शरीर की रोग प्रतिरोधकता बढ़ाना चाहते हैं तो खाएं ये फूड
ऑर्गेनिक फूड (जैविक आहार) रोजमर्रा के जीवन में इस्तेमाल होने वाले खाद्य पदार्थ जैसे हरी सब्जी, फल, दूध और अनाज को रसायनिक तत्वों से सुरक्षित रखकर तैयार किया जाता है। जैविक आहार प्राकृतिक रूप से शुद्ध एवं ताजा होता है। इस आहार में प्रचुर मात्रा में प्रोटीन, विटामिन, लवण और पोषक तत्वों की भरमार होती है। ऑर्गेनिक फूड स्वास्थ्य के लिए लाभदायक होता है जिसमें किसी तरह का कोई भी रसायनिक तत्व नहीं होता है। इस प्रक्रिया से खाद्य पदार्थो के उत्पादन से प्रकृति को भी कोई नुकसान नहीं होता है। जैविक खेती से पैदा होने वाले खाद्य पदार्थो में प्रचुर मात्रा में बायो फ्लैवोनॉयड्स मिलते हैं जिससे कैंसर समेत अल्जाइमर और कार्डियोवैस्कुलर संबंधी रागों से बचाव होता है। बायो फ्लैवोनॉयड्स मुख्य रूप से फलों, सब्जियों और आयुर्वेदिक जड़ी बूटियों में पाए जाते हैं। इसके प्रयोग से रक्त संचार बेहतर रहता है। जैविक आहार में 50 फीसदी ज्यादा विटामिन होता है। वैज्ञानिकों का दावा है कि जन्म के बाद से ही बच्चे को जैविक आहार दिया जाए तो उसका मानसिक विकास तेजी से होगा और रोग प्रतिरोधक क्षमता मजबूत होगी जिससे वे कई तरह की गंभीर बीमारियों की चपेट में आने से बच सकता है।
ऑर्गेनिक फूड से ऐसे होता फायदा
जैविक आहार में एंटीऑक्सीडेंट और माइक्रो न्यूट्रिएंट्स की मात्रा अधिक होती है जिसमें विटामिल सी, जिंक और आयरन की मात्रा शामिल है। इस आहार में एंटीऑक्सीडेंट की मात्रा 69 फीसदी अधिक होती है। जैविक खेती से पैदा होने वाले जामुन और भुट्टे में 48 फीसदी अधिक एंटीऑक्सीडेंट और 52 फीसदी से अधिक विटामिन सी की मात्रा होती है। इसके अलावा जैविक खेती से पैदा हो रही सब्जी में भी विटामिन-ए समेत अन्य पोषक तत्व प्रचुर मात्रा में होते हैं जिससे शरीर को फायदा होता है।
ऐसे करते हैं ऑर्गेनिक फॉर्मिंग
एक्सपर्ट बताते है कि ऑर्गेनिक फॉर्मिंग यानि जैविक खेती ऐसे खाद्य पदार्थो के उत्पादन की प्रक्रिया है जिसमें रसायनिक तत्वों का प्रयोग नहीं होता है। इस प्रक्रिया के तहत खाद्य पदार्थो के उत्पादन से मिट्टी की उर्वक क्षमता बढिय़ा रहती हैं जिससे फसलों का उत्पादन बढिय़ा होता है। खास बात ये होती है कि इस प्रक्रिया के तहत पैदा किए जाने वाले खाद्य पदार्थो स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाने वाला कोई तत्व नहीं होता है। जैविक खेती करने वाले किसानों का लाभ भी दोगुना हो जाता है क्योंकि रसायनिक खाद का प्रयोग करने से खेती करना महंगा हो रहा था। इस विधि का प्रयोग बढऩे से जमीन के भीतर होने वाले प्रदूषण को भी काफी हद तक रोका जा सकता है। इस खेती में पशुओं के गोबर और कचरे से खाद बनाकर फसलों का उत्पादन किया जाता है।
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Source: Health