Vaishakh Purnima 2021: बुध पूर्णिमा कब है, जानें इसका महत्व और कैसे करें पूजा?
वैशाख पूर्णिमा को बुद्ध पूर्णिमा के नाम से जाना जाता है। बौद्ध धर्म के प्रवर्तक गौतम बुद्ध का जन्म इसी दिन हुआ था। Gautam buddh के बचपन का नाम सिद्धार्थ था। एक राजकुमार होने के बाद भी उन्होंने समस्त सांसारिक सुखों को त्याग कर कठिन तपस्या के बल पर ज्ञान प्राप्त किया। ज्ञान प्राप्ति के बाद ही सिद्धार्थ “गौतम बुद्ध” कहलाए।
वहीं इस बार यानि 2021 में बुधवार, 26 मई को वैशाख पूर्णिमा Vaishakh Purnima यानि बुद्ध पूर्णिमा है। यहां बता दें कि बुद्ध पूर्णिमा सिर्फ बौद्ध धर्म का ही नहीं अपितु समस्त भारतीय परम्परा का पावन त्यौहार है।
इस दिन को Hindu scriptures में भी पवित्र और अत्यंत फलदायी माना गया है। इस दिन वैशाख स्नान और विशेष धार्मिक अनुष्ठानों की पूर्ण आहूति की जाती है जो पिछले एक महीने से चली आ रही है। इस दिन मंदिरों में हवन-पूजन किया जाता है।
वैशाख पूर्णिमा 2021 व्रत मुहूर्त… Vaishakh Purnima shubh Muhurat
मई 25, 2021 को शाम 08:31:40 से पूर्णिमा शुरु
मई 26, 2021 को दोपहर 04:45:35 पर पूर्णिमा समाप्त
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इसके अलावा Buddh Purnima के दिन सुबह नदियों में स्नान के बाद दान-पुण्य का विशेष महत्व भी बताया गया है। मान्यता के अनुसार इस दिन मिष्ठान और पकवान बांटा जाना गौदान के समान फल वाला है। इस दिन का महत्व इसी बात से समझा जा सकता है कि वैशाखी पूर्णिमा के दिन शक्कर और तिल दान करने से अनजाने में हुए पापों से भी मुक्ति मिलती है।
इतिहास के जानकारों के अनुसार बुद्ध शाक्य गोत्र के थे और उनका वास्तविक नाम सिद्धार्थ था। उनका जन्म कपिलवस्तु (शाक्य महाजनपद की राजधानी) के पास लुंबिनी (वर्तमान में दक्षिण मध्य नेपाल) में हुआ था। इसी स्थान पर, तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व में सम्राट अशोक ने बुद्ध की स्मृति में एक स्तम्भ बनाया था।
जानकारों के अनुसार Bauddh dharma भारत की श्रमण परम्परा से निकला धर्म और दर्शन है। इसके प्रस्थापक महात्मा बुद्ध शाक्यमुनि (गौतम बुद्ध) थे। वे 563 ईसा पूर्व से 483 ईसा पूर्व तक रहे। उनके महापरिनिर्वाण के अगले 5 शताब्दियों में, बौद्ध धर्म पूरे भारतीय उपमहाद्वीप में फ़ैला और अगले दो हज़ार सालों में मध्य, पूर्वी और दक्षिण-पूर्वी जम्बू महाद्वीप में भी फ़ैल गया।
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वहीं आज बौद्ध धर्म में तीन सम्प्रदाय हैं: हीनयान या थेरवाद, महायान और वज्रयान, वहीं हीनयान को बौद्ध धर्म का प्रमुख सम्प्रदाय माना जाता है। बौद्ध धर्म को चालीस करोड़ से अधिक लोग मानते हैं और यह दुनिया का चौथा सबसे बड़ा धर्म है। ऐसे में बौद्ध धर्म को मानने वाले लोग इस दिन को बड़ी धूमधाम से मनाते हैं।
बुद्ध भगवान विष्णु के नौवें अवतार…
वहीं हिन्दू धर्मावलंबियों के लिए बुद्ध Lord Vishnu के नौवें अवतार हैं, इसलिए हिन्दुओं के लिए भी यह दिन पवित्र माना जाता है। इस दिन को ‘सत्य विनायक पूर्णिमा’ भी कहा जाता है।
मान्यता है कि भगवान Shri Krishna के बचपन के मित्र दरिद्र ब्राह्मण सुदामा जब द्वारिका उनके पास मिलने पहुंचे तो श्रीकृष्ण ने उनको ‘सत्यविनायक व्रत’ का विधान बताया था। इसी व्रत के प्रभाव से सुदामा की सारी दरिद्रता जाती रही तथा वह सर्वसुख सम्पन्न और ऐश्वर्यशाली हो गए।
वैशाख पूर्णिमा पर ऐसे करें पूजा…
: वैशाख पूर्णिमा के दिन पूजा करने के वक़्त भगवान विष्णु की प्रतिमा के सामने घी से भरा हुआ पात्र, तिल और शक्कर को स्थापित करना चाहिए।
: कोशिश करें कि पूजन के वक़्त तिल के तेल का दीपक जलाएं।
: वहीं इस दिन पितरों के निमित्त पवित्र नदियों में स्नान कर हाथ में तिल रखकर तर्पण करें। मान्यता है कि ऐसा करने से पितर तृप्त होते हैं और उनका आशीर्वाद मिलता है।
: बौद्ध धर्म के धर्मग्रंथों का निरंतर पाठ किया जाता है।
: गरीबों को भोजन और वस्त्र दिए जाते हैं।
: पक्षियों को पिंजरे से मुक्त कर खुले आकाश में छोड़ा जाता है।
: बोधिवृक्ष की पूजा की जाती है। उसकी शाखाओं पर हार और रंगीन पताकाएं सजाई जाती हैं।
: जड़ों में दूध और सुगंधित पानी डाला जाता है। वृक्ष के आसपास दीपक जलाए जाते हैं।
: ईश्वरीय शुद्ध दिन होने के कारण इस दिन मांसाहार का परहेज होता है।
बुध पूर्णिमा को हर देश में स्थानीय परंपराओं के हिसाब से इसे मनाया जाता है, वहीं श्रीलंका में इसे वेसाक कहा जाता है। इस दिन अहिंसा और सदाचार अपनाने का प्रण लिया जाता है। चीन, तिब्बत और विश्व के अनेक कोनों में फैले बौद्ध धर्म के अनुयायी इसे अपने-अपने ढंग से मनाते हैं।
बिहार स्थित बोधगया नामक स्थान हिन्दू और बौद्ध धर्मावलंबियों का पवित्र तीर्थ स्थान है। माना जाता है कि गृहत्याग के पश्चात सिद्धार्थ सात वर्षों तक वन में भटकते रहे। यहां पर उन्होंने कठोर तप किया और अंततः वैशाख पूर्णिमा के दिन बोधगया में बोधि वृक्ष के नीचे उन्हें बुद्धत्व ज्ञान की प्राप्ति हुई। तभी से यह दिन बुद्ध पूर्णिमा के रूप में मनाया जाने लगा।
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इस दिन बौद्ध घरों में दीपक जलाए जाते हैं और फूलों से घरों को सजाया जाता है। इस पर्व पर दुनियाभर से बौद्ध धर्म के अनुयायी बोधगया आते हैं और प्रार्थना करते हैं। इस दिन बोधिवृक्ष की पूजा की जाती है। उसकी शाखाओं पर हार व रंगीन पताकाएं सजाई जाती हैं।
मान्यता है कि इस दिन अलग अलग पुण्य कर्म करने से अलग अलग फलों की प्राप्ति होती है।
: धार्मिक ग्रंथों में बताया गया है कि इस दिन धर्मराज के निमित्त जलपूर्ण कलश और पकवान दान करने से गौ दान के समान फल प्राप्त होता है। साथ ही पांच या सात ब्राह्मणों को शर्करा सहित तिल दान देने से सब पापों का शमन हो जाता है।
: वहीं इस दिन यदि तिलों के जल से स्नान करके घी, चीनी और तिलों से भरा हुआ पात्र भगवान विष्णु को निवेदन करें और उन्हीं से अग्नि में आहुति दें अथवा तिल और शहद का दान करें, तिल के तेल का दीपक जलाएं, जल और तिलों का तर्पण करें अथवा गंगा आदि में स्नान करें तो व्यक्ति सब पापों से मुक्त हो जाता है।
: इस दिन शुद्ध भूमि पर तिल फैलाकर काले मृग का चर्म बिछाएं और उसे सभी प्रकार के वस्त्रों सहित दान करें तो अनंत फल प्राप्त होता है।
: इसके अलावा यदि इस दिन एक समय भोजन करके पूर्णिमा, चंद्रमा अथवा सत्यनारायण भगवान का व्रत करें तो सब प्रकार के सुख, संपदा और श्रेय की प्राप्ति होती है।
Source: Dharma & Karma