शहद की फीकी हुई मिठास
गुढ़ाचन्द्रजी. फसल में लगा रोग मधुमक्खी पालकों के लिए भी समस्या बन गया है। रोग के कारण फूल मुरझा गए हैं, जिससे मधुमक्खियों को परागकरण नहीं मिल पा रहा। नागौर से आए मधुमक्खी पालक ललित कुमार सैनी व राकेश कुमार ने बताया कि उन्होंने तिमावा गांव के समीप फसलों के आसपास १ दर्जन स्थानों पर मधुमक्खी के डिब्बे रखे हैं। प्रत्येक स्थान पर दो सौ से ढाई सौ डिब्बे रखे हैं। लेकिन फूल मुरझा जाने से पराग नहीं मिल पा रहा। मधुमक्खीपालकों को मुनाफा कमाना तो दूर मधुमक्खियों को जीवित रख पानी भी मुश्किल हो गया है। मधुमक्खीपालकों ने बताया कि पराग नहीं मिलने पर चीनी की चाशनी बनाकर दी जा रही है। जिससे प्रत्येक माह लाखों रुपए का नुकसान झेलना पड़ रहा है। मधुमक्खीपालकों ने बताया कि राजस्थान में जुलाई से जनवरी तक ही इनके लिए अनुकूल मौसम रहता है। इस कारण ही इस व्यवसाय से जुड़े किसानों ने जुलाई के महिने में खेतों के समीप डिब्बे लाकर रखे थे। लेकिन इस बार रोग लगने से फसल खराब हो गई है।
अलग-अलग कार्य करती है मधुमक्खियों की प्रजातियां
उल्लेखनीय है कि रानी, इटालियन वर्कर व श्रमिक के रूप में मधुमक्खियों की तीन प्रजातियां होती है। मधुमक्खी रानी शिशु को जन्म देने का कार्य करती हैं।
वही इटालियन वर्कर फूल से परागकण लाकर छत्ते में इकट्ठा करती हैं। मधुमक्खी की तीसरी प्रजाति वर्कर छत्ते में शहद को एकत्रित करने व छत्ते की साफ-सफाई का कार्य करती है। मधुमक्खी पालन के लिए ३५ से ३८ डिग्री सेल्सियस तापमान की जरूरत होती है। मौसम अनुकूल होने पर मधुमक्खियां ५ से ७ दिन में एक डिब्बे में ७ से ८ किलो शहद जमा करा देती है। जो बाजार में १०० से १५० रुपए किलो बिकता है। वही फसलों में मधुमक्खी कीटाणु को नष्ट करने का कार्य करती है, जिससे पैदावार किसान को अच्छी मिलने लगती है। जनवरी के बाद ये मधुमक्खी पालने वाले लोग इन्हें उत्तरप्रदेश, जम्मूकश्मीर, उत्तरांचल आदि राज्यों में ले जाते हैं। उल्लेखनीय है कि केन्द्र सरकार भी राष्ट्रीय बागवानी योजना के अन्तर्गत मधुमक्खी पालन पर किसान को अनुदान भी देती है।
शहद का सेवन फायदेमंद
इटालियन मधुमक्खी के काटने से एलर्जी व गठिया वाय रोग दूर होता है। वही इसके शहद के सेवन से गुर्दा की कमजोरी व बवासीर दूर होती है। शहद को आंखों में डालने से आंख के रोग समाप्त होने के साथ ज्योति बढ़ती है। (प.सं.)
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