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Govardhan Puja: दो घंटे का है अन्नकूट पूजा मुहूर्त, जानिए सही तिथि पूजा विधि और महत्व

कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा का महत्व
धार्मिक ग्रन्थों के अनुसार कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा तिथि के दिन भगवान कृष्ण ने इंद्र के कोप से व्रजवासियों को बचाकर गोवर्धन पूजा उत्सव की शुरुआत कराई थी। इस दिन गाय, गोवर्धन पर्वत की पूजा की जाती है। साथ ही गेहूं, चावल जैसे अनाज, बेसन से बनी कढ़ी और पत्ते वाली सब्जियों से बने भोजन को पकाया जाता है और भगवान कृष्ण को अर्पित किया जाता है।
शास्त्रों में गाय को धन सुख समृद्धि प्रदान करने वाली लक्ष्मी देवी का स्वरूप माना जाता है। इसलिए गाय के प्रति श्रद्धा प्रकट करने के लिए ही कार्तिक शुक्ल पक्ष प्रतिपदा के दिन गोर्वधन की पूजा की जाती है और इसके प्रतीक के रूप में गाय की पूजा की जाती है। इस दिन गोवर्घन पर्वत की पूजा का भी विधान है।

कब है गोवर्धन पूजा/अन्नकूट पूजा
कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा तिथि प्रारंभः 13 नवंबर 2023 को दोपहर 02:56 बजे
प्रतिपदा तिथि समापनः 14 नवंबर 2023 को दोपहर 02:36 बजे तक
इसलिए गोवर्धन पूजा/अन्नकूट पूजाः मंगलवार 14 नवंबर 2023
गोवर्धन पूजा प्रातःकाल मुहूर्तः सुबह 06:33 बजे से 08:46 बजे
गोवर्धन पूजा शाम का मुहूर्तः शाम को 5.28 बजे से 5.55 बजे तक
द्यूत क्रीड़ाः 14 नवंबर मंगलवार 2023

गोवर्धन पूजा विधि
1. कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा को सुबह तैल-स्नान (तैल लगाकर स्नान) करना चाहिए।
2. गो, बछड़ों और बैलों की भक्तिपूर्वक पूजा करनी चाहिए। यदि घर में गाय हो, तो गाय के शरीर पर लाल और पीले रंग लगाने चाहिए। गाय के सींग पर तेल और गेरू लगाना चाहिए। फिर उसे घर में बने भोजन का प्रथम अंश खिलाना चाहिए। यदि घर में गाय न हो तो घर में बने भोजन का अंश घर के बाहर किसी गाय को खिलाना चाहिए।
3. इसके बाद गोवर्धन-पूजा (अन्नकूट पूजा) करनी चाहिए। इसके लिए जो लोग गोवर्धन पर्वत के पास नहीं हैं, वे गोबर से या अन्न से गोवर्धन बना लेते हैं। ये पुरुष के रूप में बनाए जाते हैं, जिसकी नाभि पर कटोरी या मिट्टी का दीपक रखा जाता है। बाद में इसमें दूध, दही, गंगाजाल, शहद, बताशे आदि डाल दिए जाते हैं। यही बाद में प्रसाद के रूप में बांटा जाता है। अन्न से बने गोवर्धन को ही अन्न-कूट कहते हैं। शाम को बारी-बारी से पाद्य अर्घ्य गन्ध पुष्प धूप दीप नैवेद्य आचमन ताम्बूल दक्षिणा अर्पित करते हैं।

4. गोवर्धन में ओंगा (अपामार्ग) अनिवार्य रूप से रखा जाता है। पूजा के बाद गोवर्धनजी की सात परिक्रमाएं उनकी जय बोलते हुए लगाई जाती हैं। परिक्रमा के समय एक व्यक्ति हाथ में जल का लोटा और अन्य खील (जौ) लेकर चलते हैं। जल का लोटे वाला व्यक्ति पानी की धारा गिराता हुआ और अन्य जौ बोते हुए परिक्रमा पूरी करता है।
5. गोवर्धनजी गोबर से लेटे हुए पुरुष के रूप में बनाए जाते हैं। इनकी नाभि के स्थान पर एक कटोरी या मिट्टी का दीपक रख दिया जाता है। फिर इसमें दूध, दही, गंगाजल, शहद, बताशे आदि पूजा करते समय डाल दिये जाते हैं और बाद में इसे प्रसाद के रूप में बाँट देते हैं।

 



Source: Dharma & Karma