Women's Health Report : 18 से 50 वर्ष महिलाओं को स्वास्थ्य के प्रति सचेत रहने की जरूरत, उम्र के हिसाब से जानिए स्वास्थ की रिपोर्ट
Women’s Health Report : महिला, परिवार की अहम कड़ी है, पूरे परिवार के खानपान, देखभाल, बच्चों की परवरिश की जिम्मेदारी उन पर होती है। अब महिलाएं कामकाजी भी हैं। ऐसे में स्वयं के स्वास्थ्य का ध्यान रखना भी प्राथमिकता पर होना चाहिए, लेकिन आमतौर पर देखा जाता है कि महिलाएं अपनी सेहत के प्रति उदासीन होती हैं। उम्र की हर अवस्था में उन्हें अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखना चाहिए। बेटी को किशोरावस्था से ही स्वास्थ्य और आहार के प्रति सजग रखा जाए और सही जानकारी दी जाए तो वह उम्र के हर पड़ाव पर वह स्वस्थ रहेगी। महिलाओं को स्वास्थ्य के प्रति सचेत करने की जरूरत है।
Pre-reproductive age (up to 18-19 years) प्री-रिप्रॉडक्टिव एज (18-19 वर्ष तक)
यह बालिकाओं के लिए उम्र का बेहद संवेदनशील पड़ाव है। इस समय बालिकाओं को बेहतर पोषण और हाइजीन से जुड़ी बातों के बारे में जानना चाहिए। सबसे जरूरी है कि पोषण को लेकर होने वाले ***** भेद को खत्म किया जाए।
यही उम्र होती है जब बालिकाओं के आहार पर ध्यान देकर एनीमिया जैसी समस्याओं से बचाया जा सकता है। यूनिसेफ के मुताबिक इंडिया में 40 फीसदी किशोरवय की लड़कियां व 18 फीसदी लड़के एनीमिया से ग्रसित हैं। लड़कियों के लिए यह उम्र प्यूबर्टी की होती है। इसलिए उन्हें मासिक धर्म के बारे में सही जानकारी दी जानी चाहिए। सेनेटरी नेपकिन के उचित उपयोग समझाया जाना चाहिए। चूंकि इस उम्र में एक लड़की के शरीर में कई तरह के परिवर्तन होते हैं, उससे उनके मानसिक स्वास्थ्य पर भी असर पड़ता है। इसलिए उनके मूड स्विंग्स का भी ध्यान रखा जाना चाहिए। आज जिस तरह की लाइफस्टाइल है उसमें लड़कियों में ईटिंग डिसऑर्डर (एनोरेक्सिया या बुलिमिया) और पीसीओएस जैसी समस्याएं भी अधिक देखने में आती हैं।
यह भी पढ़े-घर में छिपकलियों से परेशान हो चुके हैं तो भगाने के लिए अपनाएं ये घरेलू उपाय
जांच – महिलाओं में होने वाले कैंसर में गर्भाशय ग्रीवा (Cervical cancer) का कैंसर सबसे सामान्य है। इसके लिए प्री-रिप्रॉडक्टिव एज में ही कैंसर सर्विक्स का टीका (cancer cervix vaccine) लगाया जाना चाहिए।
आहार – इस उम्र में यदि आहार की बात करें तो आयरन की कमी की पूर्ति करने वाला आहार लेना चाहिए। उसके अलावा किशोरियों को मजबूत हड्डियों के लिए कैल्शियम की जरूरत होती है। इसलिए दूध, दही व पनीर जैसे डेयरी उत्पाद फायदेमंद होते हैं। लीन प्रोटीन स्त्रोत की पूर्ति बीन्स, नट्स जैसे पदार्थों से कर सकती हैं। रंग-बिरंगे फल व सब्जियों का सेवन जरूरी है। साबुत अनाज उत्पाद जैसे ब्राउन राइस, दलिया फाइबर, विटामिन व खनिज प्रदान करते हैं। जो स्वस्थ पाचन और उच्च ऊर्जा स्तर को बढ़ावा देते हैं। किशोरावस्था में स्वस्थ वसा की जरूरत भी होती है। इसकी पूर्ति एवोकाडो और नट्स से कर सकते हैं। वहीं कुछ खाद्य पदार्थ हैं जिनका सेवन कम मात्रा में किया जाना चाहिए या नहीं करना चाहिए। प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थ जैसे फास्ट फूड, स्नैक्स, शक्कर युक्त पेय में बहुत अधिक कैलोरी होती है। ये खाद्य पदार्थ पाचन को प्रभावित करते हैं। उसके अलावा ट्रांस फैट जैसे बार-बार एक ही तेल में तले खाद्य पदार्थ, मार्जरीन ह्दय रोग, मधुमेह और अन्य स्वास्थ्य समस्याओं का जोखिम बढ़ा सकते हैं।
यह भी पढ़े-स्वस्थ दांतों और मसूड़ों के लिए ओरल हाइजीन जरुरी, जानिए ब्रश करने का सही तरीका
Yoga-Exercise योग-एक्सरसाइज – इस उम्र में शरीर काफी ऊर्जावान रहता है। इसलिए उस ऊर्जा को यदि सकारात्मक दिशा में लगाया जाए तो इससे किशोरावस्था में होने वाली बीमारियों से बचाव किया जा सकता है। इस समय किशोरवय की बालिकाओं को सूर्य नमस्कार, संतुलन वाले अभ्यास और शरीर में लचीलापन बढ़ाने वाले आसान करने चाहिए। संतुलन वाले अभ्यास में वीर भद्रासन, वृक्षासन, बकासन और लचीलापन बढ़ाने वाले में उष्टासन, चक्रासन और पश्चिमोत्तासन करना चाहिए।
Reproductive age (up to 20-39 years) रिप्रॉडक्टिव एज (20-39 वर्ष तक)
इस अवस्था में महिलाएं मातृत्व सुख का अनुभव करती है, इसलिए इस समय एनीमिया (anemia) , प्रसव पूर्व व बाद में देखभाल पर ध्यान देना जरूरी है। प्रसव उम्र की महिलाओं में प्रजनन प्रणाली विकार जैसे पीसीओएस (PCOS) , एंडोमेट्रियोसिस प्रजनन क्षमता को प्रभावित करते हैं। क्लैमाइडिया, गोनौरिया और सिफलिस जैसे एसटीआइ रोगों की समस्याएं होती हैं। मोटापे की समस्या बढ़ जाती है। जांच – शादी के बाद हर पांच वर्ष के अंतराल पर पेप स्मीयर टेस्ट अवश्य करना चाहिए। शिशु के स्वास्थ्य की देखभाल के लिए स्तनपान अवश्य कराएं। इससे आपके स्वास्थ्य पर भी सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।
यह भी पढ़े-किचन से कॉकरोच और कीड़े-मकोड़े को भगाने के आसान घरेलु उपाय
Diet आहार – उम्र के इस दौर में आयरन के साथ प्रोटीन की पूर्ति करना भी जरूरी है। आहार में ऐसे फल और सब्जियों को शामिल करें जो एंटीऑक्सीडेंट, विटामिन और खनिज से भरपूर हों। जैसे पत्तेदार साग, जामुन खट्टे फल और शकरकंद आदि। साबुत अनाज में ब्राउन राइस और क्विनोआ का उपयोग बढ़ाएं। टोफू और बीन्स से लीन प्रोटीन लें। दूध, दही और पनीर से कैल्शियम की पूर्ति करें।
Yoga-Exercise योग-एक्सरसाइज – यह ऐसी उम्र है जब स्थिरता ज्यादा होती है। इसमें शरीर के आंतरिक अंगों की देखभाल की जरूरत होती है। इस समय तीन बातों पर ध्यान देना जरूरी है कार्डियो सिस्टम, रेस्परेटरी और डायजेस्टिव सिस्टम। रिप्रॉडक्टिव एज में मंडूकासन, पवनमुक्तासन, सर्वांगासन, विपरीत करणी, पद्मासन, सिद्धयोनि आसन, धनुरासन और भुजंगासन करना चाहिए।
यह भी पढ़े-पीरियड्स के पहले ही दिन अगर होता है असहनीय दर्द, तो जान लीजिए दर्द कम करने का इलाज
Pre-menopause age (up to 40-50 years) प्री-मेनोपॉज एज (40-50 वर्ष तक)
महिलाएं इस समय अपने जीवन की गुणवत्ता बढ़ाएं। अपना बोन बैंक अकाउंट फुल रखें, ताकि आगे उन्हें ऑस्टियोपोरोसिस जैसी समस्याओं से न जूझना पड़े। मेनोपॉज संबंधी समस्याओं का नियमित इलाज कराएं। क्योंकि बचाव ही निदान है। इस समय हार्मोनल बदलावों की वजह से कई समस्याएं सामने आती हैं। इस समय मासिक धर्म की अनियमितता, गर्मी के बफारे आना, चक्कर आना, वजन बढ़ना आदि होता है। इसका हार्मोन थैरेपी, विटामिन, कैल्शियम, व्यायाम, आहार परिर्वतन और योग आदि से निदान कर सकते हैं। हाइपरटेंशन, थॉयराइड जैसी बीमारियां भी इस उम्र के दौरान होने की आशंका बढ़ जाती है। इस दौरान परिजनों का भावनात्मक सहयोग भी अपेक्षित होता है।
जांच – इस समय पेप स्मीयर टेस्ट, हड्डियों की जांच व मेमोग्राम कराना चाहिए।
आहार – इस समय प्रोटीन रिच डाइट की जरूरत होती है। इस उम्र के दौरान विटामिन, फाइबर, मिनरल्स और एंटीऑक्सीडेंट से भरपूर डाइट चाहिए होती है। इसके लिए प्रतिदिन अपने आहार में कम से कम पांच सर्विंग फल और सब्जियों की अवश्य खाएं। लीन प्रोटीन की पूर्ति दालों, फलियों और टोफू से करें। कैल्शियम युक्त खाद्य पदार्थ खाएं। विटामिन डी के लिए फोर्टिफाइड मिल्क या प्लांट बेस्ड मिल्क पीएं। अंडे की जर्दी का उपयोग करें।
Yoga-Exercise योग-एक्सरसाइज – वॉक को अपनी दिनचर्या का हिस्सा बनाएं। रिलेक्शन वाले आसन करें। इस समय महिलाओं की दो तरह की स्थितियां हो जाती हैं। एक हाइपो एक्टिव और दूसरी हाइपर एक्टिव। हाइपो एक्टिव वाली स्थिति में महिलाओं को ऐसी एक्टिविटी करनी चाहिए जो उन्हें व्यस्त रखें। सूर्य नमस्कार करें। वीर भद्रासन, चक्रासन और पश्चिमोत्तासन करना फायदेमंद रहता है।
Menopause age (after 50 years) मेनोपॉज एज (50 वर्ष के बाद )
इस समय उच्च रक्तचाप, थाइरॉइड, मधुमेह आदि समस्याएं होती हैं। ब्रेस्ट कैंसर, वेजाइनल ड्राइनेस, मूड स्विंग्स और नींद की कमी जैसी दिक्कतें भी होने लगती हैं। महिलाएं नियमित डॉक्टरी परामर्श और स्वास्थ्य जांच कराएं। इससे सही समय पर कई बीमारियों का निदान हो सकता है।
जांच – बोन मिनरल डेन्सिटी टेस्ट इस समय कराना चाहिए।
आहार – इस समय कैल्शियम रिच डाइट की बेहद आवश्यकता होती है। कैल्शियम की पूर्ति हरी पत्तेदार सब्जियों, डेयरी उत्पाद, नट्स, टोफू और संतरे के रस से कर सकती हैं। विटामिन डी युक्त आहार लें। जूस के बजाय फाइबर के लिए फलों का सेवन करें। कैफीन, सोडियम युक्त खाद्य पदार्थों से परहेज करें। मोटे अनाज खाएं।
Yoga-Exercise योग-एक्सरसाइज – इस उम्र के दौरान कैल्शियम की कमी होने की वजह से हड्डियां कमजोर पड़ने लगती हैं। जोड़ों व कमर में दर्द रहने लगता है। इसलिए इस समय भुजंगासन, शलभासन, पवनमुक्तासन करना चाहिए। उन योगासनों को दिनचर्या में लाएं जो बैठकर या लेटकर किए जा सकते हैं। उसके अलावा प्राणायाम, भ्रामरी प्राणायाम, नाड़ीशोधन, अनुलोम-विलोम जैसी यौगिक क्रियाएं करनी चाहिए।
– डॉ. राखी आर्य, स्त्री रोग विशेषज्ञ, जयपुर
– प्रियंका अग्रवाल, डायटीशियन, इंदौर
– ओमप्रकाश शर्मा, योग विशेषज्ञ, नई दिल्ली
क्या कहते हैं आंकड़े
– देश में 40 फीसदी किशोरवय की लड़कियां व 18 फीसदी लड़के एनीमिया से ग्रसित हैं।
– 15 से 44 वर्ष के बीच की एक तिहाई महिलाएं रिप्रोडक्टिव हैल्थ से जुड़ी समस्याओं से परेशान रहती हैं।
– 12 से 45 वर्ष तक की 5 से 10 फीसदी महिलाएं ऐसी हैं जो कि अपनी रिप्रॉडक्टिव एज में पीसीओएस से ग्रसित होती हैं।
– 84% कामकाजी महिलाओं ने मासिक धर्म के आसपास रूढ़िवादिता/निर्णय का सामना किया है जैसे कि पूजा स्थल या रसोई जैसे पवित्र स्थानों के पास न जाने के लिए कहा जाता है या यहां तक कि अपने सैनेटरी नैपकिन को छिपाने के लिए भी कहा जाता है।
– 66% कामकाजी महिलाओं को लगता है कि समाज एंडोमेट्रियोसिस से पीड़ित महिलाओं को शादी के लिए अनुपयुक्त मानता है
– 67% कामकाजी महिलाओं का कहना है कि स्वास्थ्य के मुद्दों पर बात करना आज भी समाज में वर्जित माना जाता है
डिसक्लेमरः इस लेख में दी गई जानकारी का उद्देश्य केवल रोगों और स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं के प्रति जागरूकता लाना है। यह किसी क्वालीफाइड मेडिकल ऑपिनियन का विकल्प नहीं है। इसलिए पाठकों को सलाह दी जाती है कि वह कोई भी दवा, उपचार या नुस्खे को अपनी मर्जी से ना आजमाएं बल्कि इस बारे में उस चिकित्सा पैथी से संबंधित एक्सपर्ट या डॉक्टर की सलाह जरूर ले लें।
Source: Health