आयुर्वेद में बताए गए तरीके से खाएंगे भोजन तो होगा फायदा, जानें इसके बारे में
आयुर्वेद में भोजन को स्वास्थ्य का प्रमुख तत्व माना जाता है। अच्छा आयुर्वेदिक आहार व्यक्ति विशेष के शरीर की प्रकृति पर आधारित होता है, जो उसे पोषण देता है। आहार बीमारियों से भी दूर रखता है। महिलाओं को उम्र के हिसाब से अपने खानपान का खास खयाल रखना चाहिए ताकि शरीर में ऊर्जा बनी रहे और बीमारियों से बचाव हो सके। जानते हैं आयुर्वेद विशेषज्ञ से खानपान को लेकर क्या सावधानियां बरतनी चाहिए।
आयुर्वेदिक आहार : आयुर्वेद में माना जाता है कि कोई भी बीमारी शरीर में पाए जाने वाले तत्त्वों के असंतुलन के कारण होती है। जब आयुर्वेद के तीनों तत्त्वों वायु, पित्त और कफ में से किसी में असंतुलन होता है तो इसे दोष कहा जाता है। जैसे यदि किसी व्यक्ति में वात की अधिकता है तो उसे चक्कर आएगा, पित्त की अधिकता है तो सूजन होगी और कफ का असंतुलन होने पर उसे बलगम ज्यादा बनता है। आयुर्वेद में आहार की तीन श्रेणियां हैं।
सात्विक आहार : यह सभी आहारों में सबसे शुद्ध होता है। शरीर को पोषण, मस्तिष्क को शांत, रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाता है। इसमें साबुत अनाज, ताजे फल, सब्जियां, गाय का दूध, घी, फलियां, मेवे, अंकुरित अनाज, शहद और हर्बल चाय शामिल होती है।
राजसिक आहार : यह भोजन प्रोटीन आधारित और मसालेदार होता है। अत्यधिक शारीरिक श्रम करने वाले इस भोजन का इस्तेमाल कर सकते हैं।
तामसिक आहार : इसमें रिफाइंड भोजन शामिल होते हैं। यह डीप फ्राई और मसालेदार होते हैं। इनमें नमक की मात्रा भी अधिक होती है। यह आलस्य बढ़ाते हैं।
पोषक तत्त्वों का बना रहता संतुलन –
भोजन में छह रस शामिल होने चाहिए। मीठा, नमकीन, खट्टा, तीखा, कड़वा और कसैला। वात प्रकृति के लोगों को मीठा, खट्टा और नमकीन, कफ प्रकृति के लोगों को कड़वा, तीखा, कसैला और पित्त प्रकृति के लोगों को मीठा, तीखा और कसैला भोजन करना चाहिए। इससे शरीर में पोषक तत्त्वों का असंतुलन नहीं बढ़ता है।
आयुर्वेदिक डाइट प्लान –
ऑर्गेनिक भोजन ऊर्जा से भरपूर होता है। कम तेल और कम मसालों में सब्जियों को लगातार हिलाते हुए हल्का तलकर बनाएं। मौसमी फल, दूध, छाछ, दही, पनीर, दालें, सोयाबीन और अंकुरित अनाज लें। चीनी की जगह शहद, गुड़, मैदे के बजाए चोकरयुक्त आटा व दलिया खाएं। भोजन न तो ज्यादा पका हो और न ही कम पका होना चाहिए।
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Source: Health