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‘नोडल’ व ‘नियम-कायदे’ ताक पर रख चला रहे कलेवा योजना ?

दिलीप दवे बाड़मेर. जिले के अधिकांश चिकित्सा संस्थान कलेवा योजना के तहत न तो नोडल एजेंसी से सम्पर्क कर रहे हैं, ना ही एमओयू के तहत दिए आदेश की पालना और कलेवा योजना के तहत महिला स्वयंसहायता समूहों (एसएचजी ) से सम्पर्क कर उनको भुगतान कर रहे हैं।

लम्बे समय से यह स्थिति है, बावजूद इसके ध्यान नहीं दिया जा रहा जबकि महिला अधिकारिता विभाग की ओर से कई बार एेसे एसएचजी को कार्य भी नहीं दिया जाता जो काम नहीं करते। जरूरत है तो हर साल चिकित्सा विभाग और एसएचजी नोडल एजेंसी महिला अधिकारिता विभाग से अनुबंध को लेकर स्वीकृति लें। राजकीय चिकित्सा संस्थान में भर्ती होने वाले प्रसूताओं को कलेवा योजना के तहत दूध, नाश्ता और दो वक्त के भोजन की निशुल्क व्यवस्था की जाती है। उक्त व्यवस्था का जिम्मा महिला अधिकारिता विभाग के अधीनस्थ बने एसएचजी को हैं, जिनकी पुष्टि विभाग करता है। उक्त योजना २०११ में लागू हुई थी तब महिला अधिकारिता विभाग ही एसएचजी को कार्य देता था और भुगतान चिकित्सा विभाग की ओर से उसके जरिए कियाा जाता था।

२०१३-१४ में एमओयू हुआ जिसके तहत चिकित्सा विभाग ही एसएचजी को सीधा भुगतान करने लगा लेकिन नियम यह था कि हर साल चिकित्सा संस्थान व एसएचजी अनुबंध को लेकर महिला अधिकारिता विभाग से स्वीकृति लेंगे। इसका कारण यह था कि ये एसएचजी महिला अधिकारिता विभाग से संबंधित हैं,उनके कार्य को लेकर विभाग मॉनिटरिंग करता है। एेसे में कई बार एसएचजी के संतुष्ठ पूर्व कार्य नहीं करने पर उस पर रोक भी लगती है जिसकी जानकारी चिकित्सा विभाग को नहीं होती। उक्त नियम लगने के बाद अधिकांश एसएचजी और चिकित्सा संस्थान आपस में ही तय कर कार्य कर रहे हैं और भुगतान किया जा रहा है जबकि नियम स्पष्ट है कि महिला अधिकारिता विभाग की स्वीकृति पर ही हर साल काम दिया जाएगा।

लाखों का भुगतान, इजाजत की नहीं समझ रहे जरूरत- गौरतलब है कि योजना के तहत चिकित्सा संस्थान में भर्ती होने वाली प्रसूता को देय कलेवा का प्रतिदिन ९९ रुपए की दर से भुगतान किया जाता है। प्रति साल सैकड़ों महिलाएं प्रसव के दौरान भर्ती होती है जिसका भुगतान लाखों में होता है। एेसे में इजाजत लेने से एसएचजी के कार्य की जानकारी भी नोडल एजेंसी को रहती है तो चिकित्सा संस्थान को भी पता रहता है कि संबंधित एसएचजी चल रही है या नहीं।

१३४ संस्थान और चार-पांच ही कर रहे नियमों की पालना- जिले में राजकीय अस्पताल बाड़मेर व नाहटा अस्पताल बालोतरा दो जिला अस्पताल है। वहीं, २९ सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र हैं। प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र १०३ हैं। इनमें से दो राजकीय अस्पताल, कल्याणपुर, गडरारोड सहित एक-दो केन्द्र ही नोडल एजेंसी से स्वीकृति मांग रहे हैं।

यह है कलेवा योजना- कलेवा योजना के तहत प्रसूता के बच्चा होने के बाद उसको दो वक्त दूध, एक वक्त का नाश्ता और सुबह-शाम का खाना जब तक अस्पताल में भर्ती रहती है, निशुल्क दिया जाता है। इसको लेकर प्रतिदिन ९९ रुपए देय हैं। यह भुगतान एसएचजी को स्वास्थ्य विभाग की ओर से किया जाता है जो संस्थान प्रभारी करते हैं।

99 रुपए मिलते हैं प्रतिदिन के- कलेवा योजना के तहत राजकीय अस्पताल बाड़मेर में प्रसूताओं को दूध, नाश्ता और खाना देते हैं, जिसका प्रतिदिन ९९ रुपए की दर से भुगतान होता है। प्रसूता जितने दिन भर्ती रहती है, उतने दिन कलेवा दिया जाता है।- मंजू सोनी, अध्यक्ष स्वर्णकार एसएचजी

एसएचजी को भुगतान होता- कलेवा योजना के तहत एसएचजी को भुगतान होता है। अनुबंध को लेकर स्वीकृति संबंधी जानकारी पता कर बताता हूं।-डॉ. बी एल विश्नोई, मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी बाड़मेर

नहीं मांग रहे स्वीकृति, नियमों की हो पालना- एमओयू के दौरान चिकित्सा विभाग के साथ हर साल एसएचजी से अनुबंध से पहले स्वीकृति का प्रावधान किया हुआ है। हमसे जिले में दो-चार एसएचजी और चिकित्सा संस्थान ही स्वीकृति मांग रहे हैं। नियमों की पालना की जरूरत है।– प्रहलादसिंह राजपुरोहित, उप निदेशक महिला अधिकारिता विभाग बाड़मेर



Source: Education

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