जानिए चश्मा हटाने और लैंस लगाने से जुड़ी ये खास बातें
आंखों से जुड़ी समस्याएं बच्चे व बड़ों सभी को होती हैं। ज्यादातर लोग चश्मा हटवाना चाहते हैं साथ ही कुछ लोग चश्मे के नंबर को बढ़ने नहीं देना चाहते। आइये जानते हैं आंखों के लैंस से जुड़ी कुछ बातें।
लेसिक सर्जरी –
लेसिक सर्जरी क्या है? इसे कैसे अपना सकते हैं। साथ ही क्या इसे करवाने के बाद डिफेंस जॉब में प्रवेश पाना मुश्किल हो जाता है?
लेसिक सर्जरी सुरक्षित होती है, सफलता दर भी अधिक है पर इसे प्रशिक्षित लेसिक एक्सपर्ट से ही कराएं। इसके दुष्प्रभाव कम ही हैं। लेसिक से पहले आंखों की पुतली के स्कैन (टोपोग्राफी) और पुतली की मोटाई की पैकिमेट्री जांच जरूरी है। यदि पुतली में कोई कमजोरी (एक्टेटिल कॉर्नियल डिसऑर्डर) है तो लेसिक नहीं करते। डिफेंस के कुछ क्षेत्र जैसे कॉम्बैट ट्रेनिंग आदि में दिक्कत आ सकती है। लेकिन एग्जामिनेशन में कैंडिडेट सफल हो सकते हैं। फिर भी लेसिक से पहले भर्ती नियम जरूर देख लें।
एलर्जिक कंजक्टिवाइटिस –
धूप में निकलने, पढ़ाई के समय आंखों में जलन, खुजली, दर्द, पानी निकले व देखने में परेशानी हो तो क्या करें?
ये समस्याएं एलर्जिक कंजक्टिवाइटिस के कारण होती हैं जो धूल, धूप व धुएं के अधिक संपर्क में आने से होती हैं। एक ही जगह पर नजदीक से लंबे समय तक काम करने या पढ़ने से ड्राय आई की समस्या होती है। इलाज के रूप में निश्चित समय तक आईड्रॉप्स व एंटीएलर्जिक दवाएं देते हैं। घर से बाहर काला चश्मा पहनकर निकलने की सलाह देते हैं।
सामान्य प्रश्न –
भेंगापन व कॉर्निया के बढ़ते स्पॉट का इलाज क्या है?
भेंगेपन की बीमारी किस उम्र में हुई, जानना जरूरी है। उम्र के अनुसार इलाज अलग है। आंखों का टेढ़ापन सर्जरी से किसी भी उम्र में सीधा कर सकते हैं लेकिन आंखें कितनी क्रियाशील रहेंगी यह कहना मुश्किल है। वहीं यदि आंख के काले भाग में स्पॉट बढ़ता जा रहा है तो यह किसी गंभीर रोग का लक्षण हो सकता है। नेत्र रोग विशेषज्ञ से संपर्क करें।
आंखों के विकास पर चश्मे का नंबर निर्भर-
छोटी उम्र या लंबे समय तक यदि चश्मा लगा है तो क्या इसे हटाना संभव है? साथ ही आंखों की रोशनी बढ़ाने के लिए कोई टिप्स दें?
चश्मा लेसिक तकनीक से हटवा सकते हैं। सामान्यत: 18 साल की उम्र के बाद इस सर्जरी को करते हैं। लेकिन यदि उम्र 18 से कम, चश्मे का नंबर एक साल में एक डायप्टर से ज्यादा या बार-बार न बदले व यदि आंख की पुतली कमजोर है तो लेसिक नहीं करते। डाइट में पालक, मेथी व टमाटर खाएं। आंखों को आराम देने के लिए चश्मा पूरे समय लगाएं। कम उम्र में यदि सिलैंड्रिकल नंबर तेजी से बढ़े तो किरेटोकोनस रोग हो सकता है। कॉर्निया की टोपोग्राफी व पैकिमेट्री जांच करवाकर ही सही इलाज लें।
इस तरह की जाती है-
आंख का आकार सामान्य से छोटा या बड़ा होने पर चश्मा लगाने की जरूरत पड़ती है। लेसिक में आंख की पुतली (कॉर्निया) के आकार में बदलाव करते हैं। इससे जो बाहरी रोशनी आंख के पर्दे पर केंद्रित नहीं हो पाती, वह सही जगह पर बिना चश्मे के फोकस होने लगती है। यह तीन प्रकार है। आंख के आगे की पुतली के फ्लैप को ब्लेड से उठाते हैं (ब्लेड लेसिक)। बिना ब्लेड के उठाना ब्लेडलैस या फ्लैमटोलेसिक कहलाती है। स्माइल तकनीक मेंं आंखों की पुतली के फ्लैप को उठाने के बजाय 3-4 एमएम के चीरे से सर्जरी करते हैं।
फायदेमंद व सावधानी –
जिनके कॉर्निया की मोटाई बहुत कम या जो स्कूबा डाइविंग जैसे खेलों में शामिल हैं उनके लिए यह उत्तम है। 18 साल (आंखों के पूर्ण विकास) के बाद इस सर्जरी से माइनस या प्लस का चश्मा हटा सकते हैं। माइनस 8 डायप्टर तक यह सर्जरी सुरक्षित है। सिलैंड्रिकल नंबर 4 डायप्टर तक में सुरक्षित है लेकिन 4-6 के बीच थोड़ी जटिलता रहती है। प्लस में नंबर 4 डायप्टर तक भी सेफ है। व्यक्ति की आंखों का नंबर ढाई या तीन है तो नियमित चश्मा पहने।
सर्जरी से पहले –
सर्जरी से चार दिन पहले से कॉन्टैक्ट लैंस न पहनें। कोई परफ्यूम या स्प्रे लगाकर न जाएं। वर्ना सर्जरी में दिक्कत होती है। 15-20 मिनट की लेजर सर्जरी के बाद रोगी घर जा सकता है। शुरू के 1-2 दिन थोड़ी असहजता महसूस होती है लेकिन बाद में वह सभी कार्य कर सकता है। स्विमिंग, स्कूबा डाइविंग आदि खेल एक हफ्ते या एक माह के करीब तक न खेलें।
Source: Health
