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एक था निसरपुर…. डूब का दर्द… ना गूंजे गणपति बप्पा मोरिया के नारे और ना ही बन पाए ताजिए

वाटर लेवल
दिनांक 13 सितंबर
समय दिन के 3 बजे
137.350 मीटर
बड़वानी-धार जिले के कुल 192 गांव डूबे

निसरपुर से अमित एस. मंडलोई, विशाल गुप्ता
गांव की जिस चौपाल पर बचपन से लेकर वृद्धावस्था आ गई। गलियों में हर वर्ग के त्योहारों की धूम मची रहती है,लेकिन आज वहां पानी-पानी हो गया है। लोग घर छोडकर शिफ्ट तो हो गए है, लेकिन अब वे नावों से अपने घर पहुंचकर यादों को कैमरों में कैद करके वापस जा रहे है।

ये हालात धार से लगभग १३० किमी दूर निसरपुर सहित डूब में जिले के 76 गांवों के हो रहे है। निसरपुर गांव डूब में आने के बाद डेढ महीने पहले ही खाली हो चुका है। यहां पर कोई भी त्योहार नहीं मन पाए, क्योंकि जहां परिवार शिफ्ट हुए है उस जगह उन्हें खासी मशक्कत करना पड रही है। निसरपुर की आबादी लगभग 15 हजार है। यहां पर जब 127 मीटर पानी आना शुरू हुआ तो लोगों ने मकान खाली करना शुरू कर दिए। १२ सितंबर को दोपहर तीन बजे तक 137.350 मीटर पानी आ चुका है। इसका लेवल 138.68 मीटर है, लेकिन तेज बारिश से आकड़ा बढ़ सकता है। 138 मीटर पार होने के बाद जिन मकानों की छतें नजर आ रही है वे भी पानी में समा जाएंगे। पानी आने के बाद दो से तीन मंजिला मकान डूब गए है। यहां पर सरोवर का बैक वाटर 138 मीटर तक आएगा ।

अक्टूबर तक आना था 138 मीटर पानी

गुजरात के सरदार सरोवर से बैक वाटर यहां अक्टूबर तक आना था। अक्टूबर तक 138 मीटर लेवल होना था,लेकिन ये लेवल सितंबर में ही छू गया। जिसके कारण डेढ महीने पहले निसरपुर और 4 सितंबर को चिखल्दा खाली हो गया। चिखल्दा भी डूब चुकाहै। वहीं फाटे से थोडा दूर रहने वाले लोग मकान खाली करते नजर आए।

त्योहार तो दूर रहने का संकट हो गया

चिखल्दा फाटे से थोड़ी दूर पानी आना शुरू हो गया है। यहां पर लगभग 200 लोगों की बस्ती है, जो अपना घर खाली करते नजर आए। यहां पर रहने वाले छोटे खां ने बताया कि उन्हें अभी तक भूखंड नहीं मिला है। इसके बाद भी वे नम आंखों से मकान खाली करने में लगे हुए थे। उन्होंने बताया कि चिखल्दा के मजरा खेडा में 500 लोग रहते है।

150 हेक्टेयर फसल का नुकसान

मैं चिखल्दा का रहने वाला हूं। प्रोफेसर था,जिसके चलते बाहर ही रहा था। प्रोफेसर डॉ रजीतसिंह सिकरवार ने बताया बाद में सोचा था चिखल्दा में ही शेष जिंदगी बिताएंगे,लेकिन यहां पर सब डूब गया। चिखल्दा में 150 हेक्टेयर कृषि भूमि डूब गई है। हालांकि जमीनों का मुआवजा मिल चुका है।

51 साल बाद इतना पानी, लेकिन अब उम्मीद नहीं

निसरपुर में रहने वाले कन्हैयालाल मालवीय का कहना है निसरपुर ने तीन बार बाढ़ देखी है। बाढ से कई मकान डूबते थे,पानी उतरने के बाद फिर लोग आ जाते थे। मालवीय बताते है 1970,1994,2013 में बाढ से निसरपुर डूबा था,दो दिन बाद बस्ती में रौनक आ गई थी, लेकिन 2019 के सरदार सरोवर के बैक वाटर ने पूरी बस्तियां वीरान कर दी दी।

वापसी की उम्मीद से सामान छोड़, अब पानी में तैर रहे है

निसरपुर के बसस्टैंड पर चंपाबाई का मकान था। चंपाबाई अपने दो बेटों के साथ रहती थी। जब पानी बढऩे लगा तो वे इस उम्मीद के साथ सामान छोड़कर चली गई थी कि पानी उतरने पर वापस आ जाएंगी। लेकिन इस बार ऐसा नहीं हुआ।पानी के चलते चंपाबाई के बर्तन पानी में तैर रहे थे। चंपाबाई बस्ती को देखने के लिए टेकरी पर पहुंची। अपने मकान को डूबता देख उसकी आंखों में आंसू आ गए थे। अब वे शरणार्थियों के लिए बनाए गए टीन शेड में रह रही है।

शुक्रवार को पढ़ी नमाज, नहीं बैठाए ताजिए

चिखल्दा में पीढिय़ों से मोहम्मद अकरम का परिवार रह रहा था। उनका कहना था कि 4 सितंबर के पहले वाले शुक्रवार को मजिस्द में जाकर नमाज अता की थी। उसके बाद घर छोडऩा पड़ा। मोहम्मद के पिता आशिक हुसैन का मन मकान को देखने के लिए बैचेन हुआ तो वे उन्हें और अपने भाई को लेकर नाव से अपने घर चिखल्दा पहुंचे और मकान को मोबाईल में कैद कर यादें लेकर रवाना हो गए। उनका कहना कि चौकड़ी पर दो छोटे मोहर्रम बनाए थे। वहीं चिखल्दा में इस बार गणेशोत्सव मना ही नहीं।

पिता उखाड़ते रहे आशियाना,बेटा मोबाईल में था व्यस्त

डूब का दर्द बडों में है, वहीं नई पीढी इससे अनजान बनी हुई है। बच्चों को नहीं पता अब हम कहां जा रहे है। ऐसा ही नजारा चिखल्दा फाटे से दूर नजर आया। यहां पर एक खेत में रालिया तेरसिंह का परिवार वर्षों से रहता था।खेत मालिक ने काम करने लिए इन्हें यहां मकान बनाकर दे दिया था। रालिया कमर तक पानी में मकान की बिल्लियां निकाल रहा था, तो उसका मासूम बेटा बैलगाड़ी पर बैठकर मोबाईल में गेम खेल रहा था।

एक था निसरपुर.... डूब का दर्द... ना गूंजे गणपति बप्पा मोरिया के नारे और ना ही बन पाए ताजिए

sandip songara IMAGE CREDIT: sandip songara


Source: Education