Puja Vidhi:: पंचोपचार और षोडषोपचार पूजन विधि में क्या हैं अंतर, पूजा में आएंगी काम
Panchopachar Puja Vidhi: दरअसल पूजन की कई विधियां हमारे यहां प्रचलित हैं। नाम के अनुसार ही इनमें चरणों की संख्या स्पष्ट होती है, जैसे पंचोपचार में पांच चरण, दशोपचार में दस और षोडषोपचार में 16 आदि (step to worship)।
पंचोपचार पूजन विधि का अर्थ है पूजन की संक्षिप्त यानी सुगम विधि। इस विधि में भगवान का संक्षिप्त विधि से पूजन किया जाता है। इस विधि में पांच उपचार (कर्तव्य) बताए गए हैं। इसके तहत भगवान को स्नान कराने और वस्त्र पहनाने के बाद यह कार्य किए जाते हैं।
1. चंदन, केसर, रोचन आदि (अष्ट गंध) अनामिका अंगुली से अर्पित करें और रोली अक्षत लगाएं।
2. फूल अर्पित करनाः दूसरा चरण प्रभु के चरणों में ताजे फूल अर्पित करना है। सभी देवों के लिए विशेष पुष्प होते हैं, कोशिश कर यह चढ़ाएं। भगवान को माला पहनाएं। इसके तहत गणेशजी को दूर्वा, शंकरजी को बेलपत्र, दुर्गा जी को लाल पुष्प, विष्णुजी को कमल और सूर्य देव को लाल कनेर(सभी को सफेद फूल भी) चढ़ा सकते हैं।
3. धूप निवेदनः इस चरण में सभी देवी देवताओं को धूप निवेदन किया जाताहै। इसके तहत नई तिली से सभी के लिए धूप जलाएं(गुग्गुल, अगर, गुलाब आदि की धूप)
4. आरती-नीराजनः इसके बाद शुद्ध घी से आरती करना चाहिए, नहीं तो तेल या कपूर से भी आरती कर सकते हैं। इस दौरान आरती की थाल दाएं हाथ में लेकर देवों के दायीं ओर घुमाएं और बाएं हाथ से घंटी बजाएं। अपने स्थान पर दो बार दाहिनावर्त घूमें, परिक्रमा करें। इसके बाद आरती पढ़ें, ऊँ जय जगदीश हरे और कर्पूर गौरं करूणावतारं आरती जरूर गाएं।
5. नैवेद्य अर्पणः इस चरण में थाली में नैवेद्य लेकर देवों को समर्पित करें, शुद्ध घी से बनी चीजें जरूर अर्पित करें( मीठी चीजें-मिश्री, इलायची लड्डू आदि जरूर हो और स्टील की जगह तांबे के बर्तन में नैवेद्य अर्पित करें), गिलास में पीने का पानी जरूर रखें। (नैवेद्य में तुलसी पत्र डालकर चारों ओर जल घुमाएं, घंटी बजाएं)
इसके बाद मंत्र जाप करें और अपनी मनोकामना प्रस्तुत करें और पूजन में त्रुटि के लिए क्षमा मांगें।
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षोडषोपचार पूजा विधि (Shodshopachar puja Vidhi )
यह विस्तृत पूजा विधि है। इसमें पूजा के 16 चरण अपनाए जाते हैं। इस विधि का पूजा पाठ में सबसे अधिक प्रयोग किया जाता है। इसके तहत ये चरण फॉलो किए जाते हैं (ways to worship hinduism)।
1. देव आवाहनः इस चरण में सबसे पहले देव आवाहन किया जाता है। इसमें सभी देवताओं को उनके अंग और शक्तियों का आवाहन किया जाता है और मूर्ति में प्रतिष्ठित प्राण की पूजा आराधना की जाती है। मंत्र उच्चारण के दौरान जातक को दाहिने हाथ में अक्षत, चंदन, पान, सुपारी, फूल, मिष्ठान जल लेकर उसे आह्वानित देवी देवता के चरणों में अर्पित कर दिया जाता है।
2. देवगण के लिए आसनः इस चरण में आह्वानित देवी-देवता को आसन दिया जाता है। इसके लिए सुंदर भावना से उनका आदर करते हुए उनके नाम के साथ नमः बोलते हुए पुष्प अर्पित करते हैं।
3. चरण धोनाः इसके तहत देवी देवता का चरण धोकर उनका सम्मान करते हैं। इसके लिए ताम्रपत्र में आचमनी से जल अर्पित करें, और ऐसी भावना मन में लाएं कि आप आराध्य के पांव धो रहे हैं।
4. अर्घ्य(देवताओं को हाथ धुलने के लिए जल देना) इस चरण में ताम्रपत्र में आचमनी से जल डालकर आह्वानित देव गण को अर्घ्य दिया जाता है। इसके बाद आचमनी में जल डालकर उसमें चंदन, अक्षत, पुष्प डालकर मूर्ति पर चढ़ाते हैं।
5. आचमन (देवों का मुंह प्रक्षालन)ः इस चरण में देवों के मुंह प्रक्षालन के लिए आचमन देने की भावना रखी जाती है। इसके तहत पुनः ताम्रपत्र में जल प्रदान करते हैं।
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6. स्नानः इस चरण में इस भावना से ताम्रपत्र में जल प्रदान करते हैं कि आह्वानित देव को स्नान के लिए जल प्रदान कर रहे हैं। इसी भाव से ताम्रपत्र में मंत्र समाप्ति के दौरान नमः बोलते हुए जल डालते हैं। यदि धातु की मूर्ति है तो स्नान कराने के भाव से अभिसिंचन करते हैं। इसके बाद स्वच्छ कपड़े से पोंछकर श्रृंगार किया जाता है और अक्षत चंदन अर्पित किया जाता है। (पंचामृत से भी स्नान करा सकते हैं)
7. देवताओं को वस्त्र पहनानाः इस चरण में सुंदर वस्त्र पहनाया जाता है, सामान्य पूजा में कलावा आदि चढ़ाया जाता है।
8. यज्ञोपवीत अर्पणः आठवें चरण में मंत्र उच्चारण के बाद देवताओं को यज्ञोपवीत अर्पित किया जाता है। या मौली-कलावा का टुकड़ा भी अर्पित कर सकते हैं।
9. तिलकः इस चरण में अनामिका अंगुली से देवी देवताओं को रोली का तिलक लगाया जाता है। पुष्प में रोली, चंदन लगाकर भी ताम्र पत्र में अर्पित कर सकते हैं।
10. अक्षत समर्पणः इस भावना के साथ कि अब तक के पूजन कर्म में कमी की पूर्ति के लिए पीले अक्षत अर्पित करें।
11. पुष्प अर्पणः देवी देवताओं को पुष्प अर्पित करें।
12. धूप दर्शनः आराध्य की आवभगत के लिए धूप दर्शन कराएं।
13. दीप दर्शनः इस प्रक्रिया में दीपक जलाकर आरती उतारें।
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14. नैवेद्य का भोगः इस चरण में ताम्र पत्र में मेवा, मिष्ठान अर्पित करें। गाय के घी, दूध से बनी चीजें अर्पित करना अधिक अच्छा है। यह सात्विक और स्वच्छ रहना चाहिए।
15. पान सुपारी अर्पणः इस चरण में डंठल वाला पान और संपूर्ण सुपारी अर्पित किया जाता है।
16. दक्षिणा अर्पणः दक्षिणा का हमारी पूजा पद्धति में बड़ा महत्व है। इस चरण में श्रद्धा भाव और सामर्थ्य से दक्षिणा को मस्तक से लगाते हुए किसी ताम्रपत्र में अर्पित करें, बाद में गरीब को दान कर दें। इसके बाद भूल चूक के लिए क्षमा मांगते हुए ताम्रपत्र में अक्षत समर्पित करें और पूजा में कोर कसर के लिए माफी मांगें। इसके बाद आरती करें।
Source: Dharma & Karma