रसूख के आगे दबी रही MP में इस घोटाले की रिपोर्ट की फाइलें, सदन में तक नहीं आई रिपोर्ट
भोपाल। अभियोजन मंजूरी और जैन आयोग की पेंशन घोटाले की रिपोर्ट की फाइलें भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय के रसूख के आगे दबी रह गई। ऐसे में न तो अभियोजन मंजूरी की फाइलें आगे बढ़ीं और ना ही इतने सालों में जैन आयोग की रिपोर्ट विधानसभा सदन में पटल पर रखी जा सकी। भाजपा, फिर कांग्रेस और वापस भाजपा सरकार आने के बावजूद कैलाश के खिलाफ इन फाइलों पर कोई कदम नहीं उठ सके।
अभियोजन मंजूरी के लिए केके मिश्रा के आवेदन पर कोई ध्यान नहीं दिया गया। मिश्रा ने 2005 में यह मामला उजागर किया था, लेकिन 17 साल बीतने के बावजूद अभियोजन की मंजूरी नहीं मिल सकी। इस दौरान अभियोजन के दूसरे मामलों में सरकार ने मंजूरी दी, लेकिन इस मामले को अनदेखा ही रखा।
सदन में लाए बिना कोई कदम नहीं
जस्टिस जैन आयोग ने 15 सितंबर 2012 को रिपोर्ट सौंपी थी। इसे विधानसभा के पटल पर रखा जाना था। कांग्रेस विधायक सज्जन सिंह वर्मा ने सवाल लगाया, पर सामाजिक न्याय विभाग ने जवाब दिया कि रिपोर्ट पटल पर रखने की जिम्मेदारी सामान्य प्रशासन विभाग की है। सामान्य प्रशासन विभाग ने उल्टे सामाजिक न्याय विभाग से इस पर एक्शन रिपोर्ट मांगी थी। विधानसभा में इसके चलते जवाब भी गोल-मोल आते रहे।
9 पर विचार, 6 मामलों में मंजूरी
करीब डेढ़ महीने पहले भी नौ मामलों में अभियोजन मंजूरी पर विचार-विमर्श हुआ था। इसमें से छह मामलों में अभियोजन की मंजूरी को सहमति दी गई। ये सभी छह मामले विभिन्न विभागों में अफसरशाही के घोटाले के थे, लेकिन कैलाश का मामला सियासी होने के कारण बरसों से फाइलों में ही बंद है।
मिश्रा ने शुक्रवार को ट्वीट किया कि 17 साल बाद भी अभियोजन की स्वीकृति न देकर सरकार ने साबित किया सरकार भ्रष्टाचारियों की संरक्षक है। विधवाओं, विकलांगों, निराश्रितों की हाय से बचेंगे नहीं, मैं अंत तक लडूंगा।
मूल रिपोर्ट ही गायब, फोटोकॉपी बनी आधार
अहम बात ये कि कमलनाथ सरकार के समय आयोग की मूल रिपोर्ट ही सामान्य प्रशासन विभाग और सामाजिक न्याय विभाग के पास नहीं मिली। सामान्य प्रशासन में रिपोर्ट की एक फोटोकॉपी मिली थी। उसे आधार बनाकर फाइलें चला दी गईं। ऐसी ही स्थिति जस्टिस जैन आयोग के पहले अप्रेल 2005 में गठित दास कमेटी की रिपोर्ट के भी है। कमेटी भी पेंशन घोटाले की जांच के लिए गठित की गई थी। इसने भी अपनी रिपोर्ट दी थी, जिसमें गड़बड़ियों को पाया था। इसकी मूल रिपोर्ट भीशासन के पास नहीं है।
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