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21 जून को है 'गायत्री जयंती', ये है पूजा के शुभ मुहूर्त, ऐसे करें मां गायत्री की अर्चना

भारतीय पौराणिक कथाओं मान्यताओं के अनुसार ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि (निर्जला एकादशी) को भगवती मां गायत्री का आविर्भाव हुआ था। वेदों की जननी वेदमाता गायत्री को भारतीय शास्त्रों में सर्वोच्च माना गया है। मंत्रों में श्रेष्ठतम गायत्री मंत्र की आधिष्ठात्री देवी के रूप में इनका महत्व सभी शास्त्रों तथा आगमों में प्रसिद्ध है।

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कौन है वेदमाता गायत्री
वेदमाता गायत्री ब्रह्माजी की शक्ति है तथा इस सृष्टि का आधार है। उन्हीं के गायत्री मंत्र तथा शक्ति का सहारा लेकर ऋषि विश्वामित्र ने दूसरी सृष्टि बनाने के दुष्कर कार्य को भी संभव कर दिया था। आज भी हिंदू धर्म के बालकों में जनेऊ संस्कार करते समय तथा विद्या आरंभ करते समय गायत्री मंत्र का उपदेश किया जाता है।

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गायत्री जयंती पर शुभ मुहूर्त
इस वर्ष निर्जला एकादशी और गायत्री जयंती दोनों ही 21 जून 2021 (सोमवार) को है। ज्येष्ठ शुक्ल एकादशी तिथि 20 जून 2021 को सायं 4 बजकर 21 मिनट पर आरंभ होकर 21 जून 2021 को दोपहर एक बजकर 31 मिनट पर समाप्त होगी। गायत्री पूजा के लिए चौघड़िया के अनुसार सर्वश्रेष्ठ मुहूर्तों में ब्रह्म मुहूर्त, अमृत काल तथा अभिजित मुहूर्त को अच्छा बताया गया है।

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ब्रह्म मुहूर्त प्रात: चार बजकर चार मिनट से प्रात: चार बजकर 44 मिनट तक रहेगा। अमृत काल सुबह आठ बजकर 45 मिनट से दस बजकर ग्यारह मिनट तक रहेगा। इसी प्रकार अभिजित मुहूर्त का समय दोपहर 11 बजकर 57 मिनट से 12 बजकर 51 मिनट तक रहेगा। इनमें से किसी भी एक मुहूर्त में अपनी सुविधानुसार पूजा की जा सकती है।

गायत्री जयंती का महत्व
हिंदू धर्म में गायत्री मंत्र तथा वेदमाता गायत्री दोनों को ही परब्रह्म की संज्ञा दी गई है। इस दिन गुरुकुलों में नए शिष्यों का मुंडन संस्कार करवा कर उनकी शिक्षा आरंभ की जाती है। जिन बालकों का यज्ञोपवीत संस्कार नहीं हुआ है, उनका यज्ञोपवीत संस्कार किया जाता है। निर्जला एकादशी भी इसी दिन होने के कारण इसका महत्व और भी बढ़ जाता है। इस दिन किए गए पुण्यों का फल अखंड तथा अनंत बताया गया है। इसलिए इस दिन विभिन्न प्रकार के धर्म-कर्म, यज्ञ, तथा अन्य कर्मकांड किए जाते हैं। बहुत से स्थानों पर इस दिन गायत्री मंत्र के विभिन्न अनुष्ठान किए जाते हैं।

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ऐसे करें मां गायत्री की पूजा
मां गायत्री की पूजा करने से सभी समस्याओं से छुटकारा मिलता है तथा व्यक्ति की प्रत्येक उचित इच्छा पूर्ण होती है। गायत्री जयंती के दिन प्रात: ही स्नान आदि से निवृत्त होकर साफ, स्वच्छ धुले हुए वस्त्र पहनें तथा अपने निकट के मंदिर में अथवा घर के पूजा कक्ष में एक आसन पर बैठें। मां गायत्री के चित्र अथवा प्रतिमा की पुष्प, धूप, दीप, तिलक आदि से पूजा-अर्चना करें। गायत्री चालिसा एवं गायत्री सहस्रनाम का पाठ करें। इसके बाद कम से कम ग्यारह माला गायत्री मंत्र का एकाग्रचित्त होकर जप करें। यदि संभव हो तो इससे अधिक भी कर सकते हैं। गायत्री मंत्र निम्न प्रकार है-

ॐ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्।

अर्थात् उस प्राणस्वरूप, दु:ख नाशक, सुख स्वरूप, श्रेष्ठ, तेजस्वी, पापनाशक, देव स्वरूप परमात्मा को हम अन्तरात्मा में धारण करें। वह ईश्वर हमारी बुद्धि को सन्मार्ग पर प्रेरित करें।



Source: Dharma & Karma