Manipur Violence: आखिर मणिपुर के लोग क्यों नहीं कर रहे सुरक्षाबलों पर भरोसा? मणिपुर पुलिस को भी इससे दिक्कत
Manipur Violence: मणिपुर 3 मई से भीषण जातीय हिंसा से जूझ रही है। सरकार की एक भी कदम यहां सही साबित नहीं हो रही। एक महीने से ज्यादा समय से मैतेई और कुकी समुदाय के बीच चल रही हिंसा के बीच खेमनलोक इलाके में फिर से हिंसा का दौर देखा गया। यह इलाका कुकी बाहुल्य कांगपोकपी की सीमा के करीब है जो इंफाल पूर्व से लगा हुआ है जहां इस समुदाय की अच्छी पकड़ है। ऐसे में शांति बहाल करने की स्थिति को लेकर सुरक्षाबालों की हालत, उस छेद वाली नाव से पानी हटाने जैसी हो गई है, जिसमें से जितना पानी निकाला जाता है, उससे दोगुनी गति से उसमें पानी फिर भर जाता है। ऐसा क्यों हो रहा है, इसके पीछे सबसे बड़ी वजह ये है की स्थानीय लोगों को केंद्र द्वारा भेजे गए सुरक्षादलों पर भरोसा नहीं हो पा रहा और दूसरी सबसे बड़ी वजह ये है की दोनों ही समुदाय से संबंध रखने वाले मणिपुर के पुलिसकर्मी अपने-अपने समुदाय के लिए सहानुभूति का भाव रखते हैं। इस वजह से सूचना को पहुंचने में वक्त लग जाता है।
नया मामला क्या है जानिए
मणिपुर के खेमनलोक इलाके में 36 घंटों के भीतर हिंसा की दो हिंसक घटनाएं घटी। जब सुरक्षाबलों को इसकी जानकारी मिली तो वह तुरंत हिंसाग्रस्त इलाके के लिए रवाना हो गए पहुंचने लेकिन वो वहां तक पहुंच ही नहीं पाए। क्योंकि महिलाओं और बच्चों ने सड़क को घेर रखा था और जब तक रास्ता साफ होता तब तक दोनों समुदाय के 9 लोगों की मौत हो चुकी थी। तो आप समझ गए होंगे की यहां सुरक्षाबलों के सामने कई तरह की चुनौतियां है जैसे इनफार्मेशन समय पर न मिलना, स्थानीय लोगों का भरोसा न करना, पुलिस द्वारा साथ न मिलना आदि।
पुलिस और सिक्योरिटी फोर्स आमने-सामने
बता दें कि राज्य की चुराचांदपुर के सुगनु में असम राइफल को भी एक जगह सड़क खुदी हुई मिली। जब उन्होंने स्थानीय पुलिस स्टेशन में इसकी शिकायत दर्ज की तो दोनों के बीच बहस हुई। पुलिस का सीधा आरोप है कि पैरामिलेट्री फोर्स उनके काम में हस्तक्षेप कर रही है। मिडिया में छपी रिपोर्ट बताती है की किस तरह मणिपुर में सुरक्षा बलों को चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।
सुरक्षा बलों का कहना है कि प्रत्येक हिंसा की वारदात में सुरक्षाकर्मियों को कई स्तर पर विरोध का सामना करना पड़ता है। बड़े अधिकारियों का भी यही कहना है की वो महिलाओं या बच्चों पर लाठीचार्ज नहीं कर सकते हैं। ऐसे में जब तक भीड़ को हटाया जाता है तब तक नुकसान हो चुका होता है। इन घटनाओं से ऐसा लगता है कि लोग राज्य में किसी तरह का हस्तक्षेप नहीं चाहते हैं।
मणिपुर पुलिस का दोनों में से किसी एक समुदाय का होना भी वजह
शांति व्यवस्था के कायम करने के लिए तैनात सेना के अधिकारी कहते हैं कि यह जितना लगता है उससे कहीं ज्यादा जटिल पेंचीदा मामला है। यहां की स्थिति पर नजर रखने वाले विशेषज्ञों का कहना है कि मणिपुर पुलिस खुद भी जातीय विभाजन से जूझ रही है। दोनों ही समुदाय से संबंध रखने वाले पुलिसकर्मी अपने-अपने समुदाय के लिए सहानुभूति का भाव रखते हैं। इस वजह से सही और समय पर सूचना पहुंचने में वक्त लग जाता है।
केंद्र द्वारा भेजे गए बल पूरी तरह से तकनीकी तौर पर मिली खुफिया जानकारी पर ही निर्भर करते हैं। कई बार ऐसे मामले भी सामने आए हैं जब सड़क का घेराव होने पर सुरक्षाकर्मी अपनी गाड़ी वहीं छोड़ कर पैदल जाना मुनासिब समझते हैं। सुरक्षा बलों पर यहां की जनता का भरोसा इस कदर टूट गया है कि यहां पर सैनिकों से जनता उनका आईडी कार्ड मांगने लगी है। यहां तक कि उनसे यह तक पूछा जाता है कि वह किस जातीय समुदाय से संबंध रखते हैं।
अमित शाह की पहल भी काम नहीं आई
पिछले महीने केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह 4 दिन के मणिपुर दौरे पर गए थे। इस दौरान उन्होंने कुछ घोषणा की जो कुछ काम नहीं आई। एक तरफ जहां दोनों ही समुदाय के लोगों ने शांति समुदाय की पहल से अपना हाथ खींच लिया है। एक समुदाय के लोग को तो पैनल में शामिल होने वाले सीएम बिरेन सिंह से भी दिक्कत है। इस समुदाय के प्रतिनिधि का साफ कहना है की सीएम ने वक्त रहते कोई कदम नहीं उठाया जिस वजह से हालात ऐसे हो गए।
वहीं, पुलिस स्टेशन से लूटे गए 4000 हथियारों में से अभी तक महज 1000 हथियार ही बरामद हो सका है। जबकि गृहमंत्री ने तलाशी अभियान के बाद हथियार मिलने पर सख्त कदम उठाने की घोषणा की थी। जो यह बताने के लिए काफी है की मामला कितना गंभीर होता जा रहा है।
तैनात सुरक्षा अधिकारों का साफ़ मानना है कि इस स्थिति में बल का प्रयोग करना सबकुछ बर्बाद कर सकता है। इसलिए लोगों को शांति स्थापित करने के लिए राजनेताओं और नागरिक समूहों से पहल करने का आग्रह किया जा रहा है। यही नहीं इंफाल में खुरई विधानसभा क्षेत्र से विधायक लीसांगथेम ने अपने घर के बाहर एक ड्राप बाक्स लगा रखा है जिस पर बंदूकों के चित्र बने हैं और लिखा है कि आपके पास जो भी हथियार है यहां डाल दें, संकोच नहीं करें,आपके साथ कोई कार्रवाई नहीं की जाएगी। फिर भी लोग बात नहीं मान रहे।
इसलिए हथियार नहीं सौंप रहे हैं लोग
प्रशासन के बार-बार कहने पर भी जनता हथियार सौंपने के लिए पुलिस या सुरक्षा दलों के पास जाना भी नहीं चाहती है। उन्हें इस बात का डर है कि उनकी पहचान कर ली जाएगी और बाद में उन्हें सजा दी जाएगी। स्थानीय विधायक भी इस अभियान को लेकर अपनी तरफ से कोशिश कर रहे हैं, उन्होंने अपने घर ड्राप बॉक्स लगाया जिसके बाद कई युवक उनके घर हथियार सौंपने के लिए पहुंचे थे।
बड़ी मशक्कत के बाद युवकों को समझाया और उन्हें जाने के लिए मनाया गया। अब इस ड्रॉप बॉक्स की चाबी पुलिस को सौंप दी गई है जो रोज सुबह इसे साफ करते हैं। लेकिन चौंकाने और चिंता करने वाली बात यह है कि ये हथियार बगैर गोलियों के वापस किये जा रहे हैं। अब प्रशासन इस घटना की क्या तोड़ निकालते हैं, यह देखना काफी दिलचस्प होगा, साथ ही चुनौतीपूर्ण भी।
50 हजार से अधिक लोग बेघर
3 मई से शुरू हुए हिंसक झड़प में अभी तक 105 लोगों की मौत हो चुकी है। 320 से ज्यादा लोग घायल हुए हैं। हालांकि यह सरकारी आंकड़ा है। स्थानीय लोगों के अनुसार वास्तविक संख्या इससे कही अधिक है। मणिपुर में जारी हिंसा को देखते हुए राज्य में इंटरनेट पर पाबंदी 15 जून तक बढ़ा दी गई है। सूचना एवं जनसंपर्क और स्वास्थ्य मंत्री एस. रंजन ने रविवार को यहां कहा कि मणिपुर की जातीय हिंसा में विस्थापित हुए 50,650 से अधिक पुरुषों, महिलाओं और बच्चों को 350 शिविरों में शरण दी गई है।
मामला जानिए
बता दें कि, अनुसूचित जनजाति (ST) का दर्जा देने की मेइती समुदाय की मांग के विरोध में पहाड़ी जिलों में आदिवासी एकजुटता मार्च के आयोजन के बाद पहली बार 3 मई को झड़पें हुई थीं। मेइती समुदाय मणिपुर की आबादी का लगभग 53 प्रतिशत हैं और ज्यादातर इंफाल घाटी में रहते हैं। जनजातीय नागा और कुकी जनसंख्या का 40 प्रतिशत हिस्सा हैं और पहाड़ी जिलों में निवास करते हैं। राज्य में शांति बहाल करने के लिए करीब 10,000 सेना और असम राइफल्स के जवानों को तैनात किया गया है।
लेकिन लाख कोशिशों के बावजूद भी कोई सुधार देखने को नहीं मिल रहा है, जिस कारण आम लोगों को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। अब तक इस हिंसा में 105 लोगों की जान जा चुकी है और 350 से अधिक लोग घायल हो गए हैं। केंद्र की मोदी और राज्य की बिरेन सरकार अब तक इस मसले पर पूरी तरह विफल दिखी है। अब वक्त आ गया है कोई सख्त निर्णय लेने का, नहीं तो वो दिन दूर नहीं जब देश के सबसे खुबसूरत राज्यों में से एक राज्य की स्थिति संभाले नहीं संभलेगी।
Source: National