गांव-गांव जाकर रामायण मंडली के माध्यम से लोगों के मन जगाई देशभक्ति की भावना, जानिए छत्तीसगढ़ के स्वतंत्रता सेनानी डॉ. शिवदुलारे मिश्र के बारे में
बिलासपुर. शहर के स्वतंत्रता( Freedom fighters Of Chhattisgarh) सेनानी डॉ. शिवदुलारे मिश्र ने रामायण मंडली के माध्यम से लोगों में आजादी की अलख जगाई थी। उत्तर प्रदेश के उन्नाव में वर्ष 1880 में जन्में पं. शिव दुलारे मिश्र अपनी मां के साथ 5 वर्ष की उम्र में बिलासपुर आ गए। म्युनिसपल हाईस्कूल में पढ़ाई करने के बाद कोलकाता मेडिकल कॉलेज में पढ़ाई के चले गए।
यहां डॉक्टरेट की पढ़ाई के दौरान वे क्रांतिकारियों के संपर्क में आए। पढ़ाई के दौरान क्रांतिकारी विचारधारा से प्रेरित डॉ. मिश्र डाक्टरेट की पढ़ाई पूरी करने के बाद बिलासपुर लौट आए। वर्ष 1906 से आजादी की लड़ाई में सक्रिय हुए और देश की आजादी के बाद बिलासपुर के पहले विधायक बने।
आजादी की घोषणा के बाद जय स्तंभ को किया पवित्र
14 अगस्त 1947 में देश आजादी की घोषणा होने के बाद डॉ. शिव दुलारे मिश्र ने आसपास के पंडितों को बुलाया। पंडितों की सलाह पर उन्होंने कहा-अंग्रेजों के पांव रखने से मेरा भारत मैला हो गया है। इसे पवित्र करना पडे़गा। शनिचरी पड़ाव, जहां महात्मागांधी ने भाषण दिया था। उसके नजदीक 14 अगस्त को पूरी रात हवन व पूजन करवाया। सुबह जब तिरंगा फैराया गया तो जय स्तम्भ में ध्वजा रोहण भी किया था।
महात्मा गांधी का चेकअप डॉक्टर साहब की जिम्मेदारी
महात्मा गांधी पहली बार वर्ष 1932 में बिलासपुर आए थे। यहां डॉ. मिश्र रोजाना महात्मा गांधी का चेकअप करते थे। पोते शिवा मिश्रा ने आज भी दादा डॉ. शिव दुलारे मिश्र के इलाज उपकरणों को धरोहर के रूप में सहेज कर रखा है।
बिलासपुर के वरिष्ठ कांग्रेसी नेता व डॉ. मिश्र के पोते शिवा मिश्रा के अनुसार डॉ. शिवदुलारे का जीवन पूरी तरह देश सेवा में समर्पित था। बिलासपुर में दवा खाना चला कर लोगों को उपचार करना, उन्हें देश सेवा के लिए प्रोत्साहित करना, गांव-गांव जाकर रामायण मंडली व प्रभात फेरी के माध्यम से लोगों के मन में देश प्रेम की भावना जागृत करते थे।
लोगों को बताते थे कि किस तरह अंग्रेज लोगों पर अत्याचार करते हैं। इस बीच उन्होंने असहयोग आंदोलन सहित कई आंदोलनों में बिलासपुर की जनता का प्रतिनिधित्व किया। डॉ. मिश्र में देश सेवा का ऐसा जज्बा था कि वर्ष 1935-36 के दौरान बीएनआर (बंगल नागपुर रेल) में अंग्रेज अफसरों की मनमानी के खिलाफ रेल श्रमिकों ने काम बंद कर आंदोलन शुरू कर दिया। एक समय ऐसा आया कि आंदोलनरत श्रमिक भूख से विचलित होकर आंदोलन समाप्त करने की योजना बना रहे थे। इस दौरान डॉ. मिश्र ने रेल कर्मियों के लिए खाने की व्यवस्था बनाई। आंदोलनरत रेल कर्मियों के परिवार को भी आश्रय दिया।
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