fbpx

Ankylosing Spondylitis: अनियमित जीवनशैली से गंभीर हाेती हैं बीमारी, समय पर इलाज जरूरी

Ankylosing Spondylitis: अनियमित जीवनशैली, बैठने का तरीका सही न होना, तनाव और लगातार बैठकर घंटों काम करने से युवाओं को हड्डियों व जोड़ों की समस्या से जूझना पड़ रहा है। समय रहते ध्यान न देने से रीढ़ की हड्डी व कूल्हों में एंकायलूजिंग स्पॉन्डिलाइटिस हो सकता है। ध्यान न देने पर दर्द इतना बढ़ जाता है कि दिनचर्या प्रभावित होती है। रीढ़ की हड्डी का आकार बिगड़ जाता है। यह किसी भी दिशा में मुड़ या झुक जाती है। इससे स्पाइन में जकडऩ आ जाती है। इससे मरीज का उठना-बैठना और एडवांस स्टेज में बिस्तर से हिलना भी मुश्किल हो जाता है।

गर्दन से पीठ के निचले हिस्से में जकड़न
एंकायलूजिंग स्पॉन्डिलाइटिस में लगातार दर्द रहता है। गर्दन से पीठ के निचले हिस्से में जकड़न आ जाती है। यह आर्थराइटिस का एक प्रकार है। हड्डियों में असामान्य फ्यूजन होने लगता है। ध्यान नहीं देने पर दर्द तेजी से बढ़ता है।

समय पर इलाज से जल्द आराम:
बीमारी की पहचान पीठ व पेल्विस के एक्स-रे और लैब टेस्ट से की जाती है। इसका दर्द या जकडऩ खत्म करने के लिए कोई सटीक इलाज नहीं है। इलाज के साथ फिजिकल थैरेपी से आराम मिल सकता है।

गंभीर मामलों में हिप रिप्लेसमेंट:
यदि इलाज के बाद भी मरीज को लाभ नहीं मिल रहा है तो टोटल हिप रिप्लेसमेंट (टीएचआर) थैरेपी ही समाधान है। जिस कूल्हे में दिक्कत है उसके जोड़ के हिस्सों को कृत्रिम बॉल और सॉकेट से रिप्लेस करते हैं। जोड़ क्रियाशील हो जाते हैं और दर्द से राहत मिलती है। स्पाइन का अलाइनमेंट और संतुलन बढ़ता है। इससे मरीज को प्राकृतिक पोस्चर मिलता है।

कसरत से आता आराम:
टीएचआर करवाने के तीन सप्ताह तक मरीज को बिस्तर पर ही हल्की कसरत की सलाह दी जाती है। इसमें बैठना और घुटनों, कूल्हों, पैरों और टखनों की कसरत शामिल है। इसमें मरीज चौथे सप्ताह से चलना शुरू करता है।

इनको होती है परेशानी:
आमतौर पर जिन लोगों के रक्त में एचएलए-बी27 एंटीजन होता है, उन्हें यह दिक्कत होती है। यह सफेद रक्त कोशिकाओं की सतह पर होता है। यह प्रोटीन इम्यून सिस्टम को सही तरीके से काम नहीं करने देता है। इम्यून सिस्टम सेहतमंद कोशिकाओं पर अटैक कर यह बीमारी करती है।

20 से 30 साल की उम्र में होती ज्यादा दिक्कत
ऑटोइम्यून डिजीज के मामले देश में बढ़ रहे हैं। 100 में से एक वयस्क यह बीमारी हो रही है। पुरुषों में यह समस्या ज्यादा है। 20 से 30 साल की उम्र के लोग ज्यादा प्रभावित हो रहे हैं। यह आनुवांशिक कारणों से अधिक होती हैं।

[MORE_ADVERTISE1]

Source: Health