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मोबाइल फोन खोने या पास न होने की चिंता से जुड़ा है नोमोफोबिया, जानें इसके बारे में

इन दिनों हर आयुवर्ग का व्यक्ति मोबाइल फोन रखता है। यह ऐसा गैजेट है जिसके बिना व्यक्ति को अपना जीवन अधूरा या खालीपन सा लगता है। लोग इस चिंता में भी डूबे रहते हैं कि यदि मोबाइल फोन गुम हो जाए तो उनका क्या होगा। मेडिकली इस डर को नोमोफोबिया कहते हैं। पिछले कुछ सालों में यह फोबिया आम हो गया है जिसमें मोबाइल खोने या पास न होने का डर रहता है।

हमेशा रखते अपने साथ –
एक रिपोर्ट के मुताबिक 66 फीसदी मोबाइल यूजर्स इससे पीड़ित हैं। इसमें व्यक्ति को अपने मोबाइल फोन के गुम हो जाने का भय रहता है इसीलिए यह लोग अपने मोबाइल को छोड़ते नहीं है। यहां तक कि टॉयलेट में भी इसे अपने साथ लेकर जाते हैं। वहीं सोते समय भी उन्हें अपना मोबाइल फोन साथ लेकर सोने की आदत होती है। आंकड़ों के अनुसार दिनभर में औसतन तीस से अधिक बार वे अपना फोन चेक करते हैं।

प्रमुख लक्षण –
मोबाइल खोने के सपने आना। इसके बिना नींद न आना। ऐसे में मोबाइल या तो अपने बगल में या फिर अपने तकिए के नीचे रखना। थोड़ी-थोड़ी देर में चेक करते रहना। मोबाइल घर पर छूट जाने पर ऑफिस के काम में मन न लगना। न मिलने पर पसीने छूटना, बीपी बढ़ना या धड़कनें बढऩा। लो बैटरी होने पर मूड खराब होना। सुबह उठते ही फोन लेकर बैठ जाना। प्लेन से नीचे उतरते या मीटिंग खत्म होते ही तुरंत फोन को फ्लाइट मोड से हटाकर नॉर्मल मोड पर लाना।

रोग तो नहीं… कुछ बातों पर गौर करके अंदाजा लगा सकते हैं कि कहीं आप भी तो इससे ग्रसित नहीं। इसके लिए अपने पति या पत्नी, पिता या मां को फोन को लॉक खोलकर एक दिन के लिए देने के बारे में सोचें। यदि आपकी चिंता बढ़ जाए? हृदय गति में परिवर्तन आए? बीपी बढ़ जाए? तो शायद आप ग्रसित हो चुके हैं।

इन उपायों से करें बचाव-
मोबाइल पर निर्भरता कम करें।
सोशल मीडिया जैसे फेसबुक या ट्वीटर का प्रयोग मोबाइल के बजाय डेस्कटॉप या लैपटॉप पर करें। मैसेंजर, ईमेल, व्हाट्सएप आदि के नोटिफिकेशन ऑफ रखें।
निजी जानकारी जैसे पासवर्ड, फोटो, वीडियो को मोबाइल में न रखें। इन्हें एक डायरी में लिखें।
समय-समय पर मोबाइल से दूरी बनाएं जैसे कुछ घंटों या कुछ दिनों के लिए या कम से कम दिन में तीन घंटे और हफ्ते में एक दिन।
रात में मोबाइल जल्दी ऑफ या साइलेंट कर दें।



Source: Health