Tokyo Olympics 2020 : कौन हैं भारतीय महिला हॉकी टीम की गोलकीपर सविता पूनिया, ऑस्ट्रेलियाई हुए मुरीद, जानिए उनके बारे में 5 खास बातें
Tokyo Olympics 2020 के फाइनल में पहुंचने वाली भारतीय महिला हॉकी टीम की प्रमुख खिलाड़ियों में से एक हैं गोलकीपर Savita Punia। भारतीय खिलाड़ियों ने ऑस्ट्रेलियाई टीम के खिलाफ क्वार्टर फाइनल में 9 पेनल्टी कॉर्नर को बचाया। इसके बाद ऑस्ट्रेलिया के क्रिकेटर्स से लेकर हाई कमिश्नर तक भारतीय टीम की खूब सराहना कर रहे हैं। ऑस्ट्रेलिया के हाई कमिश्नर बैरी ओ फैरेल ने (Barry O’Farrell) सविता पूनिया को ‘द ग्रेट वॉल ऑफ इंडिया (The Great Wall of India)’करार दिया।
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सविता के हौंसले के आगे धराशाही हुई ऑस्ट्रेलियाई टीम
क्वार्टर फाइनल मुकाबले में महिला हॉकी टीम की गोलकीपर सविता पूनिया भारी गियर पहने शांत और धैर्य के साथ खड़ी रहीं, क्योंकि ऑस्ट्रेलियाई टीम लगातार दवाब बनाने की कोशिश कर रही थी। ऑस्ट्रेलियाई टीम ने 9 पेनल्टी कॉर्नर प्राप्त किए और 17 बार सर्किल में प्रवेश किया। लेकिन सविता पूनिया के साथ खड़ी भारतीय टीम की डिफेंस ने उन्हें एक बार भी आगे नहीं बढ़ने दिया। 31 वर्षीय सविता से पार पाना विरोधी टीम के लिए असंभव साबित हुआ। भारत की ऐतिहासिक सेमीफाइनल में पहुंचने में सविता का अहम योगदान रहा। आइए जानते हैं गोलकीपर सविता पूनिया के बारें में 5 प्रमुख बातें।
दादा से मिली प्रेरणा
सविता पूनिया के अनुसार उनके दादा को हॉकी का खेल बहुत पसंद था और उन्हें उन्हीं से खेलने की प्रेरणा मिली। उनकी मां बीमार रहती थी, जिससे उनपर घर के कामकाज का बोझ रहता था। लेकिन उनके दादा ने ही उन्हें बाहर निकलकर हॉकी खेलने की जिद की थी। अगर उनके दादा ने उन्हें हॉकी खेलने के लिए प्रोत्साहित नहीं किया होता तो वो शायद जूडो और बैडमिंटन में भाग लेतीं।
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शुरुआत में नहीं पसंद था हॉकी खेलना
पूनिया ने एक इंटरव्यू में बताया था कि उन्हें शुरुआत में हॉकी खेलना पसंद नहीं आया था। लेकिन उनके परिवार ने उन पर हॉकी खेलने का दवाब बनाया। शुरुआत में उन्हें हॉकी खेलने के लिए अपने घर से 20 किलो गोलकीपिंग गियर के साथ अपने घर से छ़ात्रावास तक लगभग दो घंटे का सफर तय करना पड़ता था। सविता ने अपने एक इंटरव्यू में बताया था कि उनके पिता ने उस समय गोलकीपर किट खरीदा जब उसे खरीदने की स्थिति में नहीं थे। इसके बाद मुझे लगा कि अपने परिवार का विश्वास कायम रखना होगा। शुरुआत में मुझे अच्छा नहीं लगा, लेकिन धीरे—धीरे आदत में ढल गया।
अंतरराष्ट्रीय पदार्पण के लिए करना पड़ा 4 साल तक इंतजार
खेल छात्रावास में अपने समय के दौरान सविता पूनिया को गोलकीपिंग की जिम्मेदारी सौंप गई थी। क्योंकि वह अपने ग्रुप में सबसे लंबी थीं। 2007 में भारतीय सीनियर नेशनल कैंप में जगह बनाने के बावजूद सविता को 2011 तक अंतरराष्ट्रीय पर्दापण के लिए करीब 4 साल तक इंतजार करना पड़ा।
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सफलता
पूनिया पिछले कुछ सालों से हॉकी के मैदान पर भारत की सफलता का अभिन्न अंग रही हैं। 2013 में अपनी सफलता के बाद से जब वह एशिया कप में कांस्य विजेता भारतीय टीम का हिस्सा थीं, तब से उन्होंने अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है। वह बेल्जियम में 2015 एफटीएच हॉकी वर्ल्ड लीग में कुछ शीर्ष प्रदर्शन के साथ आई थी, जहां भारत ने रियो 2016 के लिए क्वालीफाई किया था। 36 वर्षों में पहली बार उन्होंने ओलंपिक में जगह बनाई थी। तब से पूनिया ने भारत को 2016 एशियाई चैंपियंस ट्रॉफी, 2017 एशिया कप, 2018 एशियाई खेलों में एक रजत पदक और 2018 विश्व में क्वार्टर फाइनल जीतने में मदद की है।
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रियो ओलंपिक 2016 से लिया बड़ा सबक
भारत के टोक्यो 2020 के लिए क्वालीफाई करने के बाद पूनिया ने रियो के बुरे सपने को पीछे छोड़ने की ठानी। पूनिया ने कहा, ‘मुझे लगता है कि उस समय हमारी टीम वास्तव में कच्ची थी और हमने कुछ गलतियां भी कीं। जब मैं कहती हूं कि मेरा सर्वश्रेष्ठ आना अभी बाकी है, तो यह इसलिए है, क्योंकि मेरा लक्ष्य टोक्यो ओलंपिक में अपनी टीम के लिए असाधारण प्रदर्शन का है। साथ ही यह सुनिश्चित कर सकूं कि मैं रियो में बुने सपने को पीछे छोड़ सकती हूं।’ भारत की रक्षा की अंतिम पंक्ति मजबूत रही और टोक्यो में उस वादे को पूरा किया।
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