कमजोरी, जकड़न व भूख कम लगने की समस्या हो तो हो सकती है ये बीमारी
स्वाइन फ्लू श्वसन तंत्र से जुड़ी बीमारी है जो ए टाइप के इनफ्लुएंजा वायरस से होती है। यह वायरस एच1 एन1 नाम से जाना जाता है। यह मौसमी फ्लू है। इसके वायरस सबसे ज्यादा शूकरों में पाए जाते हैं। इसके मरीज के खांसने या छींकने पर मुंह और नाक से निकले द्रव्यकण हवा में फैलने से या व्यक्ति के संपर्क में आने पर संक्रमण तेजी से फैलता है।
इन दिनों देश के कई इलाकों में स्वाइन फ्लू के मरीज बढ़ रहे हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इसका इलाज एलोपैथिक पद्धति से ही करने की सलाह दी है लेकिन एक बार ठीक होने के बाद रिकवरी व अन्य समस्याओं में आयुर्वेद व होम्योपैथी की मदद ली जा सकती है। फ्लू से ठीक होने के बाद शरीर में कमजोरी, आलस्य, भूख कम लगना और जकडऩ जैसे लक्षण दिख सकते हैं। स्वाइन फ्लू से बचाव की कोशिश करें, यदि लक्षण दिखें तो तुरंत इलाज करवाएं। डॉक्टर की सलाह से इसका टीका भी लगवा सकते हैं।
काढ़े से मिलेगा लाभ –
बचाव के तौर पर गिलोय, तुलसी, लहसुन, हल्दी, सौंठ, लौंग, काली मिर्च, पिप्पली को बराबर मात्रा में दो कप पानी में उबालें। जब पानी आधा कप रह जाए तो इस आयुर्वेदिक काढ़े को पी सकते हैं। स्वाइन फ्लू है तो वासा, कंटकारी, पुष्करमूल, गाजवा, गिलोय, तुलसी, हल्दी, लोंग, सोठ, काली मिर्च, पिप्पली को बराबर मात्रा में मिलाकर दो कप पानी मेंं डालकर उबाले। जब पानी आधा कप रह जाए तो काढ़ा पीएं।
होम्योपैथी कारगर –
ज्यादातर रोगियों में एक जैसे लक्षण देखने को मिलते हैं। उसी को ध्यान में रखकर होम्योपैथिक इलाज तय किया जाता है। इसके बचाव में आर्सेनिक एल्बम औषधि कारगर हैं। स्वाइन फ्लू ठीक होने के बाद शरीर में जकडऩ व अन्य परेशानियां हैं तो होम्योपैथिक में कई ऐसी दवाएं हैं जो इस समस्या को ठीक कर सकती हैं। होम्योपैथी में रोगी के लक्षणों के आधार पर औषधि व इसकी पोटेंसी का चयन किया जाता है। चिकित्सक की सलाह के बिना दवाएं न लें।
प्रमुख लक्षण –
नाक का लगातार बहना, छींक आना, नाक जाम होना, मांसपेशियां में दर्द या जकड़ना महसूस होना। सिर में तेज दर्द, सर्दी-जुकाम (कफ), लगातार खांसी चलना, बहुत ज्यादा थकान महसूस होना, बुखार (दवा लेने के बाद भी बुखार का लगातार बढ़ना), गले में खराश और इसका लगातार बढ़ते जाना स्वाइन फ्लू के मुख्य लक्षण हैं।
बरतें सावधानी –
पांच साल से कम उम्र के बच्चे, 65 साल से ज्यादा उम्र के बुजुर्ग और गर्भवती महिलाएं जिन्हें फेफड़े, किडनी या दिल की बीमारी है, उन्हें सावधानी बरतनी चाहिए। मस्तिष्क संबंधी (न्यूरोलॉजिकल), पार्किंसन, कमजोर प्रतिरोधक क्षमता वाले लोग, डायबिटीज, अस्थमा के मरीजों को स्वाइन फ्लू के लक्षण दिखते ही डॉक्टर से सलाह लेनी चाहिए।
ये भी लाभदायक –
बचाव के तौर पर 5 तुलसी के पत्ते, पांच ग्राम अदरक, चुटकी भर काली मिर्च पाउडर और इतनी ही मात्रा में हल्दी को एक कप पानी या चाय में उबालकर दिन में दो-तीन बार पीएं। गिलोय (अमृता) बेल के तने को पानी में उबालकर एवं छानकर पीएं। आधा चम्मच हल्दी दूध में डालकर पीएं। आधा चम्मच हल्दी गरम पानी या शहद में मिलाकर भी ली जा सकती है।
Source: Health