घर-घर लगाया ठंडे का भोग, शीतलाष्टमी पर कोरोना वायरस से मुक्ति की मांगी जा रही मनौती
वीडियो : गौतम उडेलिया/जोधपुर. नवजात शिशुओं और बच्चों को चर्म संबंधी बीमारियों से संरक्षण की मनौती से जुड़ा शीतला माता पूजन सोमवार को किया जा रहा है। घरों में भी शीतला माता, ओरी माता, अचपड़ाजी एवं पंथवारी माता का प्रतीक बनाकर पूजन किया गया। पूजन के दौरान एक दिन पूर्व घरों में बनाए गए पकवानों का भोग लगाकर घर के सभी बतौर प्रसादी ‘ठंडा’ ग्रहण कर रहे हैं। अधिकांश घरों की रसोईघरों और मिष्ठान प्रतिष्ठानों में अवकाश रहा। घरों में ‘ठंडे’ के रूप में विभिन्न तरह के पारम्परिक पकवान बनाकर मां शीतला को भोग अर्पित कर प्रसाद के रूप में सेवन की परम्परा का निर्वहन किया जा रहा है। नागोरीगेट के बाहर कागा मेला मैदान में विभिन्न गृह उपयोगी सामग्री के साथ व्यंजनों की स्टॉलों और विभिन्न तरह के झूले लगाए गए हैं।
कागा तीर्थ को पर्यटन स्थल पर विकसित करने के होंगे प्रयास
नागौरीगेट के बाहर कागा स्थित शीतला मंदिर में रविवार को ध्वजारोहण के साथ दस दिवसीय शीतला माता मेले का आगाज किया गया। मेला उद्घाटन समारोह के मुख्य अतिथि भारत सेवा संस्थान के ट्रस्टी जसवंतसिंह कच्छवाह, जेडीए के पूर्व अध्यक्ष राजेन्द्र सोलंकी, समारोह अध्यक्ष पूर्व मंत्री व नागरिक सहकारी बैंक लि. के अध्यक्ष राजेन्द्र गहलोत, जैतारण विधायक अविनाश गहलोत, शीतला माताजी कागा तीर्थ ट्रस्ट अध्यक्ष निर्मल कच्छवाह, मेला अधिकारी कुलदीप गहलोत ने गाजे बाजों के साथ प्रथम पूज्य गणेश मंदिर व शीतला माता मंदिर में पूजन किया गया।
24 घंटे खुला रहेगा मंदिर
मेले के दौरान मंदिर 24 घंटे खुला रहेगा। शीतला माता मेला अधिकारी कुलदीप गहलोत ने बताया कि मंदिर ट्रस्ट की ओर से इस बार भी मेले के दौरान दर्शनार्थियों के सुगम दर्शन की व्यवस्था की गई है। मेले के दौरान महिलाओं-पुरुषों के लिए अलग-अलग दर्शन की व्यवस्था रहेगी। मंदिर परिसर व आसपास 27 क्लोज सर्किट कैमरे लगाए जा चुके हैं।
250 साल से अष्टमी को होता है पूजन
शीतला माता पूजन वैसे तो पूरे भारत में चैत्र कृष्ण पक्ष की सप्तमी को होता है, लेकिन केवल जोधपुर में दूसरे दिन अष्टमी के दिन मां शीतला का पूजन किया जाता है। इसका प्रमुख कारण 250 साल पूर्व विक्रम संवत 1826 में शीतला सप्तमी के दिन तत्कालीन जोधपुर के महाराजा विजयसिंह के महाराज कुमार की मृत्यु होने से जोधपुर सहित मारवाड़ के विभिन्न क्षेत्रों में ‘अकता’ रखने की परम्परा चली आ रही है।
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