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अध्यात्म…केवल एक शब्द नहीं, इसमें समाई है समत्व की भावना

अध्यात्म…केवल एक शब्द नहीं। इसमें समाई है समत्व की भावना। यह है ईश्वरीय आनंद की अनुभूति करने का मार्ग। खुद के अस्तित्व के साथ जोड़ता है अध्यात्म। यह आत्मा का विज्ञान है। दरअसल हमारी सारी भाग-दौड़ बाहरी यानी भौतिक जीवन से जुड़ी है, लेकिन अपने भीतर जाने का मार्ग सिर्फ अध्यात्म ही खोलता है। भीतर की शांति और सच्चे आनंद की ओर ले जाता है अध्यात्म।

परमशक्ति का अनुभव

सवाल यह कि अध्यात्म क्या है? सभी परमसत्ता के अंश हैं, इसे महसूस करने और समझने का जरिया है अध्यात्म। अध्यात्म से उस परमशक्ति की अनुभूति होती है। और तब ईर्ष्या, द्वेष, घृणा, आपसी भेदभाव सब पीछे छूट जाते हैं। भौतिकता से परे जीवन का अनुभव। आंतरिक आनंद और शांति के लिए आध्यात्मिकता से बेहतर और क्या हो सकता है? खुद को खुद से जोड़ने का जरिया। आत्मा और परमात्मा की लय अध्यात्म से ही महसूस की जा सकती है।

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ब्रह्मविद्या है आध्यात्मिकता

संपूर्ण विकास और जीवन की सफलता का आधार हमारे जीवन में आध्यात्मिकता है। हमें इससे जुड़कर संतुष्टि का भाव भी पैदा होता है। इसी से हमारी आत्मा का विकास होता है। जीवन को एक नई दिशा मिलती है। बाहर भले ही अशांति हो, लेकिन दिमाग और मन में कोई अशांति नहीं होती। आध्यात्मिकता को ब्रह्मविद्या कहा गया है। अनंत आनंद का स्रोत है आध्यात्मिकता। हम खुद अपने आनंद का स्रोत हैं। आध्यात्मिकता से ही हम जीवन आनंदपूर्वक हो जाता है।

आध्यात्मिकता से स्वस्थ जीवन

अध्यात्म हमें ताकत देता है। सकारात्मक बनाता है। मन से अहंकार मिटाता है। दुखों के बीच भी मन को शांत रखता है। दरअसल जब हम आध्यात्मिकता में रमते हैं, तो हमें अहसास होता है कि हम ईश्वर के अंश हैं। हमारा कुछ भी नहीं। इस भाव में जितना हम डूबते जाते हैं, उतना ही भौतिकता के बीच रहते हुए उससे परे होते जाते हैं। डर खत्म होने लगता है। चिंताएं मिटने लगती हैं। और इसका सेहत पर सकारात्मक असर पड़ता है। कभी ऐसे लोगों से मिलिए, जो अध्यात्म की रस्सी पकड़े चल रहे हैं, उनके मन में न कोई अहंकार होता है और न कोई लालसा। वे भीतर से शांत और प्रसन्न होते हैं। आध्यात्मिकता हमें अहसास कराती है कि हम ईश्वर की अभिव्यक्ति हैं। आध्यात्मिकता का किसी धर्म, संप्रदाय या मत से कोई संबंध नहीं है।

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शरीर नश्वर है

कभी समय निकालकर कुछ पौधे लगाइए। नंगे पैर घास पर टहलिए और खिलखिलाकर हंसिए। तब अहसास होगा कि जिंदगी बस यही है। शरीर नश्वर है। इसी से आध्यात्मिकता का भाव उपजता भी है और मजबूत भी होता है। ज्यादातर लोग भागते रहते हैं, अपनी एक के बाद एक इच्छाओं को पूरा करने के पीछे। जिंदगी को जीना ही भूल जाते हैं। इसलिए इच्छाओं को कम करना जरूरी है। ऐसा नहीं है कि हमें भौतिक चीजों की जरूरत ही नहीं। दरअसल आध्यात्मिकता हमें इसी भौतिकता के बीच जिंदगी जीना सिखाती है।

क्या कहा गया गीता में?

अपने भीतर के चेतन तत्त्व को जानना ही अध्यात्म है। गीता के आठवें अध्याय में अपने स्वरूप अर्थात् जीवात्मा को अध्यात्म कहा गया है ‘परमं स्वभावोऽध्यात्मुच्यते’। अध्यात्म महाविद्या है। ‘आत्मनि अधि इति अध्यात्म:’ अध्यात्म के द्वारा मोक्ष की प्राप्ति होती है। अध्यात्म का आशय आत्मा संबंधी चिंतन से है। अध्यात्म का अर्थ है अपने भीतर की चेतना को जानना, स्वयं के विषय में जानना। अध्यात्म हमें निर्मल बनाता है। हम सृष्टि के सभी प्राणियों में उसी परम-सत्ता के अंश को देखने लगते हैं।



Source: Religion and Spirituality

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