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Women's Day 2023 : कामयाब आदमी के बराबर और कामयाब कैमरा के पीछे – वीमेन

विमेंस डे पर वीमेन की अचीवमेंट्स, सक्सेस यूँ कहें हमारी जिंदगी में उनका एग्गजिस्टेन्स सेलिब्रेट करते हैं और याद करते हैं उन वीमेन को जिन्होंने अलग क्षेत्र में अपने झंडे गाड़े हैं। आज कुछ पन्ने बॉलीवुड से खोलते हैं और एंटरटेनमेंट की दुनिया की चंद प्रभावशाली महिलाओं की बात करते है जिन्होंने कैमरा के आगे नहीं कैमरा के पीछे रहकर हमारी दुनिया को नयी कहानियां दी है। ऐसी वीमेन डायरेक्टर्स की बात करते हैं जिन्होंने बनाई समाज को आईना दिखाती हुई फिल्में।

‘तिरे माथे पे ये आँचल बहुत ही ख़ूब है लेकिन
तू इस आँचल से इक परचम बना लेती तो अच्छा था’

यह शेर इसरार-उल-हक़ मजाज़ के मशहूर अशआर में से एक है। इसे फेमस कवी शफ़क़ सुपुरी ने खूब समझाया है : शायर नारी को सम्बोधित करते हुए कहते हैं कि यद्यपि तुम्हारे माथे पर शर्म व हया का आँचल ख़ूब लगता है मगर उसे अपनी कमज़ोरी मत बना। वक़्त का तक़ाज़ा है कि आप अपने इस आँचल से क्रांति का झंडा बनाएं और इस ध्वज को अपने अधिकारों के लिए उठाएं।


Behind a sensitive subject there is a woman at the back of the camera
: हर अलग और अनूठी कहानी के पीछे एक औरत है जो उसे अंजाम दे रही है। इस फील्ड में सबसे पहले उनकी बात करते हैं जिन्होंने सबसे पहले यहां परचम लहराया। बात करते है फातिमा बेगम की जिन्होंने कई बेड़ियाँ तोड़ कर अपने आपको एक फिल्म डायरेक्टर के साथ साथ एक्टर, राइटर, और प्रोडूसर भी साबित किया। इसके अलावा आज की तारीख में प्रोडूसर और डायरेक्टर के तौर पर अपनी पहचान बनाए वाली वीमेन के नाम भी यहाँ शामिल हैं।

फातिमा बेगम
करीब 97 साल पहले संन1926 में फातिमा बेगम ने आंचल को परचम बनाते हुए अपनी प्रोडक्शन कंपनी शुरू की थी उन्होंने बुलबुल-ए-परिस्तान, चंद्रावल, हीर रांझा जैसी फिल्में बनाईं। इन ९७ इयर्स में बहुत सारी वीमेन ने इस फील्ड को ज्वाइन किया और अपने अलग अंदाज़ में नयी कहानी को हमारे सामने रखा।

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जसमीत के. रीन
: डायरेक्टर जसमीत के. रीन की बनाई फिल्म डार्लिंग्स जेंडर को लेकर भेदभाव और समाज के दोगलेपन की और इशारा करती है। साथ ही यह फिल्म एक औरत के अरमान, उसकी चाह, उसके प्यार और जरुरत पड़ने पर प्यार पर वार की बात करती है। जसमीत ने बारीकी और बखूबी तरीके से औरत के दबे जज्बात समाज के सामने रखे हैं।

अदिति श्रीवास्तव : डिजिटल एंटरटेनमेंट कंपनी पॉकेट ऐसेस की को -फाउंडर और सीईओ अदिति श्रीवास्तव ने लिटिल थिंग्स, एडिटिंग एस 1, व्हाट द फोल्क्स, ऑपरेशन एमबीबीएस और ब्रेवहार्ट्स जैसे कई पॉपुलर शोज को अंजाम दिया हैं। मॉडर्न लाइफ में युथ की चैलेंजेज को, फिर चाहे वर्क हो या रिलेशनशिप, बेहतर तरीके से सामने रखा है। रिश्तों की बारीकियां हो या आम जिंदगी की चुनौतियां, अदिति के शोज आज के हालत पेश करने से पीछे नहीं हटते।

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अश्विनी अय्यर तिवारी : फिल्म प्रोडूसर अश्विनी अय्यर तिवारी की फिल्म निल बटे सन्नाटा लोअर इनकम ग्रुप के औरत की कहानी है। हर रोज की स्ट्रगल के बावजूद बच्चों के लिए बड़े सपने देखने वाली माँ की कहानी है वहीं पन्गा एक स्पोर्ट्स ड्रामा है। दोनों ही फिल्में एक माँ के मन में चल रहे जंग की बात कहती हैं।दिल को छू लेने वाली अश्विनी की कहानियां समझ का दिल दहलाने की क्षमता रखती हैं।

जूही चतुर्वेदी : विक्की डोनर, पीकू, अक्टूबर और गुलाबो सीताबो जैसी असहज माने जानी वाली फिल्मों से समाज का आईना दिखने के लिए जूही की क़ाबलियत को जितना सराहा जाए कम है। अपनी फिल्मों के लिए उन्हें बेस्ट ओरिजिनल स्क्रीनप्ले और बेस्ट डायलॉग्स के लिए नेशनल फिल्म अवार्ड से सम्मानित किया गया है।

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अलंकृता श्रीवास्तव : उनकी कहानी में औरत के रूप समाज की बनायी तस्वीर से एकदम अलग, मगर कुछ औरतों का सच है- मेनोपॉज और चाइल्ड एब्यूज जैसे कुछ सच जो अकसर दबा दिया जाता है। फिल्म हो या वेब सीरीज अलंकृता ने वीमेन के चैलेंजेज और छुपाये गए चेहरे बड़ी सच्चाई के साथ पेश किये हैं। उनकी बनाई फिल्में डॉली किटी और वो चमके सितारे, लिपस्टिक अंडर माई बुर्का, या वेब सीरीज बॉम्बे बेगम और मेड इन हेवन में दिखाई गयी सच्चाई से साहिर लुध्यानवी का वो शेर याद आता है ‘औरत ने जनम दिया मर्दों को मर्दों ने उसे बाज़ार दिया, जब जी चाहा मसला कुचला जब जी चाहा धुत्कार दिया’।

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Source: Education