यूक्रेन से आए MBBS छात्रों के सामने बड़ी मुश्किल, भारतीय शिक्षण संस्थानों में नहीं कर पा रहे नामांकन
यूक्रेन में एमबीबीएस की पढ़ाई कर रहे कई भारतीय छात्र युद्ध के चलते वापस भारत लौट आए हैं। वतन वापसी करने वाले इन छात्रों के सामने भविष्य को लेकर बड़ा संकट खड़ा हो गया है। सबसे बड़ा सवाल यह है कि उनकी आगे की पढ़ाई का क्या होगा। क्योंकि ये छात्र भारतीय शिक्षण संस्थानों में नामांकन या आसान शब्दों में कहें अपनी पढ़ाई जारी नहीं रख पा रहे हैं। दरअसल नियम के मुताबिक विदेशों से मेडिकल छात्रों को भारतीय कॉलेजों या यहां तक कि विदेशों में अन्य संस्थानों में अपने पाठ्यक्रमों के माध्यम से स्विच करने की अनुमति नहीं दी जाती है। ऐसे में इन छात्रों के आगे ये संकट खड़ा हो गया है कि वे अपनी पढ़ाई किस तरह जारी रखें ताकि उनका नुकसान ना हो।
यूक्रेन सरकार के आंकड़ों और स्वतंत्र अनुमानों के मुताबिक, यूक्रेन में 18,000 से ज्यादा भारतीय छात्र हैं। इनमें से करीब 80-90 फीसदी पूर्वी यूरोपीय राष्ट्र के लगभग 10 संस्थानों में नामांकित एमबीबीएस छात्र हैं।
कम से कम 54 महीने का MBBS कोर्स जरूरी
राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग, भारत में चिकित्सा शिक्षा के लिए नियामक, यह आदेश देता है कि विदेशी मेडिकल छात्रों को कम से कम 54 महीने का एमबीबीएस कोर्स और उसी विदेशी संस्थान में एक साल की इंटर्नशिप पूरी करनी होगी।
यह भी पढ़ें – राष्ट्रपति जेलेंस्की का फैसला, ‘युद्ध का अनुभव’ रखने वाले कैदी अब यूक्रेन की रक्षा के लिए लड़ेंगे
इसके साथ ही फॉरेन मेडिकल ग्रेजुएट लाइसेंसिएट रेगुलेशन 2021 में कहा गया है कि, पूरा पाठ्यक्रम, प्रशिक्षण और इंटर्नशिप भारत के बाहर ‘एक ही विदेशी चिकित्सा संस्थान में पूरे अध्ययन के दौरान किया जाएगा और चिकित्सा प्रशिक्षण और इंटर्नशिप का कोई भी हिस्सा भारत या किसी अन्य में नहीं किया जाएगा। देश के अलावा अन्य देश जहां से प्राथमिक चिकित्सा योग्यता प्राप्त की गई है।’
क्या कहता है केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के तहत राष्ट्रीय परीक्षा बोर्ड की ओर से आयोजित विदेशी चिकित्सा स्नातक परीक्षा (FMGE) को पास करना विदेश से MBBS ग्रेजुएट्स के लिए लाइसेंस प्राप्त करने और देश में दवा का अभ्यास करने के लिए जरूरी है। इसके साथ ही, विदेशी मेडिकल ग्रेजुएट्स को देश में इंटर्नशिप के एक अतिरिक्त वर्ष को पूरा करने की जरूरत होती है।
एनएमसी में स्नातक बोर्ड की प्रमुख डॉ अरुणा वाणीकर के मुताबिक अभी तक यूक्रेन से लौटे मेडिकल छात्रों को कोई छूट देने की कोई योजना नहीं है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के अधिकारियों ने कहा कि सरकार की प्राथमिकता अभी के लिए यूक्रेन से छात्रों की सुरक्षित निकासी है।
इसके साथ ही उनके शैक्षणिक भविष्य के बारे में कोई आंतरिक चर्चा नहीं है। यूक्रेन में हालात आने वाले हफ्तों में ठीक नहीं हुए तो ऑनलाइन क्लास भी ऐसे स्टूडेंट्स के सामने विकल्प नहीं है।
आगे क्या विकल्प
यूक्रेन से आए भारतीय छात्रों के पास दो विकल्प हैं। पहला- उसी इंस्टीट्यूशन और यूनिवर्सिटी में पढ़ाई जारी रखी जाए, और कुछ महीनों के लिए ऑनलाइन पढ़ाई की जाए। जबकि दूसरा- उन्हें पड़ोसी देशों और दूसरे यूनिवर्सिटी में ट्रांसफर कराने का विकल्प दिया जाए।
यूनिवर्सिटीज एंड स्टडी एब्रोड कंसल्टेंट्स उन्हें किर्गिजस्तान, उजबेकिस्तान और कजाकिस्तान जैसे पड़ोसी देशों के मेडिकल कॉलेज में ट्रांसफर कराने में हेल्प कर सकते हैं। पड़ोसी देशों के मेडिकल कॉलेजों का एजुकेशन सिस्टम और फीस काफी मिलता जुलता हैं।
यह भी पढ़ें – यूक्रेन की ‘युद्ध नीति’ की 7 खास बातें, जिसने पुतिन समेत दुनिया को हैरान कर दिया
Source: National