Bihar Politics: क्या 2015 की तरह इस बार भी प्रशांत किशोर ने निभाई महागठबंधन में बड़ी भूमिका?
Prashant Kishor on Nitish Kumar: बिहार में एक बार फिर से महागठबंधन की सरकार बनने जा रही है। अब इस पूरे घटनाक्रम में चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर की भूमिका को लेकर भी सवाल उठने लगे हैं। सवाल ये कि क्या 2015 की तरह ही परदे के पीछे से पीके ने ही तो इस महागठबंधन की सरकार का प्लान नहीं बनाया? जब इस मामले को लेकर प्रशांत किशोर से सवाल किया गया तो उन्होंने कहा कि 2015 और आज की स्थिति में अंतर हैं। तब बीजेपी और पीएम मोदी के खिलाफ चुनाव लड़ा गया था, लेकिन आज सियासी समीकरण अलग हैं।
प्रशांत किशोर की क्या रही भूमिका?
नीतीश कुमार का बीजेपी को छोड़कर राजद के साथ जाने में में प्रशांत किशोर से उनकी भूमिका को लेकर सवाल किया गया तो उन्होंने इससे इनकार कर दिया। मीडिया से बातचीत में चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने कहा, “सरकार बदलने में मेरा न कोई योगदान है और न ही कोई भूमिका है और न ही मेरी कोई ऐसी इच्छा है।” बता दें कि इस बयान से पीके और नीतीश कुमार के संबंधों में आई खटास की झलक भी दिखाई दे रही है जो काफी लंबे समय के से दोनों के बीच है।
उन्होंने आगे कहा, “मैं इस बदलाव को ऐसे देखता हूँ कि 2012-13 से जो अस्थिरता का दौर बिहार में शुरू हुआ है वो जारी है। ये छठी सरकार है बस एक ही चीज स्थिर है और वो है सीएम नीतीश कुमार।”
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2015 और आज का महागठबंधन कितना अलग?
जब उनसे नीतीश की पलटी को लेकर सवाल किया गया तो उन्होंने कहा, “गलत-सही जनता तय करेगी। 2015 का महागठबंधन का परिदृश अलग था। तब मोदी और बीजेपी के विकल्प के तौर उभरने के लिए चुनाव लड़ा गया था। अब वैसा माहौल नहीं है। इसमें कोई चुनावी रणनीति शामिल नहीं हैं। ये सियासी रणनीतियां हैं। सरकार बदली सीएम नीतीश कुमार ही रहे, लेकिन काम काज का तरीका नहीं बदला।”
प्रशांत किशोर पहले जैसे प्रासंगिक नहीं रहे
गौरतलब है कि चुनावी रणनीतिकार बीजेपी के खिलाफ रणनीति बनाने में कई विपक्षी दलों के साथ काम कर चुके हैं, लेकिन आज के परिदृश्य में वो पहले जैसे प्रासंगिक नहीं रहे। कांग्रेस से लेकर टीएमसी और जेडीयू तक के लिए उन्होंने रणनीतियां बनाई हैं। हालांकि, जिस भी पार्टी के साथ उन्होंने काम किया है उसके आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप भी किया है जिस कारण कई पार्टियों में बिखराव तक की स्थिति बनी है। पश्चिम बंगाल और बिहार में भी यही देखने को मिला था। इसी कारण कांग्रेस हो या जेडीयू, कई राजनीतिक दलों ने पीके से दूरी बना ली है।
2015 में पीके ने महागठबंधन की चुनावी रणनीति में निभाई थी अहम भूमिका
बता दें कि वर्ष 2015 के महागठबंधन की चुनावी रणनीति में प्रशांत किशोर ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। ये पीके ही थी जिन्होंने चुनाव के दौरान नारा गढ़ा था कि ‘बिहार में बहार है, नीतीशे कुमार है।’ पीएम मोदी की लहर के बीच बीजेपी सत्ता से बाहर रखने में उन्होंने इस महागठबंधन की रणनीति तैयार की थी। हालांकि, 2017 में नीतीश कुमार ने फिर से बीजेपी का हाथ थाम लिया था। इसके कुछ ही समय बाद उनके संबंध नीतीश कुमार से खराब हो गए थे।
नीतीश कुमार और पीके में पहले वाली बात नहीं
बीजेपी के साथ नीतीश कुमार की केमिस्ट्री मजबूत हुई तो प्रशांत किशोर के साथ ये बिगड़ती चली गई। वर्ष 2018 में प्रशांत किशोर आधिकारिक तौर पर जेडीयू के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष तब घोषित किये गए लेकिन पार्टी में पीके की दखलअंदाजी ने नीतीश कुमार को परेशान कर दिया। इसके बाद दोनों के बीच संबंध खराब होते चले गए। 2019 के बाद से दोनों के संबंधों में आई खटास कम नहीं हुई। कई अवसरों पर पीके ने बिहार सरकार को निशाने पर भी लिया है। प्रशांत किशोर का सियासी पारी खेलने की महत्वाकांक्षा ने भी उन्हें अप्रासंगिक कर दिया है।
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Source: National