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Health News: जोड़ों की मुसीबतों में समय पर इलाज होना जरुरी

Health News: बुजुर्गों की बीमारी के नाम से जानी जाने वाली ओस्टियोआर्थराइटिस के मामले अब 20 से 50 वर्ष की आयु वर्ग वाले लोगों में काफी बढ़ रहे हैं। घुटनों के जॉइंट के घिसने की आशंका मोटापे और जीवनशैली में गड़बड़ी से ज्यादा बढ़ जाती है।

उठने-बैठने के तरीके और आप
अपने घुटनों को स्वस्थ रखने के लिए आपको सही तरीके से उठना-बैठना होगा, विशेष रूप से कार्यस्थल पर। आपको अपनी कुर्सी पर काफी ध्यान देना होगा। अगर आपकी कुर्सी बहुत नीची है तो घुटने हमेशा मुड़े रहते हैं, जो घुटनों के लिए अच्छा नहीं है।

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वहीं कुर्सी बहुत ऊंची होने पर आपको जमीन पर पैर रखने में कठिनाई होती है। इसलिए अपनी लंबाई के अनुसार कुर्सी पर इस तरह बैठें कि आपके घुटने एक आरामदायक कोण पर हों और आपको उठने और बैठने में भी आसानी रहे। पैर के ऊपर पैर चढ़ाकर बैठने और कम ऊंचाई वाले फर्नीचर पर बैठने से समय के साथ-साथ आपके घुटनों में दर्द की समस्या बढ़ सकती है।

मोटापे से बढ़ता आर्थराइटिस का जोखिम
जितना ज्यादा वजन होगा घुटनों पर बोझ भी उतना ही पड़ेगा और उनकी हालत उतनी ही तेजी से खराब होगी। अगर किसी ट्रक के टायरों को अधिकतम एक टन वजन उठाने के लिए डिजाइन किया गया है तो जाहिर है कि दो टन का वजन डालने पर वह खराब हो जाएंगे।

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कार्टिलेज या जॉइंट की लाइनिंग की स्थिति भी इससे कुछ अलग नहीं होती है। शरीर का अतिरिक्त वजन ढोने के दबाव और तनाव से घुटनों के जॉइंट पर असर पड़ता है और उनका घिसना या उनमें खराबी आना शुुरू हो जाता है। अगर 40 वर्ष की उम्र में आप अपने अतिरिक्त वजन को घटा लें तो 60 वर्ष तक की आयु में ओस्टियो आर्थराइटिस होने की आशंका कम होगी। आपके वजन में प्रति पोंड की कमी आपके घुटनों को करीब 4 पोंड की राहत देती है। यानी अगर आपने 5 पोंड वजन कम किया है तो इसका मतलब है कि आपके घुटनों पर से करीब 20 पोंड दबाव कम हो गया है।

स्वस्थ घुटनों के लिए व्यायाम
घुटनों को चुस्त-दुरुस्त रखने के लिए व्यायाम बेहद जरूरी है। व्यायाम में भी तैराकी सबसे बेहतरीन तरीका है। अगर आपको तैरना पसंद नहीं है तो आप साइक्लिंग भी कर सकते हैं। शरीर में अतिरिक्त वसा कम करने और घुटनों के अनुकूल व्यायाम के तौर पर यह बेहतर तरीका है। इसके अलावा घुटनों व जांघों की मांसपेशियों को मजबूत करने के लिए कुर्सी पर बैठकर टांगों को कुर्सी के बराबर लाने का प्रयास करें। दौडऩे, कूदने, ज्यादा प्रभाव वाला ऐरोबिक डांस करने व पालथी मारकर बैठने से घुटनों के लिए जोखिम बढ़ सकता है।

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संभव है शुरुआती इलाज
युवावस्था में खेल के दौरान घुटने या अस्थिबंध (एसीएल, पीसीएल) में लगी चोट भविष्य में आर्थराइटिस की वजह हो सकती है। घुटनों के जॉइंट को लिगामेंट मेनिस्कस और कार्टिलेज जैसे महत्वपूर्ण ढांचों की मदद से सुरक्षित रखा जाता है। एमआरआई, आर्थरोस्कोपी जैसी जांच व थैरेपैटिक मॉडल विकसित होने से इस बीमारी का इलाज और आर्थराइटिस की रोकथाम संभव है।

आर्थरोस्कोपी का इस्तेमाल अस्थिबंध, कार्टिलेज और मेनिस्कस की मरम्मत करने या चोटिल कोशिकाओं को निकालने (मेनिसेक्टोमी, घुटनों के क्षतिग्रस्त हिस्से को निकालने) में किया जा सकता है। इसके लिए आपके घुटनों के आसपास के इलाकों में छोटे-छोटे अन्य सर्जिकल उपकरण अंदर डाले जाते हैं।

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तनाव से बढ़ती है परेशानी
एक सुकून भरा दिमाग और शांत चित्त घुटनों की समस्या रोकने में मदद कर सकता है। लंबे समय तक तनाव की स्थिति में रहने से हमारे शरीर का प्रतिरोधी तंत्र कमजोर हो जाता है और इससे अन्य गंभीर समस्याओं के साथ ही घुटनों पर भी प्रभाव पड़ता है। व्यायाम, ध्यान और संगीत आपको शांत और तनाव मुक्त रखने में मदद कर सकते हैं। आर्थराइटिस की संभावना आयु के तीसरे और चौथे दशक में कदम रखने पर शुरू होती है। इसे बढ़ावा देने वाले कई कारणों को हम नियंत्रित कर सकते हैं।

वजन, काफी समय तक एक ही जगह बैठे रहने वाली हमारी जीवनशैली, उठने-बैठने की खराब मुद्राएं और तनाव ऐसी बातें हैं, जिन पर काबू पा सकते हैं।



Source: disease-and-conditions