Coronavirus Update: मौत का तांडव, सिसकियों का शोर और अंतरद्वन्द्व से जूझते डाॅॅॅक्टर
coronavirus Update: कोरोना वायरस के बढ़ते प्रकोप ने दुनियाभर में हाहाकार मचा रखा है। चीन के वुहान शहर से शुरू हुआ से संक्रमण अब पूरी दुनिया में फैल चुका है। जिससे अब तक 28 हजार से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है, और 6 लाख से ज्यादा लोग संक्रमित हुए है। कोविड-19 को रोकने के लिए भारत समेत दुनियाभर में लॉकडाउन जारी है। लेकिन सच ये है कि कोरोना ने पूरी दुनिया में भंयकर हालात पैदा किए, जो शायद पहले कभी देखने को नहीं मिले।
न्यूयॉर्क के एक अस्पताल में कोरोनावायरस के खिलाफ जंग लड़ रहीं इमरजेंसी मेडिसिन फिजिशियन डॉ कामिनी दुबे ने अपने अनुभव साझा करते हुए बताया कि वेंटिलेंटर्स पर पड़े एक-एक सांस के लिए जिंदगी की जंग लड़ रहे मरीज, खामोशी से मौत की तरफ अकेले बढ़ रहे हैं। कोरोना वायरस के संक्रमण को फैलने से रोकने के लिए बने सख्त प्रोटोकोल की वजह से मरीज के घर वालाें काे भी उससे मिलने की इजाजत नहीं है। ऐसे नितांत अकेलेपन में गंभीर ताैर पर कोरोनावायरस संक्रमित मरीज अपनी मौत का इंतजार कर रहा होता है।
डॉ दुबे कहती है कि जब मरीज मौत के करीब होता है तो उसके परिवारजनों की तकलीफ देखना बहुत पीड़ा देती है। यहां तक कि फोन पर उनसे बात करने के दौरान उनकी सिसकियां सुनकर कई बार रोना भी आ जाता है।
उन्होंने कहा कि अस्पतालों में एक तरफ मौत का तांडव, तो दूसरी तरफ सिसकियों का शोर, ऐसे में एक डॉक्टर के भीतर की चीखें भी खामोश हो जाती हैं। बहुत सारे लोग अकेले मर रहे हैं और उनके आखिरी वक्त में उनके पास कोई अपना नहीं है। ये देखना बेहद ही डरावना है।
किसी भी डॉक्टर को अपनी जिंदगी में कभी न कभी आपातकाल का सामना करना होता है। डॉक्टरों को मुश्किल परिस्थितियों से निपटने के लिए मानसिक तौर पर मजबूत बनाया भी जाता है। इसके बावजूद कोरोनावायरस के कहर से दुनियाभर के डॉक्टर बिना प्रभावित हुए नहीं रह सके हैं।
वो कहती हैं कि उन्होंने इस तरह का भावनात्मक और शारीरिक दबाव जीवन में पहले कभी महसूस नहीं किया और न ही इतनी गहराई से कभी दुखी हुईं। अस्पताल में मरने वाले मरीजों की तादाद को देखने का यह पहला अनुभव है जो कि बेहद डरावना है।
डॉ दुबे भविष्य की उस स्थिति को सोच कर आशंकित हो जाती हैं कि जब डॉक्टरों को ही मरीज के इलाज और उसे वेंटिलेटर देने का फैसला करना होगा। वो सोचती हैं कि किस मरीज को वेंटिलेटर दिया जाए या किसे नहीं इसका फैसला बड़ा मुश्किल इम्तिहान होगा। दरअसल जिस तरह से न्यूयॉर्क में संक्रमित मरीजों की सुनामी आ रही है उसे देखकर बड़ा सवाल ये है कि उनके इलाज के लिए जरूरी मेडिकल संसाधन कहां से आएंगे?
हर रात ऐसे ही सवालों के साथ डॉ कामिनी दुबे घर लौटती हैं और उस दिन का शुक्रिया भी करती हैं कि अब तक ऐसी नौबत नहीं आई कि उन्हें मरीजों के बीच में किसी एक मरीज के लिए वेंटिलेटर का फैसला करना पड़ा। लेकिन वो ये भी मानती हैं कि शायद ज्यादा दिन वो ऐसा नहीं कर पाएंगी।
मरीजों की जिंदगी बचाने के लिए अपनी जिंदगी दांव पर लगाने की वजह से ही डॉक्टरों को भगवान माना जाता है। कोरोना के इस संकट में डॉक्टरों को भी बचाव के लिए सुरक्षा-कवच की जरूरत होती है ताकि वो इसके शिकार न हो सकें। डॉ कामिनी दुबे कहती हैं कि वो अस्पताल में मरीजों को देखने के लिए ये सोच कर नहीं जाती हैं कि वो शहीद होने जा रही हैं। वो कहती हैं कि ये एक गंभीर संकट है, जिसका हमें सामना करना है और हमें अपनी सुरक्षा का पूरा अधिकार हैं क्योंकि हम जंग के मैदान में नहीं हैं और न ही रणभूमि में हैं।
दुबे ने कहा कि सच ये है कि कोरोना संक्रमित मरीजों की जान बचाने की जद्दोजहद में जुटे डॉक्टर एक अंतरद्वन्द्व से भी जूझ रहे हैं। दुनिया भले ही उन्हें भगवान का दर्जा दे, लेकिन भीतर से वो भी इंसान ही हैं और उनके लिए भी किसी मरते हुए मरीज को देखना उतना ही दर्दनाक होता है जितना किसी परिजन के लिए।
डॉ कामिनी ने उम्मीद जताई की हालातों से सीखते हुए आम जनता तमाम विशेषज्ञों की अपील सुनेगी और कोरोनावायरस के संक्रमण को फैलने से रोकने के लिए वो सारे एहतियाती कदम उठाएगी जो संक्रमण को रोकने के लिए जरूरी हैं।
Source: Health