आसान भाषा में समझें क्या है यूनिफॉर्म सिविल कोड और इससे जुड़े कई सवाल जो आपके जेहन में हैं
क्या है यूनिफॉर्म सिविल कोड?
What is Uniform Civil Code (UCC)?
समान नागरिक संहिता यानी सभी धर्मों के लिए एक ही कानून। अभी होता ये है कि हर धर्म का अपना अलग कानून है और वो उसी हिसाब से चलता है। हिंदुओं के लिए अपना अलग कानून है, जिसमें शादी, तलाक और संपत्तियों से जुड़ी बातें हैं। मुस्लिमों का अलग पर्सनल लॉ है और ईसाइयों का अपना पर्सनल लॉ है।
यूनिफॉर्म सिविल कोड (UCC) का मतलब है, भारत में रहने वाले हर नागरिक के लिए एक समान कानून होना, चाहे वह किसी भी धर्म या जाति का क्यों न हो। यानी हर धर्म, जाति, जेंडर के लिए एक जैसा कानून।
यूनिफॉर्म सिविल कोड (UCC) सभी धार्मिक समुदायों पर लागू होने के लिए एक देश एक नियम का आह्वान करता है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 44 के भाग 4 में ‘यूनिफॉर्म सिविल कोड’ शब्द का स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया है।
UCC में शामिल विषय
विवाह,
तलाक
गोद लेना
व्यक्तिगत स्तर
विरासत
संपत्ति का अधिकार और संचालन
इन देशों में लागू है समान नागरिक संहिता
Uniform civil code is applicable in these countries
अमरीका
पाकिस्तान
बांग्लादेश
तुर्की
इंडोनेशिया
सूडान
आयरलैंड
इजिप्ट
मलेशिया
इजरायल
जापान
फ्रांस
रूस
क्या भारत में समान नागरिक संहिता लागू है?
Is there a Uniform Civil Code in India?
नहीं। लेकिन संविधान में प्रावधान है।
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 44 के मुताबिक, ‘राज्य भारत के पूरे क्षेत्र में नागरिकों के लिए एक समान नागरिक संहिता को सुरक्षित करने का प्रयास करेगा।’ यानी संविधान सरकार को सभी समुदायों को उन मामलों पर एक साथ लाने का निर्देश दे रहा है, जो वर्तमान में उनसे संबंधित व्यक्तिगत कानूनों द्वारा शासित हैं। यानी सभी धर्म अपने-अपने नियम/कानून पर चल रहे हैं। जिन्हें एक कानून के तहत लाने की बात की जा रही है।
गोवा एकमात्र राज्य जहां समान नागरिक संहिता
गोवा भारत का एकमात्र ऐसा राज्य है जहां समान नागरिक संहिता है । गोवा परिवार कानून, नागरिक कानूनों का समूह है, मूल रूप से पुर्तगाली नागरिक संहिता, 1961 में इसके विलय के बाद लागू किया जाना जारी रहा।
क्या गोवा में हिंदू विवाह अधिनियम लागू होता है
गोवा अब तक भारत का एकमात्र राज्य है जहां विवाह, तलाक, उत्तराधिकार आदि के मामले में हिंदू, मुस्लिम, ईसाई सहित सभी समुदाय एक ही कानून द्वारा शासित होते हैं।
गोवा में समान नागरिक संहिता क्यों है?
1869 ई. में पुर्तगाली गोवा और दमाओन को केवल पुर्तगाली उपनिवेशों से बढ़ाकर प्रोविंसिया अल्ट्रामरीना (विदेशी कब्ज़ा) का दर्जा दिए जाने के बाद गोवा नागरिक संहिता लागू की गई थी।
यूनिफॉर्म सिविल कोड का जिक्र पहली बार कब हुआ
When was the mention of Uniform Civil Code for the first time?
1985 में शाह बानो केस के बाद UCC मुख्य रूप से चुनावी मुद्दा बन गया। बहस इस बात पर थी कि क्या कुछ कानूनों को बिना किसी का धर्म देखे सभी पर लागू किया जा सकता है? शाह बानो केस में मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड पर सवाल उठाए गए थे। MPLB (मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ) जो कि मुख्यत: शरिया कानून पर आधारित है, जो एकतरफा तलाक, बहुविवाह आदि को भी बढ़ावा देता है।
इस केस का सारांश यह है कि मुस्लिम महिला शाह बानो की शादी इंदौर निवासी मोहम्मद अहमद खान से हुई थी। अहमद खान इंदौर के बड़े रईस और मशहूर वकील थे। दोनों के 5 बच्चे थे। पहली शादी के 14 साल बाद खान ने दूसरी शादी कर ली। खान ने कुछ वक्त तक तो दोनों पत्नियों को साथ रखा लेकिन बाद में 62 वर्षीया शाह बानो को तलाक दे दिया। तलाक के समय खान ने शाह बानो को हर महीने 200 रुपए देने का वादा किया था, पर 1978 में 200 रुपए देना बंद कर दिया।
तब शाह बानो ने खान के खिलाफ केस किया और अपने बच्चों के गुजरा भत्ते के लिए 500 रुपए प्रति महीना देने की मांग की। खान ने अपने बचाव में यह दलील दी कि पैसे देना उनकी जिम्मेदारी नहीं है क्योंकि अब वे पति-पत्नी नहीं हैं। उन्होंने इस्लामिक कानून का हवाला देकर दूसरी शादी को जायज बताया।
इसके बाद मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा और वहां फैसला खान के खिलाफ आया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि उन्हें सेक्शन 125 के तहत तलाकशुदा पत्नी को पैसा यानी गुजारा भत्ता देना होगा। उल्लेखनीय है कि यहां सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि एक कॉमन सिविल कोड होना चाहिए।
समान नागरिक संहिता से लाभ
Benefits of Uniform Civil Code
जिस देश में नागरिकों में एकता होती है, किसी प्रकार वैमनस्य नहीं होता है, वह देश तेजी से विकास के पथ पर आगे बढ़ता है। देश में हर भारतीय पर एक समान कानून लागू होने से देश की राजनीति पर भी असर पड़ेगा। राजनीतिक दल वोट बैंक वाली राजनीति नहीं कर सकेंगे। चुनाव के समय वोटों का ध्रुवीकरण नहीं होगा।
भारत में सामान नागरिक संहिता के पक्ष में कई तर्क प्रस्तुत किए जा सकते हैं। यह संहिता भारतीय नागरिकों को अपने मूलभूत अधिकारों का लाभ उठाने का अधिकार प्रदान करती है और उन्हें स्वतंत्रता, समानता और न्याय की गारंटी देती है। जैसे –
संवैधानिक मूल्यों का सम्मान
सामान नागरिक संहिता संवैधानिक मूल्यों के संरक्षण और सम्मान के पक्ष में तर्क प्रस्तुत करती है। यह न्यायपूर्ण व्यवस्था, समानता, धार्मिक स्वतंत्रता, मतांतरण की स्वतंत्रता, संघटन की स्वतंत्रता, और व्यक्तिगत अधिकारों के संरक्षण की गारंटी प्रदान करती है।
न्यायपूर्णता
सामान नागरिक संहिता न्यायपूर्णता का संरक्षण करने के लिए तर्क प्रस्तुत करती है। यह न्यायाधीशों की स्वतंत्रता, न्यायिक प्रक्रियाओं की पारदर्शिता, और अन्याय के खिलाफ संरक्षण की गारंटी प्रदान करती है।
स्वतंत्रता के अधिकार
सामान नागरिक संहिता स्वतंत्रता के विभिन्न आयामों का सम्मान करने का तर्क प्रस्तुत करती है। इसमें स्वतंत्रता भाषण, संगठन, मीडिया, और धर्म के प्रशासनिक और व्यापारिक पहलुओं का संरक्षण शामिल है।
समानता
सामान नागरिक संहिता समानता के पक्ष में तर्क प्रस्तुत करती है। यह सभी नागरिकों को अपने मूलभूत अधिकारों के समान रूप से लाभान्वित करने का अधिकार प्रदान करती है और किसी भी अन्यता और भेदभाव का विरोध करती है।
न्यायिक रक्षा
सामान नागरिक संहिता न्यायिक रक्षा के पक्ष में तर्क प्रस्तुत करती है। इसे उपयोगकर्ताओं को न्यायिक संरक्षण, बिना अन्याय या हस्तक्षेप के, प्रदान करने के लिए गठित कि जा रहा है। इससे व्यापारिक, नागरिक, और सरकारी अधिकारियों के खिलाफ न्यायपूर्ण कार्रवाई करने की सुविधा प्राप्त होती है।
ये कुछ तर्क हैं जो सामान नागरिक संहिता का समर्थन करते हैं। यह नागरिकों को अपने मूलभूत अधिकारों के साथ समृद्ध और मुक्तिपूर्ण जीवन जीने का अधिकार प्रदान करती है।
समान नागरिक संहिता के पक्ष में तर्क
Arguments in favor of Uniform Civil Code
यह भारत को एकीकृत करेगा
भारत कई धर्मों, रीति-रिवाजों और प्रथाओं वाला देश है। समान नागरिक संहिता भारत को आजादी के बाद से अब तक की तुलना में अधिक एकीकृत करने में मदद करेगी। यह प्रत्येक भारतीय को, उसकी जाति, धर्म या जनजाति के बावजूद, एक राष्ट्रीय नागरिक आचार संहिता के तहत लाने में मदद करेगा।
वोट बैंक की राजनीति को कम करने में मदद मिलेगी
यूसीसी वोट बैंक की राजनीति को कम करने में भी मदद करेगी जो कि ज्यादातर राजनीतिक दल हर चुनाव के दौरान करते हैं।
पर्सनल लॉ एक बचाव का रास्ता हैं
पर्सनल लॉ की अनुमति देकर हमने एक वैकल्पिक न्यायिक प्रणाली का गठन किया है जो अभी भी हजारों साल पुराने मूल्यों पर चल रही है। एक समान नागरिक संहिता इसे बदल देगी।
आधुनिक प्रगतिशील राष्ट्र का संकेत
यह इस बात का संकेत है कि देश जाति और धार्मिक राजनीति से दूर हो गया है। जबकि हमारी आर्थिक वृद्धि महत्वपूर्ण रही है, हमारी सामाजिक वृद्धि पिछड़ गई है। यूसीसी समाज को आगे बढ़ने में मदद करेगा और भारत को वास्तव में विकसित राष्ट्र बनने के लक्ष्य की ओर ले जाएगा।
यह महिलाओं को अधिक अधिकार देगा
धार्मिक पर्सनल लॉ महिला विरोधी हैं और पुराने धार्मिक नियमों को पारिवारिक जीवन को नियंत्रित करने की अनुमति देकर हम सभी भारतीय महिलाओं को अधीनता और दुर्व्यवहार की निंदा कर रहे हैं। समान नागरिक संहिता से भारत में महिलाओं की स्थिति सुधारने में भी मदद मिलेगी।
सभी भारतीयों के साथ समान व्यवहार
विवाह, विरासत, परिवार, भूमि आदि से संबंधित सभी कानून सभी भारतीयों के लिए समान होने चाहिए। यूसीसी यह सुनिश्चित करने का एकमात्र तरीका है कि सभी भारतीयों के साथ समान व्यवहार किया जाए।
वास्तविक धर्मनिरपेक्षता को बढ़ावा
एक समान नागरिक संहिता का मतलब यह नहीं है कि यह लोगों की अपने धर्म का पालन करने की स्वतंत्रता को सीमित कर देगा, इसका मतलब सिर्फ यह है कि प्रत्येक व्यक्ति के साथ एक जैसा व्यवहार किया जाएगा और भारत के सभी नागरिकों को समान कानूनों का पालन करना होगा चाहे कुछ भी हो किसी भी धर्म का हो।
परिवर्तन प्रकृति का नियम है
अल्पसंख्यक लोगों को उन कानूनों को चुनने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए जिनके तहत वे प्रशासित होना चाहते हैं। ये व्यक्तिगत कानून एक विशिष्ट स्थानिक-अस्थायी संदर्भ में तैयार किए गए थे और इन्हें बदले हुए समय और संदर्भ में बदल देना उचित रहेगा।
न्याय का कुशल प्रशासन
विभिन्न व्यक्तिगत कानूनों के संहिताकरण और एकीकरण से अधिक सुसंगत कानूनी प्रणाली का निर्माण होगा। इससे मौजूदा भ्रम कम होगा और न्यायपालिका द्वारा कानूनों का आसान और अधिक कुशल प्रशासन संभव हो सकेगा।
UCC विरोधियों के तर्क
Arguments of UCC Opponents
यूसीसी के खिलाफ मुख्य तर्क यह है कि यह पसंद के धर्म का पालन करने की संवैधानिक स्वतंत्रता का उल्लंघन करता है जो धार्मिक समुदायों को अपने संबंधित व्यक्तिगत कानूनों का पालन करने की अनुमति देता है। उदाहरण के लिए, अनुच्छेद 25 प्रत्येक धार्मिक समूह को अपने मामलों का प्रबंधन स्वयं करने का अधिकार देता है।
यूसीसी लागू नहीं किया जाना चाहिए
समान नागरिक संहिता के खिलाफ तर्क देने वालों का मानना है कि विवाह, तलाक, भरण-पोषण, उत्तराधिकार आदि जैसे मामले धार्मिक मामले हैं और संविधान ऐसी गतिविधियों की स्वतंत्रता की गारंटी देता है और इसलिए समान नागरिक संहिता इसका उल्लंघन होगा।
सामान नागरिक संहिता के विरोध में कुछ और भी तर्क हैं, जैसे –
संवैधानिक प्रमुखता: कुछ लोगों का तर्क है कि सामान नागरिक संहिता के उद्देश्य और महत्व को संवैधानिक प्रमुखता के समक्ष कम माना जाता है। उनका कहना है कि संविधान संशोधन के द्वारा संवैधानिक मूल्यों को बदलना चाहिए और संवैधानिक मूल्यों को सुरक्षित रखने के लिए अधिक संरक्षण की जरूरत है। वे इस दृष्टिकोण से विचार करते हैं कि संवैधानिक मूल्यों के संरक्षण के लिए विशेष अधिकारों और कानूनों की आवश्यकता है, जो समान नागरिक संहिता के प्रावधानों से अलग हो सकती है।
विषेश अवस्थाएं: कुछ लोग सामान नागरिक संहिता के विरोध में यह तर्क प्रस्तुत करते हैं कि ऐसी अवस्थाएं हो सकती हैं जब अपने अधिकारों की प्रशासनिक पाबंदियों से सुरक्षित करना जरूरी होता है। उदाहरण के लिए, अपराध और आतंकवाद के मामलों में राष्ट्रीय सुरक्षा की दृष्टि से कुछ प्रतिबंध लगाने की आवश्यकता हो सकती है, जो सामान नागरिक संहिता के अधिकारों को सीमित कर सकता है।
सामान्य दण्ड: विरोधी तर्क का एक अन्य पहलू है सामान नागरिक संहिता के अंतर्गत न्यायिक दण्ड से संबंधित। कुछ लोग समझते हैं कि संहिता में न्यायिक दण्ड के प्रतिबंध या सीमित करने के बजाय, उचित सजा प्रदान करने के लिए और अपराधियों के प्रति अधिक संवेदनशील होना चाहिए। वे इसके बारे में विचार करते हैं कि ऐसे मामलों में अधिकाधिक अपराधियों को सजा देने से समानता और न्याय का प्रभाव प्राप्त होगा।
मुसलमानों का कानून किस पर आधारित है ?
मुस्लिम समुदाय का कानून शरीअत पर आधारित है।
मुस्लिम समुदाय के विरोध की वजह
The reason for the protest of the Muslim community
– मुसलमानों को लगता है कि यूनिफॉर्म सिविल कोड उनके धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप है।
– मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड और अन्य धार्मिक संगठनों का अस्तित्व खतरे में पड़ जाएगा इसलिए वे नहीं चाहते कि वे अप्रासंगिक हो जाएं।
– समान नियम के खिलाफ मुस्लिम संगठन तर्क देते हैं कि संविधान में सभी को अपने धर्म का पालन करने का अधिकार है और इसलिए वे इसका विरोध करेंगे।
– मुसलमान तर्क देते हैं कि महिलाओं को शरीयत में उचित संरक्षण मिला हुआ है। फिजूल विवाद खड़ा किया जा रहा है।
– विरोधी कहते हैं कि UCC से हिंदू कानूनों को सभी धर्मों पर लागू कर दिया जाएगा।
– आर्टिकल 25 के तहत धार्मिक स्वतंत्रता की बात करने वाले कहते हैं कि यह अधिकारों का उल्लंघन होगा।
जबकि सच यह है –
– इसमें महिला और पुरुषों को समान अधिकार की बात है। इसका धर्म से कोई लेना देना नहीं है।
– यहां समझना यह है कि दुनिया के 125 देशों में एक समान नागरिक कानून लागू है।
– इस्लाम में मान्यता है कि उनका लॉ किसी का बनाया नहीं है, अल्लाह के आदेश के अनुसार चल रहे हैं। लेकिन कुछ चीजें लोगों को खटक रही हैं जैसे 9 साल शादी की उम्र क्या आज के समय में यह ठीक है?
– महिलाओं को शरीयत में उचित संरक्षण मिला हुआ है तो उन्हें पुरुषों के बराबर अधिकार क्यों नहीं हैं।
– इसका किसी एक धर्म से कोई लेना देना नहीं है। यह एक समानता की बात करता है।
क्यों UCC है समाज की जरूरत
Why UCC is the need of the society
देखा जाए तो यूनिफॉर्म सिविल कोड से कोई नुकसान नहीं है। इससे किसी धर्म को मानने या नहीं मानने पर रोक-टोक नहीं लगाई जा रही। कोई भी व्यक्ति किसी भी तरीके से शादी करे, चाहें तो हिंदू धर्म के तरीके से या मुस्लिम तरीके से। यूनिफॉर्म सिविल कोड (UCC) आपको वह अधिकार दिलाएगा तो भारत का नागरिक होते हुए आपके पास होने चाहिए।
इस कानून को राजनीतिक चश्मे बजाए समाज के नजरिए से देखा जाए तो यह भारत के सभी नागरिकों के लिए समानता, सशक्तिकरण, जागरुकता, कानून का सम्मान, और प्रगतिवाद लेकर आएगा।
Source: National