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आरती का दीया गलत दिशा में लगा है तो आप हो सकते हैं कंगाल, जान लें गलती तो नहीं कर रहे

क्या होती है आरती

मंदिर या घर में किसी देवी देवता की पूजा के बाद अंत में उनकी महिमा का बखान करने वाले गीत गाए जाते हैं, इस दौरान एक थाल में दीपक लेकर देवी देवताओं के सम्मुख घुमाया जाता है। इसे ही आरती कहते हैं। इसके कुछ शास्त्र सम्मत नियम हैं। इन्हीं के अनुसार आरती करनी चाहिए।

आरती को आरात्रिक या नीराजन भी कहते हैं। मान्यता है कि आराध्य के पूजन में जो कुछ भी कमी रह जाती है, उसकी पूर्ति आरती से हो जाती है। सामान्य रूप से पांच बत्ती वाले दीपक से आरती की जाती है, लेकिन एक सात और अन्य विषम संख्या की बत्ती वाले दीपक से भी आरती कर सकते हैं।

दीपक की लौ की ऐसी रहे दिशाः धर्म ग्रंथों के अनुसार आरती के समय दीपक की लौ पर विशेष ध्यान देना चाहिए, क्योंकि आरती के समय गलत दिशा में दीपक की लौ जलने पर लाभ की जगह नुकसान हो सकता है। धर्म ग्रंथों के अनुसार दीपक की लौ की दिशा पूर्व की ओर रखने से लंबी आयु प्राप्त होती है।

आरती में दीपक की लौ उत्तर दिशा में होने से धन लाभ होता है, और दीपक की लौ बीच में होने या चारों ओर रखने से भी शुभ फल मिलते हैं। लेकिन आरती में दीपक की बत्ती की लौ पश्चिम की ओर रखने से दुख में वृद्धि होती है, अगर लौ दक्षिण की दिशा में है तब भी नुकसान होता है।
आरती का लाभः धार्मिक ग्रंथों के अनुसार पूजा के बाद आरती करने से व्यक्ति की भावनाएं तो पवित्र होती ही हैं, आरती के दीये में जलने वाले घी और आरती में बजने वाले शंख की ध्वनि से वातावरण से कीटाणु नष्ट होते हैं।

धार्मिक ग्रंथों में तो आरती की महिमा यह तक बखानी गई है कि आरती जो व्यक्ति आरती देखता है, आरती करता है उसकी कई पीढ़ियों का उद्धार हो जाता है। आरती का उद्देश्य विनम्रता और कृतज्ञता की भावना से देवताओं के सामने जलती बत्तियों को लहराना है। इससे भक्त दिव्य अनुभूति में डूब जाते हैं। अंतरिक्ष, पवन, आग, पानी और पृथ्वी का प्रतिनिधित्व करता है।

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आरती का महत्व

स्कंद पुराण के अनुसार भगवान विष्णु ने कहा कि जो व्यक्ति घी के दीपक से आरती करता है, वो कोटि कल्पों तक स्वर्ग में निवास करता है, जो व्यक्ति मेरे सामने हो रही आरती का दर्शन करता है, उसे परमपद की प्राप्ति होती है, अगर कोई कपूर से आरती करता है तो उसे अनंत में प्रवेश मिलता है।

आरती करने की विधि

आरती करने के लिए सबसे पहले आरती की थाल पर स्वास्तिक का निशान बनाना चाहिए। इसके बाद पुष्प और अक्षत के आसन पर दीपक की बाती और कपूर रखकर जलाना चाहिए। उसके बाद इसे भगवान के सामने इस तरह घुमाएं कि ऊँ की आकृति बने। इसके पहले प्रार्थना करें कि हे गोविंद, आपकी प्रसन्नता के लिए मैंने रत्नमय दीये में कपूर और घी में डुबोई बाती जलाई है, यह मेरे जीवन के अंधकार दूर कर दे।

भगवान की आरती के लिए सबसे पहले चार बार चरण में सीधी दिशा में घुमाएं, उसके बाद दो बार नाभि पर, एक बार मुखमंडल पर और सात बार सभी अंगों की ओर करें। इसके बाद शंख में जल लेकर भगवान के चारों ओर घुमाकर अपने ऊपर और भक्तजनों पर जल डाल दें। अंत में ठाकुरजी को प्रणाम करें, मंदिरों में विषम संख्या और घर में एक बाती वाले दीये से आरती करें।

आरती लेना का सही तरीका

आरती लेने का भी नियम है, आरती लेने के लिए आरती की लौ को हाथ में लेकर सिर पर घुमाएं, और उसके बाद आरती की लौ को माथे पर धारण करें।



Source: Religion and Spirituality