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तुलसीदास जयंती 2021: जानिये कैसे हुई थी तुलसीदास जी की श्रीराम से मुलाकात?

गोस्वामी तुलसीदास जी को दुनिया संत शिरोमणि के नाम से भी जानती है। महर्षि वाल्मीकि जिन्होंने आदि काव्य रामायण के रचना की थी, तुलसीदास जी को इन्हीं का अवतार भी माना गया है। जन्म स्थान विवादित होने के बावजूद अधिकतर लोग तुलसीदास जी का जन्म उत्सव श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को मनाते हैं।

तुलसीदास जयंती इस साल 2021 में भी श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि यानि रविवार, 15 अगस्त को मनाई जाएगी।

shri Ram and shiv

भगवान श्रीराम की उनकी रचनाओं पर विशेष कृपा के चलते तुलसीदास जी सांसारिक जीवन से विरक्त संत थे। भगवान राम से भेंट करवाने का सबसे बड़ा श्रेय गोस्वामी तुलसीदास जी हनुमान जी को देते हैं।

दरअसल माना जाता है कि हनुमान जी के परामर्श पर एक बार तुलसीदास चित्रकूट पहुंचे। जहां उन्होंने सर्वप्रथम नदी में स्नान के बाद कदमगिरि की परिक्रमा की। इसी समय उन्हें दो अत्यंत सुंदर राजकुमार दिखे जो सुंदर घोड़े पर सवार थे। इन राजकुमारों में जहां एक गौर वर्ण के थे तो वहीं दूसरे श्याम वर्ण के थे।

तुलसीदास जी ने जब राजकुमारों को देखा तो उनके मन में प्रश्न पैदा हुबा कि आखिर इतने सुंदर राजकुमार चित्रकूट में क्या कर रहे हैं, लेकिन कुछ ही देर में वे राजकुमार उनकी आंखों से गायब हो गए।

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lord shiv with shri krishan

इस घटना के ठीक बाद हनुमान जी ने तुलसीदास जी के पास आकर पूछा कि क्या आपको प्रभु श्रीराम और भ्राता लक्ष्मण के दर्शन हुए? तुलसीदास जी ने जब नहीं कहा तो हनुमान जी ने उन्हें बताते हुए कहा कि अभी जो अश्व पर सवार दो राजकुमार गए हैं, वहीं प्रभु श्री राम और भ्राता लक्ष्मण थे।

यह सुनते ही प्रभु के ना पहचान पाने से तुलसीदास जी अत्यधिक दुखी हो गए और हनुमान जी से पुन: प्रभु के दर्शन करने की प्रार्थना करने लगे।

इसके बाद जब अगले दिन तुलसीदास नदी चित्रकूट के घाट पर बैठकर चंदन घिस रहे थे तभी चंदन लगवाने एक बालक उनके पास आया और बोला बाबा आपने बहुत अच्छा चंदन घिसा है थोड़ा हमें भी लगा दीजिए।

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16 july 2020 Kark Sankranti Aditya Hradaya Stotra Worship Surya Dev

IMAGE CREDIT: patrika

इस बार भी तुलसीदास अपने सामने खड़े श्रीराम को नहीं पहचान सके। जैसे ही हनुमान जी को यह महसूस हुआ कि कहीं इस बार भी तुलसीदास श्रीराम को न पहचानने की भूल ना कर दें, ऐसे में वे एक तोते के रूप में आकर करुणरस में गाने लगे कि
”चित्रकूटके घाट पर, भई संतन कीभीर, तुलसीदास चंदनघिसैं, तिलककरें रघुवीर’

तोते के ये स्वर सुनते ही तुलसीदास तुरंत श्रीराम को पहचान कर चंदन को छोड़ प्रभु के चरणों में गिर गए और जब उन्होंने उपर की ओर तो देखा तो पाया कि प्रभु श्रीराम साक्षात खड़े थे।

अपने सामने प्रभु श्रीराम को देख तुलसीदास की आंखों से आंसू बहने लगे, इसी समय भगवान श्रीराम ने चंदन को अपने हाथों से उठाकर तुलसीदास के माथे पर लगा दिया और हनुमान जी की कही बात को सच कर दिया। तुलसीदास चंदनघिसैं तिलककरें रघुवीर।



Source: Dharma & Karma

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