माता कूष्मांडा ने रची थी सृष्टि, आराधना करने से मां हर लेती है सारे कष्ट
नूपुर शर्मा
जयपुर. शारदीय नवरात्रि के चौथे दिन मां कुष्मांडा की आराधना की जाती है। माँ के रूप में कोमल और हल्की मुस्कान है। माता द्वारा सृष्टि की रचना के कारण उन्हें कूष्मांडा देवी कहा जाता है। मां की पूजा करने से भक्तों के सभी रोग और दुख दूर हो जाते हैं। आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को विधिवत माता की पूजा की जाती है। शास्त्रों के अनुसार जो भक्त नवरात्रि के चौथे दिन मां कुष्मांडा की पूजा करता है, उसे जीवन में प्रसिद्धि, दीर्घायु, शक्ति और स्वास्थ्य का आशीर्वाद मिलता है।
मां हैं अष्टभुजा देवी
मां कूष्मांडा सिंह पर विराजमान रहती हैं। सृष्टि की रचना करने वाली देवी मां मंद मुस्कान के साथ आठ भुजाओं वाली है इस कारण उन्हें अष्टभुजा देवी भी कहा जाता है। देवी की आठ भुजाओं में कमंडल, धनुष बाण, शंख, चक्र, गदा, सिद्धियाँ, निधियों से जप की माला और अमृत कलश हैं। माता का पसंदीदा रंग हरा और पीला है। इस दिन अत्यंत शुद्ध और शांत मन से देवी कूष्मांडा के स्वरूप का ध्यान कर माता के मंत्र का जाप करना चाहिए।
मां कुष्मांडा का सूर्य के समान है तेज
मां कुष्मांडा सौरमंडल के भीतरी भाग में निवास करती हैं। मां की क्षमता, शक्ति और तेज का वर्णन उनकी कथा में मिलता है, उनके शरीर का तेज सूर्य के समान है और मां के तेज और प्रकाश से समस्त दिशाएं प्रकाशित होती हैं। यह भी कहा जाता है कि सूर्य, चंद्रमा और अन्य ग्रहों की उत्पत्ति मां की मुस्कान से हुई है। जब ब्रह्मांड का अस्तित्व नहीं था, तो इन्हीं देवी ने ब्रह्मांड की रचना की थी। इसलिए, मां ब्रह्मांड का आदि-स्वरूपा, आदिशक्ति हैं।
मां कूष्मांडा का एकमात्र मंदिर
भक्तों का मानना है कि देवी कूष्मांडा का एक ही मंदिर है जिसे काशी में दुर्गा कुंड वाली दुर्गा के नाम से जाना जाता है। काशी में देवी के प्रकट होने की कथा राजा सुबाहू से जुडी है। दुर्गा कुंड क्षेत्र में देवी कूष्मांडा का मंदिर स्थित है। उन्हें दुर्गा कुंड वाली दुर्गा के नाम से भी जाना जाता है।
मां चामुंडा मंदिर में लगती है श्रद्धालुओं की भीड़
उत्तर प्रदेश के हसनपुर नगर में मां चामुंडा मंदिर है। जहां नवरात्र के चौथे दिन भक्तों द्वारा मां कुष्मांडा की पूजा की जाती है. इस दौरान चामुंडा मंदिर में भक्तों की भीड़ लगी रहती है।
डिस्केलमर – यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित है पत्रिका इस बारे में कोई पुष्टि नहीं करता है। इसे सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किया गया है।
Source: Education