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न्यायिक या पुलिस हिरासत में किसी महिला का वर्जिनिटी टेस्ट करना असंवैधानिक: दिल्ली हाईकोर्ट

सिस्टर अभया हत्याकांड की दोषी सिस्टर सेफी की याचिका में सुनवाई करते हुए दिल्ली हाईकोर्ट में न्यायमूर्ति स्वर्ण कांता शर्मा ने वर्जिनिटी टेस्ट को असंवैधानिक बताया। न्यायमूर्ति स्वर्ण कांता शर्मा की एकल न्यायाधीश पीठ ने कहा कि “केरल में 1992 में सिस्टर अभया की हत्या के लिए दोषी ठहराई गई सिस्टर सेफी का वर्जिनिटी टेस्ट करना असंवैधानिक था। हिरासत में एक व्यक्ति की बुनियादी गरिमा को बरकरार रखा जाना चाहिए, जिसका इस मामले में उल्लंघन किया गया है।”

इसके साथ ही न्यायमूर्ति स्वर्ण कांता शर्मा ने फैसला सुनाते हुए कहा कि “न्यायिक या पुलिस हिरासत में जांच के तहत महिला बंदी या आरोपी का वर्जिनिटी टेस्ट करना असंवैधानिक है, जिसे संविधान के अनुच्छेद 21 का उल्लंघन घोषित किया जाता है।”

CBI के खिलाफ सिस्टर सेफी के पास कई कानूनी विकल्प
दिल्ली हाईकोर्ट ने जांच एजेंसी को यह सुनिश्चित करने के लिए निर्देश दिए कि अधिकारी इस संबंध में संवेदनशील हों। इसके साथ ही न्यायमूर्ति ने कहा कि सिस्टर के पास कई कानूनी उपाय उपलब्ध हैं, क्योंकि उसने दावा किया है कि उसकी वर्जिनिटी टेस्ट की रिपोर्ट लीक हो गई थी और हाइमनोप्लास्टी की झूठी कहानी भी फैलाई गई। इसके अलावा न्यायमूर्ति शर्मा ने आपराधिक मामला खत्म होने के बाद अपने मानवाधिकारों के उल्लंघन के लिए मुआवजे की मांग करने के लिए सिस्टर सेफी को स्वतंत्रता भी दी।

 

क्या है सिस्टर अभया की हत्याकांड का मामला?
सिस्टर अभया 27 मार्च 1992 को केरल के कोट्टायम जिले के सेंट पायस कॉन्वेंट में एक कुएं में मृत पाई गई थीं। स्थानीय पुलिस और राज्य की अपराध शाखा ने उस समय कहा था कि यह आत्महत्या का मामला है। राज्य में तब के मुख्यमंत्री करुणाकरन ने कहा कि जांच ठीक से नहीं हुई है, जिसके बाद यह मामला CBI के पास पहुंचा। 2009 में CBI ने अपनी चार्जशीट में कहा था कि मृतक ने जाहिरा तौर पर सिस्टर सेफी, फादर कोट्टूर और एक तीसरे आरोपी फादर जोस पूथ्रीकायिल को आपत्तिजनक स्थिति में देखा था। इसके बाद दिसंबर 2020 में CBI की विशेष अदालत ने इस बात की पुष्टि की और माना कि सिस्टर सेफी और फादर कोट्टूर ने पीड़िता के सिर पर घातक प्रहार किया, जिससे उसकी मौत हो गई। CBI की विशेष अदालत ने IPC के तहत हत्या के अपराध में सिस्टर सेफी और फादर कोट्टूर को आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। पिछले साल जून में केरल उच्च न्यायालय ने सजा पर रोक लगा दी थी और दोषियों को जमानत दे दी।

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Source: National