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आज से ही करें ये तीन काम, बुढापे में नहीं होगी ये खतरनाक बीमारी

Alzheimer लाइलाज बीमारी है जिसे स्मृति लोप भी कहा जाता है। 60 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों में ये बीमारी अधिक होती है। ब्रेन में सिकुडऩ आती है जिसकी वजह से भुलक्कड़पन की स्थिति होती है जिसे स्मरण शक्ति का कमजोर होना भी कहा जाता है। अब ये बीमारी 40 वर्ष से कम उम्र के लोगों को भी होने लगी है। इसका प्रमुख कारण Stress, अनिद्रा और इच्छाशक्ति का बढऩा है। इच्छाएं इतनी बढ़ चुकी हैं कि दिमाग पर बोझ बढ़ गया है और उसको पाने के लिए व्यक्ति अत्यधिक मेहनत कर रहा है। इसका नतीजा है कि उसे भूलने की समस्या होने लगी है। Alzheimer लाइलाज बीमारी है। ऐसे में इससे बचना है तो तनाव को जीवन से खत्म करें और हर वक्त खुश रहें। खुश रहेंगे तो शरीर में हैपी हॉर्मोन बनेंगे और आप Alzheimer नाम की लाइलाज बीमारी से दूर रहेंगे।

पुरानी चीजें रहती याद, नई जाता है भूल
पौष्टिक आहार और विटामिन्स की कमी के साथ ब्रेन स्ट्रोक, किडनी, लिवर और हृदय रोग की समस्या इसका कारण बनने लगी है। अल्जाइमर की चपेट में आया रोगी घर का पता, रास्ता तक भूल जाता है। खास बात ये होती है कि उसे पुरानी चीजें याद रहेंगी लेकिन जब वो इस रोग की चपेट में आता है उसके बाद की चीजें उसे याद नहीं रहती है। Alzheimer का खतरा बढ़ती हुई उम्र के साथ बढ़ता है। लेकिन कुछ मामलों में आनुवांशिक कारणों के साथ सिर में चोट लगना, दिमाग में संक्रमण या ब्रेन में ट्यूमर का होना अल्जाइमर का कारण बनता है। अल्जाइमर जब गंभीर हो जाता है तो पीडि़त को सामाजिक और पारिवारिक साथ ही उसके जीवन को सुंदर बना सकता है।

ये लक्षण दिखें तो समझ लें दिक्कत शुरू हो चुकी
बार-बार भूल जाना, बहुत अधिक गुस्सा आना, निर्णय लेने की क्षमता कम होना, लगातार सुस्ती रहना, भावनात्मक विचार खत्म होना, अचानक चिल्लाने लगना, घर का पता, रास्ता याद न रहना, पुरानी बातें याद रहना, कुछ समय पहले की बात भूल जाना इसका प्रमुख लक्षण है।

रिपोर्ट के आधार पर दवा दी जाती

समय रहते अल्जाइमर के लक्षणों को पहचान कर डॉक्टरी सलाह ली जाए तो इसको बढऩे से रोका जा सकता है। सबसे पहले सीटी स्कैन, एमआरआई और दिमाग की इलेक्ट्रोडइन्सेफेलोग्राम (ईईजी) जांच कराई जाती है। रिपोर्ट के आधार पर दवा दी जाती है। हर मरीज के लक्षण और बीमारी की गंभीरता के आधार पर दवा तय होती है। इसमें प्रमुख रूप से दिमाग में मिलने वाले एसिटाइलकोलिन कैमिकल के कम होने पर उसे बढ़ाने की दवा दी जाती है जिससे कैमिकल की मात्रा दिमाग में बढ़ती है जिससे रोगी पहले की तुलना में बेहतर महसूस करता है। इसके अलावा टेकरीन, गैलेम्टीन, विटामिन-ई समेत अन्य दवाओं का प्रयोग इलाज के दौरान किया जाता है। अल्जाइमर के रोगी को बिना डॉक्टरी सलाह के कोई दवा नहीं लेनी चाहिए।

ब्रह्मचर्य का पालन
आहार, निद्रा और ब्रह्मचर्य का पालन करेंगे तो ये बीमारी दूर रहने के साथ नियंत्रण में रहेगी। अच्छी नींद और तनाव से दूरी अल्जाइमर की सबसे अच्छी दवा है। रोगी को पंचकर्म के माध्यम से परेशानी से बचाया जाता है। इसमें सिरोधारा औषधियुक्त तेल सिर पर डाला जाता है। सिरोवस्थी- सिर पर कपड़ा बांधकर दवा और हब्र्स सिर पर लगाया जाता है जिससे मरीज को फायदा मिलता है।

सेहत के दो आधार, खुश रहना व और पौष्टिक आहार
उम्र जैसे-जैसे बढ़ती है शरीर के दूसरे अंगों की तरह दिमाग भी कमजोर होने लगता है। मरीज के लक्षण उसकी बीमारी की गंभीरता के आधार पर दवा दी जाती है। बिना डॉक्टरी सलाह के कोई दवा नहीं लेनी चाहिए। होम्योपैथी में एक से एक बेहतर दवाएं हैं जिनसे अल्जाइमर की समस्या को बढऩे से रोका जा सकता है। खुश रहना और पौष्टिक आहार इस बीमारी से दूर रहने का सबसे सरल तरीका है।
एक्सपर्ट : डॉ. आरके सुरेका, न्यरो फिजिशियन
एक्सपर्ट : डॉ. अजय शाहू, आयर्वुेद विशेषज्ञ
एक्सपर्ट : डॉ. अशोक यादव, होम्योपैथी विशेषज्ञ



Source: Health