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Brain health: मुश्किल फैसले हमारे दिमाग की प्राथमिकताओं को प्रभावित करते हैं

नए शोध में सामने आया है कि दो समान रूप से वांछनीय विकल्पों के बीच एक मुश्किल विकल्प को चुनने से भविष्य की वरीयताओं के बारे में हमारे दिमाग के सोचने का तरीका बदल सकता है। हमारे निर्णय लेने की क्षमता भविष्य में हमारी प्राथमिकताओं को तय करती है। जब इसांनी दिमाग कोई मुश्किल फैसला करता है तो हमारे सोचने-समझने का नजरिया भी बदल जाता है। ऑस्टे्रलिया के मेलबर्न विश्वविद्यालय के स्कूल ऑफ साइकोलॉजिकल साइंसेज के शोधकर्ताओं के हालिया शोध में सामने आया कि कठिन निर्णय इंसान की प्राथमिकताओं को गहराई से प्रभावित करते हैं। शोधकर्ताओं ने लोगों से पूछा कि वे अपनी प्राथमिकताओं को मापने के लिए विभिन्न खाद्य पदार्थों पर कितना खर्च कर सकते हैं? इसके बाद शोधकर्ताओं ने इन्हें अपने दो पसंदीदा खाद्य पदार्थों में से एक को चुनने को कहा जो उन्हें समान रूप से पसंद थे। प्रतिभागियों के फैसला करने के कुछ समय बाद उनसे दोबारा अपनी वरीयताओं को बताने के लिए कहा गया। शोधकर्ताओं ने पाया कि ज्यादातर प्रतिभागी चुने हुए आइटम के लिए ज्यादा खर्च करने को तैयार थे बजाय अस्वीकार किए गए विकल्प के।

 

मुश्किल होता है फैसला करना-
जनरल ऑफ न्यूरोसाइंस में प्रकाशित इस शोध को डॉ. स्टीफन बोड्स की ‘डिसीजन न्यूरोसाइंस लैबोरेट्री’ की टीम ने आयोजित किया था। शोध की प्रमुख लेखिका डॉ. कैथरीना वोइगट ने बताया कि किसी व्यक्ति के लिए समान रूप से पसंद आने वाली दो में से किसी एक को चुनना बेहद मुश्किल होता है। शोध में लोगों ने अपने दो पसंदीदा स्नैक्स में से एक को चुना। हमने शोध में केवल उन्हीं स्नैक्स को शामिल किया था जो आमतौर पर लोग खरीदा करते हैं/ थे। इस शोध में 18 से 37 साल के 22 स्त्री-पुरुष शामिल थे। एमआरआई तकनीक के जरिए निर्णय लेते समय इनके दिमाग की हलचल को भी देखा गया। शोधकर्ताओं ने पाया कि वरीयता तय करने और मूल्य आधारित फैसले लेने से जुड़ी इन लोगों की मस्तिष्क गतिविधियों की प्राथमिकताएं मजबूती से बदल गई थीं।

 

पहले से तय होती हैं प्राथमिकताएं –
डॉ. वोइगट के अनुसार इससे पहले के शोध कहते हैं कि हमारी निर्णय प्रक्रिया विकल्पों से प्रेरित होती है। हमने शोध में इस वैकल्पिक परिकल्पना का परीक्षण किया कि इंसान की प्राथमिकताएं निर्णय लेने के तत्काल परिणाम के रूप में विकसित होती हैं। हम इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि हमारे दिमाग में हमारी प्राथ्रामिकताएं पहले से ही तय होती हैं जो हमारे फैसले के रूप में सामने आती हैं। यहां शोधकर्ताओं ने आंखों की गतिविधियों पर भी निगरानी रखी। शोधकताओं का अनुमान था कि शायद किसी पसंदीदा वस्तु की तलाश करते हुए ये लोग निर्णय लेने में देर करें। डॉ. वोइगट के अनुसार इसमें कोई दो राय नहीं कि पसंदीदा चीज की तलाश भी निर्णय लेने पर अपना प्रभाव डालती है। शोध में सामने आया कि हम उस आइटम को चुनने की अधिक संभावना रखते हैं जिसे हम लंबे समय से देखते आ रहे हैं। शोध बताता है कि प्राथमिकताएं वास्तव में गतिशील हैं और निर्णय लेने के दौरान पहले से ही बदल जाती हैं।

 

भविष्य की प्राथमिकताएं होतीं तय-
शोध के परिणाम बताते हैं कि हमारा दिमाग कठिन विकल्पों से कैसे निपटता है। कैसे इन कठिन विकल्पों का हमारी भविष्य की प्राथमिकताओं पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है। निर्णय प्रणाली हमारी नई वरीयताओं के लिए उस तात्कालिक क्षण में एकत्रित जानकारी का उपयोग करती है। पारंपरिक न्यूरो-संज्ञानात्मक मॉडल आमतौर पर मूल्य आधारित विकल्प को निर्णय लेने की एक सिलसिलेवार प्रक्रिया के रूप में देखते हैं जिसमें स्थिर वरीयताएं हमारे बाद के विकल्पों का आधार होती हैं। इसका मतलब यह है कि पसंद के संदर्भ में हमारी प्राथमिकताएं तभी बदलती हैं जब हम उन विकल्पों के बारे में कुछ नया सीखते हैं। टीम का मानना है कि निर्णय लेने के परिणामस्वरूप वरीयताएं भी बदल सकती हैं। यह एक उपयोगी तंत्र हो सकता है जो लोगों को कठिन विकल्पों से निपटने में सक्षम बनाता है। शोध से पता चलता है कि इस तरह की स्थितियों में, विकल्पों के लिए नए वरीयता मानकों को पुन: संगठित करने के लिए निर्णय प्रणाली शुरू हो जाती है। यह व्यक्ति के लिए कठिन निर्णय लेने में मदद करती है।

दिमाग के अगले हिस्से की भूमिका महत्त्वपूर्ण –
वरीयताओं का तेजी से गठन मस्तिष्क के पूर्ववर्ती और पाश्र्विका निर्णय लेने और मूल्यांकन नेटवर्क के कारण होता है। दिमाग का यह हिस्सा हमारे दिमाग में यादें संजोने का काम भी करता है। निर्णय लेने के दौरान दिमाग के इन क्षेत्रों में गतिविधि हमें नए फायदों की ओर प्रेरित करती है जिनसे अंतत: हमारे निर्णय तय होते हैं। इसलिए अगली बार जब भी कोई निर्णय लें तो याद रखें कि यह आपका भविष्य बदल सकता है।



Source: Health