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क्रॉनिक किडनी डिजीज में देरी से सामने आते लक्षण, जानें इसके बारे में

किडनी है शरीर की फिल्टर मशीन है । हाई बीपी, डायबिटीज जैसे रोगों को नजरअंदाज नही करना चाहिए। हाई बीपी और डायबिटीज किडनी (गुर्दे)के ये सबसे बड़े दुश्मन हैं। 7,35000 रोगी देशभर में क्रॉनिक किडनी डिजीज की चपेट में आकर अपनी जान गंवा देते हैं। 2,20,000 लोगों को किडनी प्र्रत्यारोपण की जरूरत है, 15 हजार किडनी ट्रांसप्लांट ही हो पाते हैं। 90% किडनी ट्रांसप्लांट मामलों में किसी करीबी डोनर (ब्लड रिलेशन ) से किडनी ली जाती है। 1971 से 2015 तक देश में 21,395 किडनी ट्रांसप्लांट किए गए, इनमें 783 कैडेवर डोनर से मिले।

इसलिए जरूरी स्वस्थ किडनी –
किडनी शरीर का अहम अंग है जिसे फंक्शनल यूनिट भी कहते हैं। एक किडनी में करीब दस लाख नेफ्रॉन्स होते हैं। ये शरीर में मौजूद विषैले पदार्थों को यूरिन के जरिए बाहर निकालती है। यह शरीर में तरल का स्तर संतुलित रखती है ताकि पूरे शरीर में पानी की जरूरी मात्रा पहुंच सके। किडनी खून बनाने और इसे फिल्टर करने का भी काम करती है। इसमें विशेष तरह का हार्मोन एरीथ्रोपोएटिन होता है जो खून बनाने की प्रक्रिया को बढ़ाता है। एक स्वस्थ व्यक्ति की किडनी का वजन करीब 150 ग्राम जबकि लंबाई 10 सेंटीमीटर होती है।

देरी से लक्षणों की पहचान –
क्रॉनिक किडनी डिजीज (सीकेडी) की चपेट में आने के बाद लक्षण अक्सर देर से ही सामने आते हैं। इसमें सबसे पहले रोगी के चेहरे और पैरों पर सूजन, खून की कमी, भूख न लगना, पेशाब की मात्रा में कमी, शरीर में खुजली होना, शरीर का रंग काला पड़ना आदि लक्षण सामने आते हैं। सीकेडी के रोगी में कार्डियोवैस्कुलर डिजीज की समस्या भी होती है। वहीं महिलाओं को माहवारी के दौरान काफी दर्द और यौन संबंध बनाने में तकलीफ होती है। सीकेडी में किडनी पहले फूलती है फिर सिकुड़ कर धीरे-धीरे बेहद छोटे आकार की हो जाती है।

मददगार जांचें –
किडनी रोग से बचाव के लिए व्यक्ति को रेगुलर किडनी फंक्शन टैस्ट, ब्लड यूरिया, सिरम, ब्लड शुगर, ब्लड प्रेशर की जांचें करानी चाहिए। तकलीफ बढऩे पर सीटी स्कैन, अल्ट्रासाउंड व एमआरआई सेे भी किडनी की स्थिति जानते हैं।

बड़े कारण, जिनसे किडनी का कार्य बाधित होता है
डायबिटीज : महिलाओं में ग्लोमेरुलोनेफ्राइटिस और डायबिटीज मेलाइटस से क्रॉनिक किडनी डिजीज होता है। मधुमेह किडनी का काम बाधित करता है। ग्लोमेरुलोनेफ्राइटिस (ऑटोइम्यून रोग) में किडनी की कोशिकाओं व नेफ्रॉन्स में संक्रमण से उसमें सूजन आती है जिससे रक्त साफ नहीं हो पाता।

हाई ब्लड प्रेशर : लंबे समय से हाई ब्लड प्रेशर से किडनी पर दबाव बढ़ता है। माहवारी या प्रसव के दौरान अधिक रक्तस्त्राव से ब्लड प्रेशर अनियंत्रित हो जाता है। ऐसे में पहले किडनी में रक्तप्रवाह धीमा होता है उसके बाद रक्तप्रवाह पूरी तरह बंद हो जाता है। ऐसे में सडन रीनल फेल्योर के मामले ज्यादा देखे जाते हैं।

प्रेग्नेंसी : कई मामलों में गर्भावस्था के दौरान हार्मोन्स में होने वाला बदलाव एक्यूट और क्रॉनिक किडनी रोग का भी कारण बनता है जिससे 8 प्रतिशत महिलाओं व नवजात बच्चों की मृत्यु हो जाती है। वहीं मेनोपॉज के दौरान शरीर मेें एस्ट्रोजन हार्मोन की कमी से भी सीकेडी के मामले ज्यादा देखे जाते हैं।

एंटीबॉडीज जिम्मेदार:
महिलाओं में किडनी रोग से जुड़ा एक रोग है ल्यूपस नेफ्रोपैथी। इसमें महिला के शरीर में उसी के अंगों के खिलाफ एंटीबॉडीज बनने लगती हैं जो किडनी पर असर करती हैं। ये किडनी की स्वस्थ कोशिकाओं को खत्म कर उस अंग की कार्यक्षमता को घटती है। इसका समय रहते इलाज जरूरी है।

अन्य वजह : यूटीआई, मोटापा, एचआईवी भी महिलाओं में किडनी रोग के लिए जिम्मेदार हैं। जो लोग जोड़ों के दर्द, बुखार व अन्य समस्याओं की दवा बिना डॉक्टरी सलाह के लेते हैं उन्हें भी किडनी रोग की आशंका अधिक रहती है। किडनी का रक्त को साफ करने का काम जब बंद हो जाता है तो किडनी डेड हो जाती है।



Source: Health