बकरियां चराते हुए जूडो में सितारे की तरह चमकी
कोटा. खेल प्रतिभाएं अभी भी सुविधाओं के अभाव में संघर्ष कर रही हैं। सरकार की ओर से उन्हें आवश्यक सुविधाएं नहीं दी जा रही हैं। खेल दिवस पर कोटा की खेल प्रतिभा भारती से बातचीत की उन्होंने कहा, खेल में आगे बढऩे के लिए निर्धन बच्चों को बहुत मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। सरकार को इस ओर ध्यान देने की जरूरत है।
कोटा के आंवली रोझड़ी गांव में रहने वाली भारती ने पढ़ाई के साथ बकरियां चराई और जूडो में राष्ट्रीय स्तर तक अपनी प्रतिभा दिखाई। भारती वर्ष 2013-14 में जब रोझड़ी स्थित राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय में पांचवीं कक्षा की छात्रा थी तब स्थानीय विद्यालय के शारीरिक शिक्षक जमुनालाल गुर्जर ने जिला स्तरीय जूडो स्पद्र्धा में हिस्सा लेने की सलाह दी। निर्धन परिवार से जुड़ी भारती के लिए ये सब बिल्कुल नया था, एक बार तो उसने कोई उत्साह नहीं दिखाया। जूडो के बारे में वह कुछ नहीं जानती थी। फिर भी शिक्षक की बात रखते हुए उसने पढ़ाई और बकरी चराने के अलावा अतिरिक्त समय में जूडो सीखा और निरंतर अभ्यास किया। इसके बाद एक दिन ऐसा भी आया जब उसे जिला स्तरीय स्पद्र्धा में स्वर्ण पदक मिला। उसके बाद उसका उत्साह बढ़ा और फिर राज्य स्तरीय चैंपियनशिप के लिए भारती का चयन हो गया। फिर आर्थिक तंगी आड़े आ गई। ऐसे में शारीरिक शिक्षक जमुनालाल गुर्जर ने ही भारती का खर्चा वहन करने का जिम्मा लिया। अपने शिक्षक के मार्गदर्शन में भारती ने राज्य स्तर पर कांस्य पदक हासिल किया। इसके बाद वर्ष 2015-16 स्वर्ण पदक हासिल किया। सफलता की मंजिल यहीं खत्म नहीं हुई। राष्ट्रीय स्तर पर भारती ने 2 सिल्वर पदक हासिल कर राजस्थान नाम रोशन किया। भारती के पिता और भाई नल ठीक करने का कार्य करते हैं और मुश्किल से घर खर्च चलता है। इसके बावजूद इसके भारती ने हिम्मत नहीं हारी। राष्ट्रीय स्तर का पदक मिलने के बाद भी स्कॉलरशिप जैसी सुविधा भी नहीं मिलने से भारती थोड़ी निराश भी हुई। उनका कहना है अभावग्रस्त और जरूरतमंद खिलाडिय़ों की प्रतिभा को विकसित करने के लिए संसाधन उपलब्ध कराए जाना चाहिए। सरकार इस ओर पर्याप्त ध्यान नहीं दे रही है।
Source: Science and Technology News
