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आंखों के तरल में रुकावट आने से होती है ग्लूकोमा की समस्या

अंधेपन का दूसरा व अहम कारण है ग्लूकोमा। इसके लक्षणों की पहचान आसानी से न हो पाने से आंखों में सामान्यत: बहने वाले तरल पदार्थ जो आंखों के लैन्स, आयरिस व कॉर्निया को पोषण देता है, इसके बहाव में बाधा आती है। बहाव के संचालन में मददगार नाजुक जाल या छोटी-छोटी शिराओं में खराबी आने या इनके बिल्कुल बंद होने पर यह पदार्थ आंखों से बाहर नहीं निकल पाता व आंख का प्रेशर बढ़ने से ऑप्टिक नर्व की कोशिकाएं नष्ट होकर ग्लूकोमा का कारण बनती हैं।

कौन ज्यादा प्रभावित : 5 वर्ष से अधिक उम्र के बच्चे, आंख की नियमित जांच न कराने वाले, फैमिली हिस्ट्री या मायोपिया (पास का दृष्टि दोष), डायबिटीज और ब्लड प्रेशर के रोगी। छोटे बच्चों में जन्मजात कालापानी, महिलाओं में आंखों का हिस्सा (आइरिस) मोटा होने के कारण भी रोग की आशंका रहती है।

जांच: आंखों में दर्द या असहजता महसूस होने पर डॉक्टरी परामर्श लें। सामान्य परीक्षण के अलावा आंखों के अंदर का दबाव जानने के लिए टोनोमेट्री, पेरिमेट्री, पैकिमेट्री, फंडोस्कोपी, ऑफ्थैल्मोस्कोपी और नजर के क्षेत्र की जांच करते हैं।

रोग के प्रकार : ओपन एंगल्ड ग्लूकोमा, क्लोज्ड एंगल ग्लूकोमा और एडवांस्ड स्टेज ग्लूकोमा। इसमें मरीज की उम्र, प्रकार और आंख की स्थिति के अनुसार इलाज तय किया जाता है।

लक्षण –
आंखों से लगातार या बार-बार पानी आना, लालिमा, आंखों का बड़ा या कॉर्निया पर धुंधलापन आने से देखने में परेशानी होना, सिरदर्द आदि प्रमुख लक्षण हैं।

इलाज : शुरुआती स्टेज में आईड्रॉप व दवाएं देते हैं। ट्रैबेक्यूलेक्टॉमी लेजर सर्जरी कर आंख के अंदर एक बहाव चैनल बनाते हैं। इससे अतिरिक्त रूप से जमा तरल पदार्थ को बाहर निकालते हैं। माइक्रोसर्जरी भी करते हैं। गंभीर स्थिति यानी ग्लूकोमा अटैक (अचानक दिखाई देना बंद होना) आने पर ग्लूकोमा वॉल्व प्रत्यारोपण भी करना पड़ता है।



Source: Health