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देशद्रोह कानून में जारी रहेगी रोक, "उचित कदम" उठाने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को दिया समय, जनवरी में होगी सुनवाई

सुप्रीम कोर्ट में देशद्रोह कानून को चुनौती देने के लिए कई याचिकाएं दायर की गई है, जिस पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने विवादास्पद देशद्रोह कानून के तहत FIR दर्ज करने से रोकने वाले आदेश की समय-सीमा बढ़ाते हुए इसमें बदलाव करने के लिए सरकार को और अधिक समय दिया है। दरअसल CJI उदय उमेश ललित, न्यायमूर्ति एस रवींद्र भट और न्यायमूर्ति बेला एम त्रिवेदी की पीठ से अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणि ने कहा कि केंद्र को कुछ और समय दिया जाए क्योंकि संसद के शीतकालीन सत्र में सरकार इसके बारे में कुछ ला सकती है, जिसके बाद शीर्ष अदालत ने सरकार को और अधिक समय दिया है।

इसके साथ ही सर्वोच्च कानून अधिकारी अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणि ने कहा कि यह मुद्दा संबंधित अधिकारियों के पास विचाराधीन है। इसके अलावा 11 मई के अंतरिम आदेश के कारण यह कानून चिंता का कोई कारण नहीं है क्योंकि इस पर रोक लगी हुई है।

इससे पहले मई में कोर्ट ने दिया था आदेश
इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने इसी साल 11 मई को ऐतिहासिक आदेश जारी करते हुए तब तक देशद्रोह कानून में रोक लगा दिया है जब तक सरकार इस कानून की समीक्षा नहीं करती है, जिसके बाद से इसके तहत देश भर में FIR नहीं दर्ज की जा रही है। इसके साथ ही देशद्रोह के आरोप में जेल में बंद लोगों को जमानत के लिए कोर्ट जाने के लिए कहा गया है।

 

जनवरी में होगी सुनवाई
CJI उदय उमेश ललित के नेतृत्व वाली पीठ ने इस मामले की सुनवाई के लिए अगले साल जनवरी 2023 के दूसरे हफ्ते में करने के लिए कहा है, जिसमें इस कानून को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनाई की जाएगी।

 

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को रोकता है देशद्रोह कानून
ब्रिटिश सरकार भारत में शासन के दौरान देशद्रोह कानून का यूज मुख्य रूप से असहमति को दबाने, महात्मा गांधी, बाल गंगाधर तिलक सहित अन्य स्वतंत्रता सेनानियों को कैद करने के लिए किया करती थी। इस कानून के खिलाफ एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया, मेजर जनरल (सेवानिवृत्त) एसजी वोम्बटकेरे, पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण शौरी और पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज ने देशद्रोह कानून के खिलाफ याचिकाएं दायर की है। याचिकाओं के माध्यम से कहा गया है कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को रोकता है, जो एक मौलिक अधिकार है।

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Source: National

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