इस दिन राक्षसों के राजा की होती है पूजा, चांद देखना होता है अशुभ
गोवर्धन पूजा की कथा
धार्मिक कथाओं के अनुसार द्वापर युग तक लोग अन्न उत्पादन और सुख समृद्धि का शुक्रिया अदा करने के लिए देवराज इंद्र की पूजा करते थे। इससे चलते उन्हें अहंकार हो गया, इसे तोड़ने के लिए भगवान विष्णु के अवतार भगवान श्रीकृष्ण ने ब्रज के लोगों को समझाबुझाकर इंद्र की पूजा बंद करा दी और गोवर्धन पर्वत, गायों की पूजा करने के लिए तैयार कर लिया। लोगों ने इंद्र की पूजा नहीं की तो नाराज इंद्रदेव ने इस इलाके में बारिश शुरू करा दी, जिसके कारण ब्रज क्षेत्र में बाढ़ के हालात पैदा हो गए। अब लोगों को इंद्र के कोप से बचाने और सुरक्षित रखने के लिए भगवान कृष्ण ने अपनी तर्जनी अंगुली पर गोवर्धन पर्वत को उठाकर ब्रजवासियों की रक्षा की और इंद्र के अहंकार को खंडित किया। इसके बाद से ब्रज के लोग कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा तिथि को गोवर्धन पूजा करने लगे। यह त्योहार हमें प्राकृतिक विपत्तियों से सावधान रहने का संदेश देता है।
क्या है बलि प्रतिपदा और इसकी कथा
हिंदू पंचांग के अनुसार कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा के दिन गोवर्धन पूजा के साथ बलि प्रतिपदा भी मनाई जाती है। इसका शुभ मुहूर्त मंगलवार 14 नवंबर 2023 को सुबह 6.43 बजे से सुबह 8.52 बजे तक है। वहीं बलि पूजा का सांध्यकालीन मुहूर्त दोपहर 2.56 बजे से 5.01 बजे तक है।
कथा के अनुसार देवराज बलि से देवताओं की रक्षा के लिए भगवान विष्णु ने वामन अवतार धारण किया और यज्ञ में बैठे राजा बलि से तीन पग जमीन मांगी। राजा बलि ने जब तीन पग जमीन का संकल्प कर लिया तो भगवान ने आकार बढ़ाना शुरू किया और दो ही पग में तीनों लोक नाप लिया। अब राजा के पास वचन पूरा करने के लिए कोई संपत्ति नहीं बची तो उन्होंने अपना सिर भगवान के आगे रख दिया। इस पर भगवान ने उनके सिर पर अपना पैर रखा और उन्हें पाताल लोक का राज्य दे दिया। साथ ही वरदान दिया। इसके कारण दिवाली के दौरान भारत में दानव राजा बलि की भी पूजा की जाती है। मान्यता है कि इस समय राजा बलि तीन दिनों तक पृथ्वी पर निवास करते हैं और अपने भक्तों को आशीर्वाद प्रदान करते हैं।
इसके लिए राजा बलि की छवि भवन या निवास स्थान के मध्य में उनकी पत्नी विन्ध्यावली के साथ बनानी चाहिए। छवि को पांच अलग-अलग रंगों से विभूषित करना चाहिए।
गोवर्धन पूजा की महत्वपूर्ण बातें
1. इस दिन प्रात: गाय के गोबर से गोवर्धन बनाया जाता है। अनेक स्थानों पर इसके मनुष्याकार बनाकर पुष्पों, लताओं आदि से सजाया जाता है। सन्ध्या को गोवर्धन की पूजा की जाती है। पूजा में धूप, दीप, नैवेद्य, जल, फल, फूल, खील, बताशे आदि का प्रयोग किया जाता है।
2. गोवर्धन में ओंगा (अपामार्ग) अनिवार्य रूप से रखा जाता है। पूजा के बाद गोवर्धनजी की सात परिक्रमाएं उनकी जय बोलते हुए लगाई जाती हैं। परिक्रमा के समय एक व्यक्ति हाथ में जल का लोटा औ अन्य खील (जौ) लेकर चलते हैं। जल के लोटे वाला व्यक्ति पानी की धारा गिराता हुआ तथा अन्य जौ बोते हुए परिक्रमा पूरी करते हैं।
3. गोवर्धनजी गोबर से लेटे हुए पुरुष के रूप में बनाए जाते हैं। इनकी नाभि के स्थान पर एक कटोरी या मिट्टी का दीपक रख दिया जाता है। फिर इसमें दूध, दही, गंगाजल, शहद, बताशे आदि पूजा करते समय डाल दिये जाते हैं और बाद में इसे प्रसाद के रूप में बांट देते हैं।
4. अन्नकूट में चन्द्र-दर्शन अशुभ माना जाता है। यदि प्रतिपदा में द्वितीया हो तो अन्नकूट अमावस्या को मनाया जाता है।
5. इस दिन दस्तकार और कल-कारखानों में कार्य करने वाले कारीगर भगवान विश्वकर्मा की भी पूजा करते हैं। इस दिन सभी कल-कारखाने तो पूर्णत: बंद रहते ही हैं, घर पर कुटीर उद्योग चलाने वाले कारीगर भी काम नहीं करते। भगवान विश्वकर्मा और मशीनों एवं उपकरणों का दोपहर के समय पूजन किया जाता है।
Source: Dharma & Karma