Movie Review Cuttputlli: हाथ से फिसल गई रोमांच की डोर
आर्यन शर्मा @ जयपुर. अक्षय कुमार की फिल्म ‘कटपुतली’ (Cuttputlli) दिल को झकझोर देने वाली तमिल हिट ‘रत्सासन’ (2018) का रूखा चरबा है। यह हिंदी दर्शकों की संवेदनाओं और नब्ज को पकड़ने में नाकाम है। सबसे ज्यादा निराश फौरी क्लाइमैक्स करता है, जो बर्फ की तरह ‘ठंडा’ है। ‘रत्सासन’ (Ratsasan) नेल-बाइटिंग राइड की तरह है, वहीं ‘कटपुतली’ में रोमांच की कमी है। कहने को साइकोलॉजिकल थ्रिलर है, लेकिन यह थके हुए फैमिली ड्रामा और रोमांस का मिश्रण है। लिहाजा बिना थ्रिल की थ्रिलर ‘कटपुतली’ देखना कीमती वक्त की बर्बादी है।
अर्जन सेठी (अक्षय कपूर) का सपना थ्रिलर फिल्म बनाना है। साइकोपैथ किलर्स पर कई साल रिसर्च के बाद उसने कहानी लिखी है। वह कई प्रोड्यूसर्स से मिलता है, लेकिन बात नहीं बनती। मजबूरन, बतौर सब-इंस्पेक्टर पुलिस में भर्ती हो जाता है। कसौली में एक के बाद एक टीनेज गर्ल्स गायब हो रही हैं, फिर उनका क्षत-विक्षत शव मिलता है। हत्याओं का पैटर्न एक-सा है। अर्जन को लगता है कि यह किसी साइकोपैथ किलर का काम है और वह तहकीकात में जुट जाता है…।
कहानी पेचीदा है। पटकथा में लूपहोल्स फिल्म को बेहद थकाऊ बना देते हैं। संवाद बिल्कुल असरदार नहीं हैं। डायरेक्शन स्लॉपी है। बैकग्राउंड स्कोर औसत है। म्यूजिक कमजोर और एडिटिंग लचर है। सिनेमैटोग्राफी कामचलाऊ है। अक्षय कुमार की परफॉर्मेंस साधारण है। उनके इमोशनल सीन कमजोर लगते हैं। रकुल प्रीत सिंह सिर्फ ‘अर्जन’ की लेडी-लव के रूप में सिमट गई हैं। रकुल और अक्षय की उम्र का फर्क साफ नजर आता है। सरगुन मेहता सीमित दृश्यों में छाप छोड़ती हैं। चंद्रचूड़ सिंह सामान्य लगे हैं। सुजीत शंकर जरूर थोड़ा प्रभावित करते हैं। ऋषिता भट्ट के पास करने को कुछ नहीं है।
Source: Education