Rama Ekadashi: कब है रमा एकादशी, जानिए डेट, पारण समय और व्रत कथा
कब है रमा एकादशी
हिंदू पंचांग के अनुसार एकादशी तिथि की शुरुआत आठ नवंबर को सुबह 8.23 बजे हो रही है और इस कार्तिक कृष्ण एकादशी तिथि का समापन नौ नवंबर को सुबह 10.41 बजे हो रही है। इसलिए उदयातिथि में रमा एकादशी व्रत नौ नवंबर को रखा जाएगा। जबकि इस व्रत का पारण 10 नवंबर को सुबह 6.31 से 8.44 बजे के बीच है। इस दिन द्वादशी के समापन का समय दोपहर 12:35 बजे है।
रमा एकादशी कथा
रमा एकादशी की कथा भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को सुनाई थी। रमा एकादशी की कथा के अनुसार प्राचीन काल में मुचुकुंद नाम का राजा राज्य करता था। वह बड़ा सत्यवादी और जगत पालक विष्णु का भक्त था। उसकी चन्द्रभागा नाम की बेटी थी, जिसका विवाह उसने राजा चन्द्रसेन के पुत्र सोभन से कर दिया। राजा मुचुकुंद एकादशी का व्रत बड़े ही नियम से करता था और राज्य के लोगों से भी कठोरता से इस नियम का पालन कराता था।
एक बार की बात है कि कार्तिक के महीने में सोभन अपनी ससुराल आया। इसी समय रमा एकादशी आ गई। इस दिन सभी व्रत रखते थे। इधर, जब दशमी आई तब राज्य में राजा ने व्रत रखने के लिए ढिंढोरा पिटवाया, उसे सुनकर सोभन अपनी पत्नी के पास गया और बोला – मैं उपवास नहीं कर सकता, यदि मैं उपवास करूंगा तो अवश्य ही मर जाऊंगा। अब इस समस्या का कोई उपाय बताओ।
इस पर चन्द्रभागा ने कहा – मेरे पिता के राज्य में एकादशी के दिन कोई भी भोजन नहीं कर सकता। यहां तक कि हाथी, घोड़ा, ऊंट, पशु आदि भी तृण, अन्न, जल आदि ग्रहण नहीं करते। यदि आप उपवास नहीं कर सकते तो किसी दूसरे स्थान पर चले जाइए, क्योंकि यदि आप यहां रहेंगे तो आपको व्रत तो करना पड़ेगा। पत्नी की बात सुनकर सोभन ने कहा – लेकिन मैं व्रत करने के डर से किसी दूसरे स्थान पर नहीं जाऊंगा, परिणाम चाहे कुछ भी क्यों न हो। सभी के साथ सोभन ने भी एकादशी का व्रत किया, लेकिन भूख और प्यास से दूसरे दिन सूर्योदय होने से पहले ही दम तोड़ दिया। राजा ने सोभन के मृत शरीर को जल में प्रवाहित करा दिया और अपनी पुत्री को आज्ञा दी कि वह सती न हो और भगवान विष्णु की कृपा पर भरोसा रखे।
चन्द्रभागा अपने पिता की आज्ञानुसार सती नहीं हुई। वह अपने पिता के घर रहकर एकादशी के व्रत करने लगी। इधर, रमा एकादशी के प्रभाव से सोभन को मंदराचल पर्वत पर धन-धान्य से परिपूर्ण तथा शत्रु रहित देवपुर नाम का एक उत्तम नगर प्राप्त हुआ। उसे वहां का राजा बना दिया गया। उन्हीं दिनों तीर्थ यात्रा के लिए निकला मुचुकुंद नगर का ब्राह्मण सोमशर्मा सोभन के राज्य में आ पहुंचा। ब्राह्मण ने उसे देखा तो पास गया। इस पर राजा सोभन ने भी ब्राह्मण को आसन दिया और अपने श्वसुर व चन्द्रभागा के बारे में पूछने लगा। सोभन की बात सुन सोमशर्मा ने सब बात बताई। ब्राह्मण ने सोभन की भी कहानी पूछी।
इस पर सोभन ने कहा – यह सब कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की रमा एकादशी के व्रत का फल है। इसी से मुझे यह अनुपम नगर प्राप्त हुआ है, किंतु यह अस्थिर है। यह सुन ब्राह्मण बोला – मुझे इसका रहस्य बताइये तो राजा सोभन ने कहा – मैंने वह व्रत विवश होकर और श्रद्धारहित किया था। उसके प्रभाव से मुझे यह अस्थिर नगर प्राप्त हुआ, लेकिन यदि तुम इस वृत्तांत को राजा मुचुकुंद की पुत्री चन्द्रभागा से कहोगे तो वह इसको स्थिर बना सकती है।
राजा सोभन की बात सुन ब्राह्मण अपने नगर को लौट आया और उसने चन्द्रभागा से सारा वृत्तांत सुनाया। इस पर राजकन्या चन्द्रभागा बोली – हे ब्राह्मण देवता मुझे वहां लेकर चलिए। ब्राह्मण उसे मंदराचल पर्वत के पास वामदेव के आश्रम में ले गया। वामदेव ने उसकी कथा को सुनकर चन्द्रभागा का मंत्रों से अभिषेक किया। चन्द्रभागा मंत्रों और व्रत के प्रभाव से दिव्य देह धारण करके पति के पास चली गई।
सोभन ने अपनी पत्नी चन्द्रभागा को देखकर उसे प्रसन्नतापूर्वक आसन पर अपने पास बैठा लिया। चन्द्रभागा ने कहा – जब मैं अपने पिता के घर में आठ वर्ष की थी, तब ही से मैं सविधि एकादशी का व्रत कर रही हूं। उन्हीं व्रतों के प्रभाव से आपका यह नगर स्थिर हो जाएगा और सभी कर्मों से परिपूर्ण होकर प्रलय के अंत तक स्थिर रहेगा। इसके बाद चन्द्रभागा दिव्य स्वरूप धारण करके तथा दिव्य वस्त्रालंकारो से सजकर अपने पति के साथ सुखपूर्वक रहने लगी।
Source: Dharma & Karma