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अच्छे कर्म से सुधरेंगे भव

कोयम्बत्तूर.जाति, गौत्र व रूप का मद भव की परिभ्रमणा से बचा सकता है परंतु मोह रूपी कर्म पता नहीं कितने भवों में घूमाएगा। प्रेमी की झलक देख मिलने की चाह मेें सुनंदा इंतजार करती रही लेकिन कर्म ने मिलने नहीं दिया। प्रेमी की मृत्यु ने सात भवों की यात्रा करवा दी।
Coimbatore आर जी स्ट्रीट के आराधना भवन में चातुर्मास के तहत आयोजित कार्यक्रम में गुरुवार को धर्मसभा में सुनंदा-रूपसेन का प्रसंग सुनाते हुए मुनि हितेशचंद्र विजय ने कहा कि मोह हमें कई भवोंं की यात्रा करवा देता है। अल्प अवधि के मिलन में वासना रूपी मोह आ गया तो पतन तय है।
यह स्वाभाविक है कि एक विशेष बात में आसक्ति रखें, दूसरे में विरक्ति भी रखें। उन्होंने कहा कि नौकरी व्यापार के लिए हम परिवार को छोड़ कर जाते हैं तो फिर साधना के वक्त परिवार की बाधा का बहाना क्यों? मोह को हमने ही घर में प्रवेश कराया है वह कहीं से आया नहीं है। धर्म क्रियाओं में हम बच्चे परिवार का नाम लेकर समय कम होने की बात करते हैं जबकि अपने स्वार्थ के लिए पूरा समय निकाल लेते हैं।
उन्होंने कहा कि माचिस की तीली से चूल्हा भी जलाया जा सकता है और पूरा घर भी। जैसे चाहें वस्तु का उपयोग किया जा सकता है।
उन्होंने कहा कि हमारे मन में भगवान व धर्म के प्रति सच्ची लगन है ही नहीं। जब हम आर्थिक व मानसिक परेशानियों से घिरे होते हैं तो गृहस्थी छोड़ वैराग्य अपनाने का मन करता है लेकिन केवल गृहस्थी छोडऩे से वैराग्य नहीं मिलेगा। वैराग्य के लिए विवेक को अपना मद, मोह और माया का त्याग करना होगा। भगवान महावीर ने गौतम से कहा था कि सत्समागम करो। अभिमान सिर्फ आवरण है। इसे हटा दो, फिर देखो ज्ञान की रोशनी कितनी मिलती है। अच्छे कर्म कर लें तो दोनों ही भव सुधर सकते हैं।



Source: Education