाजपा की ताकत और कमजोरी सब अकेले ही हैं। भाजपा के प्रचार, पोस्टर, रैली… हर जगह। बंगाली भाषी समर्थकों में भी उन्हीं का सम्मोहन है, लेकिन भाषा जैसी दीवारें भी आड़े आती हैं।
रैलियों का टूटेगा रिकार्ड
8 चरण वाले राज्य के चुनाव में अभी सिर्फ 2 चरण ही हुए हैं लेकिन पीएम 7 रैलियां कर चुके हैं। चुनाव की घोषणा के बाद से 6 बार यहां आ चुके हैं। पार्टी सूत्र बताते हैं कि रैलियां कुल 18 से 19 तक हो सकती हैं। हर चरण से पहले कम से कम 2 रैली।
मोदी ने भाषण किया छोटा
मोदी ने यहां की खास चुनौतियों को भांप कई नई चीजें की हैं। यहां अब उन्होंने अपने भाषण छोटे कर दिए हैं। भाषण एक घंटे की बजाय 27-28 मिनट का हो गया है। 35 से 40 मिनट में तो वे मंच से वापस लौट जाते हैं। हर भाषण में बीच-बीच में टेलीप्रांप्टर की मदद से बंगाली में दो-तीन लाइनें जरूर बोलते हैं। (देखें बदलाव के इनसेट)
नारा ही नहीं मुख्य धुन
भाजपा के चुनाव प्रचार में बहुत कायदे से ‘जय श्री राम’ के नारे को एक मुख्य धुन की तरह पिरोया गया है। ऊपर से नीचे बूथ स्तर तक के कार्यकर्ताओं को पता है कि दो ही नारे लगाने हैं- ‘जय श्री राम’ और ‘भारत माता की जय’। मोदी खुद ‘जय श्री राम’ का नारा नहीं लगवाते। वे ‘भारत माता की जय’ पर जोर देते हैं। लेकिन मंच पर उनके आते ही यहां की रैलियों में उनके स्वागत में मंच से ‘जय श्री राम’ का नारा जरूर लगवाया जाता है।
समर्थकों से पूछिए तो बदले में वे सवाल करते हैं- भारत में यह नारा नहीं लगेगा तो कहां लगेगा? दीदी इसको सुन कर भड़कती क्यों है?
इकहरा हुआ पटका
भाजपा के झंडे का हरा रंग कम से कम पटके से तो गायब है। बड़े नेता भी पार्टी के दो रंग वाले की जगह ज्यादातर केसरिया पटका ही पहन रहे हैं। भाजपा की प्रचार सामग्री बेच रहे जयदीप से हम इस बारे में पूछते हैं तो वह बताते हैं- ‘बिकता ही यही है।’ साढ़े तीन दशक कम्यूनिस्ट और फिर एक दशक का ममता का राज देख चुके इस राज्य में पहली बार हिंदुत्व के सहारे कोई चुनाव जीतने की तैयारी हो रही है।
मोदी दादा स्टाइल
भाषणों को छोटा किया।
कुछ बंगाली वाक्यों का उपयोग करते हैं।
ममता पर जोरदार हमला करते हैं।
भ्रष्टाचार और कट मनी का हवाला जरूर देते हैं।
स्थानीय मुद्दों पर पूरी रिसर्च दिखती है।
रैली से दूर घरों में बैठे लोगों को भी ध्यान में रखते हैं।
नाटकीयता का भरपूर उपयोग करते हैं।
विवेकानंद और रामकृष्ण की परंपरा की याद जरूर दिलाते हैं।
सरकार बन रही है इसका भरोसा दिलाते हैं।
समर्थकों का मानस
बंगाल की राजधानी से लगभग 60 किलोमीटर दूर इस कस्बे में गुरुवार को हो रही ऐसी ही एक रैली में आ रहे समर्थकों को समझने यह संवाददाता पहुंचता है। पीएम की रैली में होने वाले मीडिया एक्रिडेशन, गैलरी और सुविधाओं के ताम-झाम से अलग कई घंटे पहले से ही आम लोगों के बीच। यहां जितनों से हम मिल रहे हैं लगभग दो तिहाई बांग्लाभाषी हैं। एक-दो लाइन भी हिंदी नहीं बोल पा रहे। उन्हीं में से अलग-अलग सज्जन हमारे दुभाषिया भी बनते रहे।
लगभग 50 साल के बीरेंद्र अधिकारी की तरह कई लोग ‘शोनार बांगला’ और ‘पोरिबर्तन’ की बात करते हैं, लेकिन ज्यादातर लोग फिर बताते हैं कि भाजपा में वे दरअसल भगवा देख रहे हैं। ज्यादातर लोगों ने कहीं ना कहीं सुना है या सोशल मीडिया पर लगातार पढ़ा है कि किस तरह मुख्यमंत्री ममता बनर्जी हिंदुओं के खिलाफ काम कर रही है।
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पार्टी की आस
पार्टी का आकलन है कि पीएम की रैली हाल के बिहार चुनाव की तरह कारगर साबित होगी। पार्टी के प्रचार की कमान संभाल रहे एक वरिष्ठ बताते हैं बिहार में पीएम ने 12 रैलियां की थीं, उत्तर प्रदेश चुनाव में 23 रैलियां की थीं और उसका फायदा भी दिखा था। हालांकि यह भी सच है कि राजस्थान में 10, छत्तीसगढ़ में 4 और दिल्ली में उनकी 3 रैलियों का ज्यादा फायदा नहीं हो सका था।
Source: Education