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विचार मंथन : जो सत्य, शिव और सुन्दर से सुशोभित साधनों का अवलम्बन करता है वही अपना निर्माण उत्कृष्ट कोटि का करता है- भगवती देवी शर्मा

मनुष्य अपना शिल्पी आप है, प्रारम्भ में वह एक चेतन-पिण्ड के रूप में ही उत्पन्न होता है। अपने जन्म के साथ न तो वह गुणी होता है, न बुद्धिमान, न विद्वान और न किसी विशेषता का अधिकारी। परमात्मा उसे मानव-मूर्ति के रूप में जन्म देता है और बीज रूप में उपयोगी शक्तियों को उसके साथ कर देता है। इसके बाद का सारा काम स्वयं मनुष्य को करना होता है। अपने इस उत्तरदायित्व के अनुसार वह स्वतन्त्र है कि अपनी रचना योग्यतापूर्वक करे अथवा अयोग्यतापूर्वक। जो अपनी रचना योग्यतापूर्वक करते हैं पुरस्कार रूप में वे परम पद पाकर चिदानन्द के अधिकारी होते हैं और जो अपनी रचना में असफल होते हैं वे जन्म-मरण के चक्र में चौरासी लाख योनियों की यातना सहते हैं।

 

विचार मंथन : लक्ष्य प्राप्ति में बाधा तो आएगी ही, लेकिन बिना हिम्मत हारे कदम बढ़ाते रहना, स्थाई लक्ष्य मिलकर रहेगा- आचार्य श्रीराम शर्मा

 

मानव-पिण्ड के रूप में आया प्रारम्भिक मनुष्य अपने वंश के अनुसार विकसित होता हुआ अपना निर्माण प्रारम्भ कर देता है। अपनी सूझ-बूझ और निर्णय के अनुसार कोई धनवान बनता है, कोई विद्वान् बनता है, कोई व्यापारी बनता है तो कोई श्रमिक। कोई पापी बनता है तो कोई पुण्यात्मा। मनुष्य अपना निर्माण अनेक प्रकार का कर सकता है। मानव-निर्माण का कोई एक स्वरूप नहीं, असंख्य स्वरूप एवं प्रकार हैं। किन्तु उन सबको बांटकर दो प्रकारों में किया जा सकता है। एक उत्कृष्ट निर्माण दूसरा निकृष्ट निर्माण।

 

विचार मथन : बाहर से अस्थि-मांसमय दिखने वाले सद्गुरुदेव के शरीर में आत्मा का रस टपकता है जिसका कुछ शिष्य ही आनंद ले पाते हैं- समर्थ गुरु रामदास

मनुष्य कुछ भी बने, किसी क्षेत्र अथवा किसी दिशा में बढ़े, विकास करे, यदि उसमें उसने श्रेष्ठता का समावेश किया हुआ है तो उसका निर्माण उत्कृष्ट निर्माण ही कहा जायेगा और यदि वह उसमें अधमता का समावेश करता है तो उसका निर्माण निकृष्ट ही माना जायेगा। उदाहरणार्थ यदि वह धन के क्षेत्र में बढ़कर अपना निर्माण धनाढ्य के रूप में करता है किन्तु इसकी सिद्धि में दुष्ट साधनों तथा उपायों का प्रयोग करता है, तो कहना होगा कि वह अपना निर्माण निकृष्ट कोटि का कर रहा है। यदि वह इसकी सिद्धि में सत्य, शिव और सुन्दर से सुशोभित साधनों तथा उपायों का अवलम्बन करता है तो कहना होगा कि वह अपना निर्माण उत्कृष्ट कोटि का कर रहा है। इस प्रकार मनुष्य का कोई भी आत्म निर्माण या तो उत्कृष्ट कोटि का होता है अथवा निकृष्ट कोटि का।

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Source: Religion and Spirituality

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