श्री हरि को कराया विश्राम, महादेव संभालेंगे सृष्टि का कार्यभार
भोपाल. देवशयनी एकादशी का पर्व मंगलवार को श्रद्धा के साथ मनाया गया। इस मौके पर शहर के मंदिरों में भगवान का विशेष शृंगार किया गया और विधि विधान के साथ भगवान के विश्राम की लीला की गई। इसी प्रकार कई श्रद्धालुओं ने एकादशी का व्रत भी रखा। देवशयनी एकादशी के साथ ही चातुर्मास की शुरुआत हो जाती है। मान्यता अनुसार चातुर्मास में भगवान विष्णु क्षीर सागर में विश्राम करते हैं और सृष्टि का कार्यभार महादेव संभालते हैं। चातुर्मास में साधु, संत, सन्यासी एक ही स्थान पर रहकर साधना करते हैं।
मंगलवार को शहर के कई मंदिरों में भगवान को विश्राम कराया गया। शहर के चौबदारपुरा तलैया स्थित बांके बिहारी मंदिर में देवशयनी एकादशी पर ठाकुरजी का आकर्षक शृंगार किया गया। इस अवसर पर महिलाओं द्वारा दीपदान भी किया। इस दौरान भजन कीर्तन के साथ ठाकुरजी को निंद्रा शयन चातुर्मास के लिए शयन कराया गया। मंदिर के पं. रामनारायण आचार्य ने बताया कि इस दौरान भगवान के लिए पलंग सजाया गया और निंद्रा कराकर विश्राम की लीला कराई गई।
मराठी समाज की ओर से सांकेतिक आयोजन
देवशयनी एकादशी के मौके पर हर साल समग्र मराठी समाज की ओर से महाराष्ट्र के प्रसिद्ध तीर्थ पंढरपुर की तर्ज पर दिंडी यात्रा निकाली जाती है। कोविडगाइडन का पालन करते हुए यह यात्रा सांकेतिक रूप से निकाली गई। जिसमें सीमित संख्या में श्रद्धालु शामिल हुए। पालकी यात्रा को मंदिर परिसर में ही भ्रमण कराया गया। इस दौरान दत्त मंदिर अरेरा कॉलोनी परिसर में भगवान की पालकी निकाली। पालकी में भगवान विराजमान थे और श्रद्धालु कंधे पर पालकी लेकर चल रहे थे। संकीर्तन, संगीतमय भजनों के बीच श्रद्धालु विट्टल विट्टल का जयघोष कर रहे थे। मंदिर परिसर में भ्रमण के बाद यात्रा का समापन हुआ।
चार माह साधना और आराधना के लिए खास
दे वशयनी एकादशी से देवउठनी एकादशी तक का समय चातुर्मास कहलाता है। इस दौरान दंडी, साधु सन्यासी और गृहस्थ संत बानप्रस्थी चातुर्मास का व्रत पालन करते हैं। चार माह तक साधना में लीन रहते हैं। इस दौरान सबसे अधिक हिन्दू पर्व आते हैं। चातुर्मास के दौरान विवाह, गृह प्रवेश, मुंडन, प्रतिमा प्राण प्रतिष्ठा आदि बड़े मांगलिक कार्यों पर विराम लगा रहता है।
Source: Education